फर्रुखाबाद: प्रदेश की 15वीं विधानसभा में कई ‘माननीय’ विधायक ऐसे हैं, जो इन पांच वर्षों में कई बार पाला बदल चुके हैं। अभी चुनाव दूर है तब तक उनका ठिकाना क्या होगा, कुछ कहा नहीं जा सकता।
संतकबीर नगर के हैंसरबाजार क्षेत्र के विधायक दशरथ प्रसाद चौहान अब तक दो बार दल बदल कर चुके हैं और तीसरी बार के लिए कतार में हैं। 2007 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के टिकट पर जीते थे लेकिन दो वर्ष में ही सपा से उनका मोह भंग हो गया। 2009 में वह बसपा में शामिल हो गए। दोबारा चुनाव लड़कर विधायक बने। 2011 खत्म भी नहीं हो पाया कि उनकी निष्ठा डोल गई। जैसे ही बसपा नेतृत्व को यह खबर लगी कि 2012 के चुनाव के लिए उनका दूसरी पार्टी से टिकट पक्का हो गया है, उन्हें अनुशासनहीनता और दल विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने के आरोप में निलम्बित कर दिया।
दूसरा उदाहरण सुलतानपुर जिले के इसौली विधानसभा क्षेत्र के विधायक चंद्रभद्र सिंह का भी है। वह भी 2007 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के टिकट पर जीते थे। उन्होंने देखा कि उप्र में बसपा की सरकार बन गई है तो उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर बसपा की सदस्यता ले ली। दोबारा चुनाव लड़े। जीत गए। बसपा नेतृत्व ने 2012 के चुनाव के लिए उनकी सीट पर उनकी जगह किसी और को टिकट दे दिया। तबसे उनको लेकर तरह-तरह के कयास लग रहे हैं।
रामपुर के नवाब काजिम अली खां उर्फ नावेद मियां, आम चुनाव में समाजवादी पार्टी के टिकट पर जीते थे लेकिन चार माह के अंदर ही उन्होंने पाला बदल लिया। इस्तीफा देकर बसपा के टिकट पर चुनाव जीत कर आए। यही हाल इटावा के महेंद्र सिंह राजपूत व मुरादनगर के विधायक राजपाल त्यागी का भी रहा। महेंद्र राजपूत सपा और त्यागी निर्दलीय विधायक के रूप में आम चुनाव जीते थे लेकिन बाद में दोनों विधायकों ने दलबदल किया और दोबारा चुनाव लड़कर बसपा के सदस्य हो गए। डीपी यादव और उनकी पत्नी उमलेश यादव तो अपनी पार्टी राष्ट्रीय परिवर्तन दल के टिकट पर चुनाव जीते थे। विधानसभा में उन्होंने अपनी पार्टी का विलय बसपा में कर लिया, उन पर दल बदल विरोधी कानून लागू भी नहीं हो पाया। इसी तरह जनमोर्चा के टिकट पर आम चुनाव में जीते धर्मपाल सिंह व लोक जनशक्ति पार्टी के राम सेवक सिंह पटेल ने सदन के अंदर दल का बसपा में विलय कर लिया और वह बसपा के विधायक हो गए। पूर्व विधायाक विजय सिंह ने भी कुछ इसी गणित के चलते सपा से विधान सभा चुनाव जीतने के बाद इस्तीफा देकर दोबारा बसपा से चुनाव लड़ने का प्रोग्राम बनाया था। परंतु बसपा की अंदरूनी राजनीति के चलते उनका टिकट कट गया व यहां से पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अंटू मिश्रा को चुनाव लड़ाया गया।