पुलिस का खेल: दुग्धसंध अध्यक्ष पद के दावेदार को नामांकन के लाले

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फर्रुखाबाद: सत्ता का मद और पुलिस की मनमानी का खेल देखिये कि फर्रुखबाद दुग्ध संध के निदेशक व अध्यक्ष पद के दावेदार को रविवार को होने वाले नामांकन तक के लाले पड़ गये हैं। अपने अपहरण की एक फर्जी रिपोर्ट की सूचना मिलने पर अपनी उपस्थिति का प्रमाण देने के लिये पुलिस के पास पहुंचे रमेश कठेरिया विगत तीन दिनों से भूखा-प्यासा कोतवाली मोहम्मदाबाद में बैठा है। उसकी पत्नी सुनीता उर्फ निर्मला चीख-चीख कर कह रही है कि उसने अपने पति की गुमशुदगी या अपहरण की कोई रिपोर्ट ही नहीं लिखाई है, कुछ लोग वोट मांगने आये थे और उससे सादे कागज पर अगूंठा जरूर लगवा ले गये थे।

 

नागेंद्र सिंह राठौर के बसपा से निष्कासन के बाद से उनके दुग्ध संघ पर चले आ रहे एक छत्र राज्य को नेश्तानाबूद करने की मुहिम को लगता है बसपा ने अपनी नाक का सवाल बना लिया है। निदेशकों के नामांकन के दौरान जिस प्रकार बसपा नेताओं का जमावड़ा दुग्ध संघ कार्यालय पर नजर आया उससे स्थिति काफी हद तक साफ हो गयी थी। सत्तारूढ दल की हनक के चलते नागेंद्र सिंह स्वयं इतना “डिफेंसिव”  हुए कि उन्होंने स्वयं या अपने परिवार से किसी को निदेशक पद तक का चुनाव नहीं लड़ाया। नागेंद्र सिंह द्वारा फिर भी नौ में से पांच निदेशकों के उनके समर्थक होने का दावा किया गया। उन्होंने अपने एक समर्थक रमेश कठेरिया को अध्यक्ष पद हेतु चुनाव लड़ाने की भी घोषणा कर दी थी। बस यही रमेश चंद्र कठेरिया के लिये घातक साबित हो गया।

अगले ही दिन पुलिस में रमेश कठेरिया की पत्नी के  नाम से एक तहरीर दी गयी कि उसके पति का नागेंद्र सिंह राठौर ने अपहरण कर लिया है, व उनकी जान माल को खतरा है। पुलिस तो जैसे सत्तारूढ़ दल को खुश करने का मौका ही गवाना नहीं चाहती थी तुरंत सक्रिय हो गयी और ऍफ़ आई आर दर्ज हो गयी| नागेंद्र सिंह ने अपने बचाव में मामला साफ करने के लिये पहले तो रमेश की पत्नी से एक हलफनामा दिलवाया कि उसके पति का किसी ने अपहरण  नहीं किया है। वह अपने पुत्रों के पास दिल्ली गये है। जब इससे भी उनपर दबाव कम नहीं हुआ तो तीन दिन पूर्व उन्होंने रमेश को कोतवाली मोहम्मदाबाद भेज कर अपने सुरक्षित होने की पुष्टि कराने का प्रयास किया। पुलिस ने तब से रमेश को थाना मोहम्मदाबाद में बैठा रखा है।

तीन दिनों से कोतवाली मोहम्मदाबाद में भूखे-प्यासे बैठे रमेश कठेरिया से मीडिया के मिलने पर कोतवाल साहब ने सख्त पाबंदी लगा रखी है। पूरे दिन कोतवाल साहब मुंशी के कमरे के बाहर कुर्सी मेज डाल कड़क पहरा दे रहे है| मजाल है कि कोई परिंदा (मीडिया) भी पर मार जाए| इतना ही नहीं इस बिंदु पर बात करने तक को तैयार नहीं हैं। रमेश के विषय में पूछे जाने पर सामने कैमरा देख पहले तो उन्होंने अपनी गर्दन को 90 डिग्री पर मोड़ लिया। फिर काफी हुज्जत के बाद लगभग इसी मुद्रा में उन्होंने बताया कि रमेश के धारा 164 के बयान होने हैं। कोर्ट बंद चल रहे हैं। इस लिये बयान नहीं हो पा रहे हैं।

मजे की बात है कि कल आठ अक्टूबर को सेकेंड सटरडे (द्वितीय शनिवार) व नौ अक्टूबर को रविवार है। दोनो दिन न्यायालय बंद रहना हैं। जाहिर है कि कानून की पुलिसिया व्याख्या के अनुरूप रमेश कठेरिया नामांकन ही नहीं कर पायेगा। हुई न सत्ता व प्रशासन की परफेक्ट जुगल बंदी? एक ओर मुख्यमंत्री व नये डीजीपी कानून के राज की दुहाई दे रहे हैं, जिसका वास्तविक संस्करण आपके सामने है।

आइये देखते हैं कि क्या कहता है कानून

 दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) 164. बयान और बयानों की रिकॉर्डिंग.

  • कोई मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट या न्यायिक मजिस्ट्रेट, चाहे मामला उसके अधिकार क्षेत्र है या नहीं, जांच या परीक्षण के प्रारंभ से पहले किसी भी समय पर किसी भी स्वीकारोक्ति या बयान रिकॉर्ड कर सकते हैं।
  • मजिस्ट्रेट, किसी भी ऐसी स्वीकारोक्ति रिकॉर्डिंग से पहले समझाएगा, कि वह बयान देने के लिये बाध्य नहीं है और वह यह बयान स्वेच्छा से दे रहा है।
  • यदि बयान से पूर्व उपस्थित होने वाला व्यक्ति बयान देने से इनकार करता है तो मजिस्ट्रेट उसे पुलिस कस्टडी में रखने के आदेश नहीं दे सकता।

वरिष्ठ अधिवक्ता व पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता (क्रिमिनल) रनवीर सिंह यादव का कहना है कि पुलिस चाहे तो 164 बयान रिमांड मजिस्ट्रेट के समक्ष भी करा सकती है। एक रिमांड मजिस्ट्रेट 24 घंटे डयूटी पर रहते हैं। इसके अतिरिक्त पुलिस चाहे तो अपनी सुरक्षा में भी ले जाकर उससे नामांकन करा सकती है। तीन दिन तक अकारण थाने में रोके रखना “इल्लीगल डिटेंशन” की परिधि में आता है।