फर्रुखाबाद: देश में सांसद और विधायक निधि को खर्च करने के लिए बने नियम सरकार एमपी और एम्एलए की सुविधानुसार बनाती है| होने भी चाहिए आखिर स्थानीय विधायक और सांसदों को पैसा खर्च कर जनता को लाभ पहुचाने में कोई दिक्कत न हो| मगर उत्तर प्रदेश में एक ही प्रकार के काम के लिए सांसदों और विधायको को पैसा खर्च करने के लिए नियम अलग अलग हैं| संसद कहती है कि हमारा नियम कठोर है और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में कामयाब है| वहीँ उत्तर प्रदेश सरकार कहती है वे जनता की सुविधा के अनुसार कानून नियम बनाते है या यौन कहें विधायक जी सुविधानुसार| दोनों में कोई फर्क नहीं आखिर विधायक भी जनता से ही आता है और हरने के बाद जनता में ही जाता है|
विधायक निधि की सेल- हमारी निधि में लागत कम, खर्च करने पर आजादी!
आरोप है कि अधिकांश सांसद और विधायक अपनी निधि एनजीओ के माध्यम से या एनजीओ को जमकर भारी कमीशन पर बेचते है| स्कूल कॉलेज चलाने वाले एनजीओ को ये उनके विकास के लिए दी जाने धनराशी में सांसद निधि और विधायक निधि में एक ही प्रदेश में दो नियम हैं| जहाँ विधायक निधि का पैसा सीधे स्कूल कॉलेज के खाते में जा सकता है वहीँ सांसद निधि में ये पैसा किसी निर्माण एजेंसी के माध्यम से खर्च कराया जा रहा है| ईमानदारी का पाठ पढ़ाने वाले उत्तर प्रदेश के विधायको का दबी जुवान से कहना है कि कम से कम हमारी निधि में किसी एजेंसी को मिलने वाला कमीशन तो बचता है| सांसद निधि में तो पैसा स्कूल खाते में जाने की बजाय किसी निर्माण एजेंसी में जायेगा और वो भी 15 से 20 प्रतिशत खायेगा|
वाह रे सौदेबाजी- ये उत्तर प्रदेश के जनता के नुमायेंदे विधायक तो बड़े अर्थशास्त्री निकले| इन्हें अमेरिका भेज दो वहां कल 2 अगस्त 2011 को अमेरिका में सरकार का खजाना शुन्य होने वाला है और इसे सरकार का डिफाल्टर होना कहते है| हो सकता है यू पी के विधायक कुछ जुगाड़ कर किसी कुशवाहा, मिश्र या सिद्दकी से कमीशन पर वर्तमान संकट हल करवा दे|