99 फीसदी इमारतों पर जलजले का खतरा
शहर में अधिकांश इमारतें नहीं हैं भूकंपरोधी
जनपद की की 99 फीसदी इमारतें भूकंप के खतरे से महफूज नहीं हैं। नई बन रही सरकारी और प्राधिकरण की इमारतों में ही भूकंपरोधी इंतजाम किए जा रहे हैं। जबकि बाकी बहुमंजिले भवन भगवान भरोसे ही खड़े कर दिए गए हैं। अर्थ क्वैक सेफ्टी कोड का धड़ल्ले से उल्लंघन किया जा रहा है। हालांकि राजधानी में अब तक आए भूकंप के झटके बहुत हल्के ही रहे हैं, मगर खुदा ना खास्ता अगर कभी तेज कंपन हुआ तो इमारते ताश के पत्तों के मानिंद ढह जाएंगी। जिसमें जान-माल का बड़ा नुकसान होना तय है। बावजूद इसके जिम्मेदार महकमे आंखें मूंदे हैं।
लखनऊ विकास प्राधिकरण और आवास विकास परिषद पर यह जिम्मेदारी है कि वे अपने अपने इलाकों में बहुमंजिला भवनों का मानचित्र यह देख कर पास करें कि उनमें भूकंपरोधी इंतजाम किए जा रहे हैं या नहीं। गोमती नगर एक्सटेंशन, कानपुर रोड और कुर्सी रोड पर जहां-जहां एलडीए अपने अपार्टमेंट बनवा रहा है, वहां भूकंपरोधी व्यवस्था प्रत्येक बिल्डिंग में की गई है। जबकि नए सरकारी भवनों में भी अर्थक्वैक से बचने के इंतजाम होते हैं। प्रत्येक जोन के इंजीनियर की यह जिम्मेदारी है कि वे अपने अपने इलाके की ऊंची इमारतों के निर्माण पर नजर रखें और उनमें भूकंपरोधी इंतजामों का होना हर स्तर पर सुनिश्चित करें। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।
अर्थक्वैक सेफ्टी कोड
5 .
- विकास भवन
- जेल
- रेल्वे स्टेशन
- कांशीराम कालोनी
- पालिटेकनिक
- लोहिया अस्पताल
( इन बिल्डिंगों के अलावा शहर भर के सैकड़ों अपार्टमेंट में बिना भूकंपरोधी इंतजामों के ही हैं। )
•आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में बिल्डिंगों के लिए अलग से एक अर्थ क्वैक सेफ्टी कोड (भूकंपरोधी नियम) तय हैं।
•15 मी. से अधिक ऊंचाई वाली बहुमंजिली इमारतों की नींव से लेकर ऊंचाई तक भूकंप से बचाव के इंतजाम किए जाने जरूरी हैं।
•किसी भी भवन की नींव को विशेष तौर पर मजबूत बनाकर उसमें कंक्रीट के बीम लगाए जाते हैं। भूकंप के झटकों को बिल्डिंग आसानी से झेल लेती हैं।
•भूकंपरोधी बनाए जाने में बिल्डिंग की कास्ट करीब 10 फीसदी तक बढ़ जाती है।
सिक्किम में रविवार को आया भूकंप वहां अब तक का सबसे बड़ा भूकंप है। जीएसएचएपी (ग्लोबल सेसमिक हैजार्ड एसेसमेंट प्रोग्राम) आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश भी कम भूकंपीय खतरे से ज्यादा भूकंपीय खतरे वाले क्षेत्र में परिवर्तित हो गया है। 2002 के ब्यूरो ऑफ स्टैंडर्ड (बीआईएस) मैप के अनुसार उत्तरांचल के क्षेत्रों में इसी तरह का बदलाव हुआ है। उत्तरांचल के कई क्षेत्र जोन तीन, चार और पांच में पहुंच गए हैं। रविवार को आए 6.8 तीव्रता वाले भूकंप ने इस पूरे इलाके को झकझोर कर रख दिया। हालांकि इस भूकंप से जानमाल का ज्यादा नुकसान नहीं हुआ लेकिन वैज्ञानिकों की मानें तो उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिए यह बड़े खतरे की घंटी है। क्योंकि इस क्षेत्र में हमेशा से रिक्टर स्केल पर 5-6 तीव्रता वाले भूकंप महसूस किए गए है।
यूपी में भी भूकंप का खतरा
•18 अक्टूबर 2007 : गौतबुद्धनगर में सुबह 11:24 पर 3.6 तीव्रता का भूकंप आया, मामूली नुकसान
•29 मार्च 1999 : चमोली में भूकंप के तेज झटके मसूस किए गए , गढ़वाल में 115 लोगों की जान गई। भूकंप की तीव्रता 6.5 थी। यूपी में भी इस भूकंप के झटके महसूस किए गए
•21 अक्टूबर 1991 : गढ़वाल में 6.8 तीव्रता का भूकंप आया, खासा नुकसान। इन झटकों से यूपी भी कांपा
•29 जुलाई 1980 : पश्चिम नेपाल में 6.8 तीव्रता का भूकंप,150 लोगों की मौत सैंकड़ो घायल, पिथौरागढ़ व आसपास के इलाकों में 13 लोग मारे गए
•15 सितंबर 1966 : मुरादाबाद के दक्षिण में रामपुर के आसपास के इलाके 5.8 तीव्रता के झटके महसूस किए गए, नुकसान नहीं
कब-कब कांपा यूपी
पश्चिम में सहारनपुर अलीगढ़ वाली पट्टी, पूर्व में कुशीनगर, गोरखपुर, पीलीभीत, खीरी, बहराइच,बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, महराजगंज से देवरिया तक के इलाके में भूकंप से नुकसान का खतरा ज्यादा है।
यूपी जोन तीन के भूकंपीय क्षेत्र में आता है, जिसका मतलब है मध्यम दर्जे का भूकंपीय क्षेत्र। गंगा व गोमती के तट व आसपास के इलाके में मिट्टी मुलायम व आसानी से धसने वाली होने के कारण इन इलाकों में भूकंप से नुकासान की आशंका अधिक।
पश्चिम में महामायानगर, मथुरा और आगरा, पूर्व में गाजीपुर से चंदौली तक का इलाका, सेट्रल उत्तर प्रदेश में मैनपुरी, शहजहांपुर, लखनऊ, फैजाबाद, बस्ती, प्रतापगढ़, आजमगढ़ और वाराणसी में भूंकप का खतरा ज्यादा नहीं है