फर्रुखाबाद: संकिसा उत्तर प्रदेश के फ़र्रुख़ाबाद के निकट स्थित आधुनिक संकिस ग्राम से समीकृत किया जाता है। कनिंघम ने अपनी कृति ‘द एनशॅंट जिऑग्राफी ऑफ़ इण्डिया’ में संकिसा का विस्तार से वर्णन किया है। संकिसा का उल्लेख महाभारत में किया गया है। यहीं पर तथाकथित बौद्ध स्तूप या बिसारी देवी मंदिर के खंडहर हो चुके अवशेष पर कब्जे के लिये बौद्ध धर्मावलंबियों व सनातन धर्मियों के बीच विवाद दोनों ओर के नेता अपनी-अपनी दुकानें सजाये हैं। पूरे वर्ष इस खंडहर हो चुके विवादित टीले की ओर चंद विदेशी सैलानियों के अतिरिक्त कोई झांकने तक नहीं जाता है, परंतु शरद पूर्णिमा पर दोनों ओर से आस्था के फौजदार परंपरा के तौर पर सामने आ जाते हैं।
संकिसा की दूरी पखना स्टेशन से मात्र ५-६ किलोमीटर की है पर उबड़ खाबड़ सडको की कहानी कहता यह क्षेत्र आज भी विकाश की बाट जोह रहा है मेन रास्तो से देखा जाए इटावा फर्रुखाबाद मार्ग के बीच धीरपुर चोराहे से १५ किमी एटा फर्रुखाबाद मार्ग पर अलीगंज से २२ किमी जीटी रोड भोगाव से २५ किमी की दूरी पर है पर हर मार्ग विकशित नहीं है ना सवारिओ के आवागमन की स्मूथ व्यवस्था है हिन्दू तीरथ और मुस्लिम तीरथ के विकाश की सरकार हरसंभव कोशिश करती है तो इस बौद्ध धर्म के विकास के लिए कोई पैकेज की व्यवस्था क्यों नहीं करती है जो प्रदेश की आमदनी का रास्ता भी खोलती है एक छोटा सा कस्बा को यदि सरकार चाहे तो पर्यटन के रूप में खोल सकती है और जिसका फायदा क्षेत्र के विकास में मिल सकता है साथ ही रोज़गार के अवसर भी पैदा हो सकते है .
इतिहास
उस समय यह नगर पांचाल की राजधानी कांपिल्य से अधिक दूर नहीं था। महाजनपद युग में संकिसा पांचाल जनपद का प्रसिद्ध नगर था। बौद्ध अनुश्रुति के अनुसार यह वही स्थान है, जहाँ बुद्ध इन्द्र एवं ब्रह्मा सहित स्वर्ण अथवा रत्न की सीढ़ियों से त्रयस्तृन्सा स्वर्ग से पृथ्वी पर आये थे। इस प्रकार गौतम बुद्ध के समय में भी यह एक ख्याति प्राप्त नगर था।
महात्मा बुद्ध का आगमन
इसी नगर में महात्मा बुद्ध ने अपने प्रिय शिष्य आनन्द के कहने पर यहाँ आये व संघ में स्त्रियों की प्रवृज्या पर लगायी गयी रोक को तोड़ा था और भिक्षुणी उत्पलवर्णा को दीक्षा देकर बौद्ध संघ का द्वार स्त्रियों के लिए खोल दिया गया था। बौद्ध ग्रंथों में इस नगर की गणना उस समय के बीस प्रमुख नगरों में की गयी है। प्राचीनकाल में यह नगर निश्चय ही काफ़ी बड़ा रहा होगा, क्योंकि इसकी नगर भित्ति के अवशेष, जो आज भी हैं, लगभग चार मील की परिधि में हैं। चीनी यात्री फ़ाह्यान पाँचवीं शताब्दी के पहले दशक में यहाँ मथुरा से चलकर आया था और यहाँ से कान्यकुब्ज, श्रावस्ती आदि स्थानों पर गया था। उसने संकिसा का उल्लेख सेंग-क्यि-शी नाम से किया है। उसने यहाँ हीनयान और महायान सम्प्रदायों के एक हज़ार भिक्षुओं को देखा था। कनिंघम को यहाँ से स्कन्दगुप्त का एक चाँदी का सिक्का मिला था।
विशाल सिंह प्रतिमा
सातवीं शताब्दी में युवानच्वांग ने यहाँ 70 फुट ऊँचाई स्तम्भ देखा था, जिसे सम्राट अशोक ने बनवाया था। उस समय भी इतना चमकदार था कि जल से भीगा-सा जान पड़ता था। स्तम्भ के शीर्ष पर विशाल सिंह प्रतिमा थी। उसने अपने विवरण में इस विचित्र तथ्य का उल्लेख किया है कि यहाँ के विशाल मठ के समीप निवास करने वाले ब्राह्मणों की संख्या कई हज़ार थी।
17 वर्षों से लंबित है न्यायालय में मुकदमा
दंडी स्वामी परमानंद सरस्वती ने श्री बिसारी देवी मंदिर विराजमान संकिसा बसंतपुर की ओर से भारत सरकार महानिदेशक पुरातत्व विभाग नयी दिल्ली, प्रदेश सरकार द्वारा जिलाधिकारी, सचिव महाषेधी सोसाइटी आफ इंडिया कोलकाता, बुद्ध विकास परिषद महासचिव मुंशीलाल शाक्य पूर्व विधायक अलीगंज एटा, संकिसा मुक्ति संघर्ष समिति कामरेड कर्मवीर शाक्य कायमगंज, बौद्ध भिक्षु भंते धम्मा लोको पर्यटक गृह संकिसा के खिलाफ सिविल जज सीनियर डिवीजन अदालत में वर्ष 94 में दायर किया गया। मुकदमे में कहा गया कि बिसारी देवी प्राचीन सनातन धर्म की मान्य देवी हैं। संकिसा बसंतपुर में विराजमान देवी मंदिर में सनातन धर्म के विधिनुसार पूजा-अर्चना की जाती है। महंत बाबू गिरि महाराज मंदिर में पुजारी हैं। याचिका में मंदिर को क्षतिग्रस्त अथवा अस्तित्व समाप्त करने से रोकने की याचना की गयी है।
बुद्ध विकास परिषद एवं संकिसा मुक्ति संघर्ष समिति की ओर से अधिवक्ता प्रभुदयाल एवं भारत सरकार व प्रदेश सरकार की ओर से डीजीसी सिविल राहुल मिश्र पैरवी कर रहे हैं,जबकि याची के अधिवक्ता डीजीसी के पिता राजनरायन मिश्र हैं।