जानो अधिकार- कोई भी स्कूल बंद रहे दिनों की फीस नहीं वसूल सकता

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फर्रुखाबाद: वर्ष 2007 में जारी उच्च न्यायालय के एक आदेश के मुताबिक किसी भी प्रकार के स्कूल एक माह या एक माह से ज्यादा बंद रहे स्कूल के समय में बच्चो से कोई फीस नहीं वसूल सकता| मगर इस आदेश के 12 साल बाद भी उत्तर प्रदेश के हर गली मोहल्लो और बड़े नगरो में चल रहे सभी छोटे बड़े स्कूल न्यायालय के आदेश की धज्जियाँ उड़ाते हुए ये फीस वसूल रहे हैं| बात यहीं तक नहीं थमती, प्रदेश के प्राथमिक शिक्षा (बेसिक शिक्षा परिषद्) के निदेशक से लेकर जिले स्तर के अधिकारियो को इस आदेश तक के बारे में जानकारी नहीं है| हालाँकि ये आदेश उनकी फाइलों में कैद है|

कोई भी स्कूल चाहे वो सरकारी हो या गैर सरकारी, मान्यता प्राप्त हो या गैर मान्यता प्राप्त, राज्य सरकार के किसी परिषदीय बोर्ड का हो या फिर सीबीएसई एवं आईसीएससी बोर्ड का, लम्बे समय तक बंद रहे समय की फीस छात्रो से नहीं वसूल सकता| 4 अप्रैल 2007 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के द्वारा किये आदेश के बाद राज्य सरकार ने इसे प्रमुखता से पूरे प्रदेश में शासनादेश के तहत लागू करने के लिए जिलों में चिट्ठी भेजी थी|

प्राइवेट और गैर सरकारी सहायता प्राप्त पब्लिक स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगाने वाला ये आदेश वर्ष 2007 में उच्च न्यायालय के आदेश पर तत्कालीन तत्कालीन मुख्य सचिव शम्भू नाथ के द्वारा जारी किया गया ये शासनादेश ठन्डे बस्ते में पड़ा है| सीबीएसई बोर्ड से सम्बद्ध लखनऊ के एक स्कूल के तीन बच्चो ने वर्ष 2007 में उच्च न्यायालय की लखनऊ की खंडपीठ में अपने विद्यालय द्वारा कभी अनापशनाप फीस तो कभी मध्य स्तर में ड्रेस बदलने, स्कूल में दूकान लगाकर किताबे खरीदने के लिए दबाब बनाने से लेकर विभिन्न तरीको से धन उगाही को लेकर एक याचिका संख्या 3173/एम०एस०/2005 दायर की थी| इस याचिका पर दिनांक 4-4-2007 को आदेश पारित हुआ| आदेश के मुताबिक शिक्षण संस्थानों द्वारा इस सम्बन्ध में किये जा रहे क्रियाकलापों के प्रति अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए कतिपय निर्देश दिए गए|

इसके बाद तत्कालीन मुख्य सचिव शम्भू नाथ ने शासनादेश संख्या 851/15-7-07-10(107)/2005 के तहत न्यायालय के आदेश पर उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में शैक्षिक विवाद निस्तारण समिति का गठन करने का आदेश जारी किया| जनपद स्तर पर जिलाधिकारी द्वारा नामित अपर जिलाधिकारी की अध्यक्षता में एक “शैक्षिक विवाद निस्तारण समिति” का गठन किया जाना था| इस समिति में निम्नलिखित सदस्य होने थे-
1-जिला विद्यालय निरीक्षक
2-जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी
3-राजकीय इंटर कॉलेज (बालक/बालिका) के एक एक प्रधानाचार्य/प्रधानाचार्या| (जिला विद्यालय निरीक्षक द्वारा नामित)
4-अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालय के प्रधानाचार्य (जिला विद्यालय निरीक्षक द्वारा नामित)
5-वरिष्ठतम उप बेसिक शिक्षा अधिकारी
यह समिति जनपद में स्थित समस्त विद्यालयों, जिसमे बेसिक शिक्षा परिषद्, माध्यमिक शिक्षा परिषद्, सीबीएसई तथा आईसीएसई बोर्ड से मान्यता प्राप्त विद्यालय सम्मिलित होंगे, में छात्र/छात्राओं से से लिए जा रहे शुल्क, स्कूल ड्रेस, स्टेशनरी तथा पाठ्य पुस्तकों के सम्बन्ध में अभिभावकों से प्राप्त शिकायतों का निस्तारण शिकायत प्राप्त होने के 15 दिन के अन्दर करेंगे|
विभिन्न 10 बिन्दुओं के साथ साथ यही कमिटी यह भी सुनिश्चित करेगी कि-
“कोई भी स्कूल संस्था एक माह या उससे अधिक बंद होने की स्थिति में छात्रो से उस अवधि का शुल्क नहीं लेगी| छात्र/छात्राओं से वर्ष भर की अथवा 06 माह का या 03 माह का शुल्क अग्रिम रूप से नहीं वसूला जायेगा| छात्र/छात्राओं से लिए जाने वाले शुल्क की रसीद संस्था द्वारा दी जाएगी, जिसमे यह स्पष्ट रूप से अंकित होगा की यह शुल्क किस निमित्त वसूल किया जा रहा है| ”

शासनादेश जारी करने के साथ ये आदेश भी लिखा गया की उक्त आदेश के तहत कमिटी गठित कर १५ दिन के अन्दर शासन को सूचना भेजी जाए|
उपर्युक्त निर्देशों का कठोरता से पालन सुनिश्चित करने के आदेश जारी किये गए| आदेशो का पालन न करने वाली संस्थाओ को आवश्यकता पड़ने पर जनपद की शैक्षिक विवाद निस्तारण समिति द्वारा कारण बताओ नोटिस देकर सम्बन्धित विद्यालय के विरुद्ध मा० उच्च नयायालय के आदेशो के अनुपालन ने समुचित प्रभावी कार्यवाही करते हुए उन्हें बंद करने की संस्तुति शासन को की जाएगी|

(विशेष: ये समाचार JNI पर 5 अगस्त 2011 को प्रकाशित हुआ था, जनहित का मुद्दा होने के कारण इसे पुनः प्रकाशित किया जा रहा है)