महिला चिकित्सक की मौत: विधायक के इशारों पर 24 घंटे नाचा प्रशासन

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फर्रुखाबाद: महिला चिकित्सक की मौत के मामले को निबटाने के 24 घंटों ताक चले  ड्रामे में जिलाधिकारी को छोड़ कर पूरा जिला प्रशासन सत्तारूढ़ दल के एक विधायक के इशारों पर नाचता दिखा। शाम से ही मृतका के परिजनों पर शब को घर ले जाने के दबाव से शुरू हुई कहानी दूसरे दिन पोस्टमार्टम को निष्प्रयोज्य करदेने तक चली। आखिर रिपोर्ट वही आयी “Cause of death not ascertained viscera preserved.” पोस्टमार्टम प्रक्रिया से जुड़े सूत्रों की मानें तो शव पर हाथ में इंट्रावीनस इंजेक्शन लगाये जाने का निशान पाया गया। निजी नर्सिंग होमों में हो रही अनियमितताओं को रोकने के जिम्मेदार, अपनी साथी महिला चिकित्सक की मौत के बाद भी संबंधित नर्सिंग होम पर छापा मारना तो दूर एक नोटिस तक न दे सके। डीएम की तरफ से पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी कराये जाने के आदेश को अंधेरे में लपेट कर बेकार कर दिया।

सराकारी अस्पताल में संविदा पर तैनात महिला चिकित्सक प्रियंका पाण्डेय  की शहर के एक निजी नर्सिंग होम “सिटी हास्पिटल” में मौत के बाद दूसरों को छोड़िये सरकारी चिकित्सकों तक ने साथ नहीं दिया। महिला चिकित्सक की मौत के बाद जैसे ही परिजनों ने इंजेक्शन गलत ढंग से लगाये जाने को मौत का करण बताकर हंगाम शुरू किया, दूसरे पक्ष ने बचाव के रास्ते ढूंडने शुरु कर दिये। मृतका के पढ़े लिखे परिजनों की डीएम से सीधी वार्ता के बाद ही सत्तारूढ दल के एक विधायक का फोन संबंधित अधिकारियो के पास आना शुरू हो गया। जिलाधिकारी के कड़े रुख के बावजूद शेष अधिकारी सत्ता के दबाव के आगे नत मस्तक नजर आये। प्रियंका के मरते ही अस्पताल कर्मचारियो ने परिजनों पर शव को तत्काल ले जाने के लिये दबाव बनाना शुरू कर दिया। परिजनों के भड़कने पर पहुंची पुलिस ने भी अस्पताल प्रबंधक के सुर से सुर मिला लिये। परंतु जिलाधिकारी के कड़े रुख के चलते पुलिस को पीछे हटना पड़ा। आखिर प्रियंका की मौत का मीमो कोतवाली को भेजा गया। दूसरे दिन प्रियंका के पिता के आने से पू्र्व ही शव को अस्पताल से हटाने के लिये एक बार फिर पुलिस ने जोर लगाया। परंतु परिजनो के अड़ जाने के कारण उसकी एक न चली। इधर डीएम ने मामले में गड़बड़ी की आशंका को देखते हुए शव का पोस्टमार्टम तीन डाक्टरों के पैनल से कराने व इसकी वीडियोग्राफी कराये जाने के आदेश जारी किये। एक बार फिर सत्ता के दलाल सक्रिय हुए। बहुत सोच विचार कर डाक्टरों का पैनल बनाया गया। रही सही कसर पोस्टमार्टम में देरी कर पूरी कर दी गयी।

प्रियंका का शब सायंकाल लगभग चार बजकर चालीस मिनट पर पोस्टमार्टम हाउस पहुंच गया था। यहां पर पंचनामा भरने तक समय सवा पांच हो चुका था। फिर कोतवाली से पेपर आने व वीडियोग्राफर को अंदर जाकर कार्य करने की लिखित अनुमति दिये जाने तक घड़ी में छह बज चुके थे। जाहिर है कि अगस्त का महीना आ चुका है और आसमान में घिरी घटाओं के कारण चारों ओर से बंद पोस्टमार्टम हाउस के अंदर इतनी रोशनी नहीं बची थी कि इसमें पोस्टमार्टम जैसी महीन तकनीकी प्रक्रिया संपादित करना तो दूर हाथ की लकीरें तक देखपाना नामुमकिन था। मजे की बात है कि न तो वीडियोग्रफर के पास रोशनी की व्यवस्था थी और  न ही पोस्टमार्टम कक्ष में कृतिम प्रकाश की व्यवस्था की गयी थी। ऐसे में डाक्टरों के पैनल के सामने विसरा प्रिजर्व कर लेने के अलावा कोई चारा ही नहीं था।

जनपद में नर्सिंग होम की व्यवस्था का जिम्मा उपमुख्य चिकित्साधिकारी डा. राजवीर के पास है। पूर्व सीएमओ डा. पीके पोरवाल के समय में एक बार जब नर्सिंग होमों पर शिकंजा कसने की तैयारी की गयी  तो सारे नर्सिंग होम संचालक एक जुट होकर इसके विरोध में खड़े हो गये। ममला जहां का तहां दब गया। बुधवार को एक महिला चिकित्सक की मौत का मामला मीडिया में उछलने के बावजूद गुरुवार को किसी सरकारी अधिकारी के इस नर्सिंग होम में जांच करने जाना तो दूर एक नोटिस तक नहीं दिया गया। डा. राजवीर ने इस संबंध में बताया कि शुक्रवार को सीएमओ से वार्ता के बाद कार्रवाई की जायेगी।