“पितृ पक्ष श्राद्ध ” में कौओं का अकाल

Uncategorized

फर्रुखाबाद: हिन्दूधर्म के अनुसार, प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारम्भ में माता-पिता,पूर्वजों को नमस्कार प्रणाम करना हमारा कर्तव्य है, हमारे पूर्वजों की वंश परम्परा के कारण ही हम आज यह जीवन देख रहे हैं, इस जीवन का आनंद प्राप्त कर रहे हैं। इस धर्म मॆं, ऋषियों ने वर्ष में एक पक्ष को पितृपक्ष का नाम दिया, जिस पक्ष में हम अपने पितरेश्वरों का श्राद्ध,तर्पण, मुक्ति हेतु विशेष क्रिया संपन्न कर उन्हें अर्ध्य समर्पित करते हैं। यदि कोई कारण से उनकी आत्मा को मुक्ति प्रदान नहीं हुई है तो हम उनकी शांति के लिए विशिष्ट कर्म करते हैं|

“पितृ पक्ष श्राद्ध ” में कौओं का अकाल-

एक  समय घर से भगाए  जाने वाला ” कौआ ” आज खोजने से नहीं मिलाता,  सर्वस्थ और बहुतायत में पाया जाने वाला पक्षी इन दिनों  दुर्लभ हो चला है शहरों  में कांव कांव  की ध्वनी से जहा तहा आकर्षित करने वाला कौआ अब शहरों  में ढूंढे नहीं मिलता यही वजह है की  पितृ पक्ष में श्राद्ध की पुरातन परम्परा को पूरा करने के लिये कौओं को रोटी खिलाने वालों को इन दिनों काफी  निराशा का सामना करना पड रहा है|

पर ये सच है औद्योगिकीकरण और अन्य कारणों के चलते तेजी से बढ रहे पर्यावरण प्रदूषण के चलते शहरी क्षेत्रों में इन दिनों कौए दुर्लभ पक्षी बन गया हैं|

कौए वातावरण के प्रति काफी संवेदनशील होते हैं1 पानी और भोजन में कीटनाशक और रासायनिक दवाओं के जरूरत से ज्यादा प्रयोग होने से कौऐ तथा अन्य पक्षी आबादी से काफी दूर जा रहे हैं|

पर्यावरण प्रदूषण से मनुष्य के साथ.साथ पक्षियों पर भी विपरीत असर पड रहा है1 यही वजह है कि अब शहरी क्षेत्रों में कौओं की कांव.कांव कम सुनाई पडने लगी है|

पंडित जी अखिलेश कुमार दीक्षित ने बताया कि कौए किसी के आगमन की सूचना हमें देते हैं व ये हमारे पित्तरों के आगमन की सूचना देते हैं| उन्होंने बताया कि १५ दिन बाद अमावस्या को पितृ पक्ष समाप्त हो जाता है और हमारे जिस पितृ का स्वर्गवास जिस दिन हुआ होता है उसी दिन हमको पितृ पक्ष के सारे कर्मकांड करने चाहिए|

श्राद्ध करने से पहले ध्यान योग्य बातें-

पितृ पक्ष में संकल्प पूर्वक ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए। यदि ब्राह्मण भोजन न करा सकें तो भोजन का सामान ब्राह्मण को भेंट करने से भी संकल्प हो जाता है। कुश और काले तिल से संकल्प करें। इसके अलावा गाय, कुत्ता, कोआ, चींटी और देवताओं के लिए भोजन का भाग निकालकर खुले में रख दें। भोजन कराते समय चुप रहें।

भोजन में इनका प्रयोग करें : दूध, गंगा जल, शहद, टसर का कपड़ा, तुलसी, सफेद फूल।

इनका प्रयोग न करें : कदंब, केवड़ा, मौलसिरी या लाल तथा काले रंग के फूल और बेल पत्र श्राद्ध में वर्जित हैं। उड़द, मसूर, अरहर की दाल, गाजर, गोल लौकी, बैंगन, शलजम, हींग, प्याज, लहसुन, काला नमक, काला जीरा, सिंघाड़ा, जामुन, पीली सरसों आदि भी वर्जित हैं। लोहा और मिट्टी के बर्तन तथा केले के पत्तों का प्रयोग न करें। विष्णु पुराण के अनुसार श्राद्ध करने वाला ब्राह्मण भी दूसरे के यहां भोजन न करे। जिस दिन श्राद्ध करें उसे दिन दातुन और पान न खाएं। श्राद्ध का महत्वपूर्ण समय: प्रात: 11.26 से 12.24 बजे तक है।