गुरुजी तो बन गये बीएलओ, अब पढ़ाये कौन

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फर्रुखाबाद:: यदि ‘कोढ़ में खाज’ कहावत को जीवंत रूप से देखना हो तो जिले की परिषदीय स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था में देखा जा सकता है। यहां एक स्कूल के लिए दो शिक्षक अथवा शिक्षामित्र भी मुहैया नहीं हैं उस पर शिक्षकों को मतदाता सूची पुनरीक्षण में लगा दिया गया है। जिले से शिक्षक शिक्षिकाएं कक्षाओं की पढ़ाई छोड़ बाहर मुंशीगीरी कर रही हैं।

बीएलओ ड्यूटी जैसे गैर शैक्षणिक कार्य ने परिषदीय स्कूलों में शिक्षा का बंटाधार कर दिया है। शिक्षक मतदाता सूची के कार्य में व्यस्त हैं और छात्र-छात्राएं विद्यालय में खेलकर ही घर लौट जाते हैं। इससे छात्रों और उनके अभिभावकों में भी नाराजगी व्याप्त है।

प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों ने बताया कि नया शैक्षिक सत्र २०११-१२ शुरू होने से पहले से ही वह बीएलओ ड्यूटी में लगे हैं। नया सत्र शुरू हुए सवा दो माह बीत चुके हैं, लेकिन बीएलओ ड्यूटी से शिक्षकों को निजात नहीं मिली है। बीएलओ ड्यूटी के कारण शिक्षक स्कूल जाकर बच्चों को नहीं पढ़ा पा रहे हैं। ये आलम तो तब है जबकि सितंबर में परिषदीय स्कूलों में आयोजित होने वाली सत्र परीक्षाएं सिर पर हैं। अब सवाल उठा है कि बिना स्कूलों में पढ़ाई हुए सत्र परीक्षाएं कराने से क्या लाभ होगा? इस प्रश्न को करने वाले छात्र-छात्राएं और उनके अभिभावकों में आक्रोश व्याप्त है।

गैर शैक्षणिक कार्य से परेशान शिक्षकों का कहना है कि स्कूलों में पढ़ाई करवाने के बजाये शिक्षकों से वर्षभर गैर शैक्षणिक कार्य लिये जाते हैं। इसी कारण से सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का बंटाधार है और परिषदीय स्कूलों के बच्चे पब्लिक स्कूलों के मुकाबले पढ़ाई में कमजोर होते हैं।