छात्रों की कापी किताबें + कमीशन = प्रबंधकों की मोटी कमाई

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स्कूल प्रबंधकों के लिए अभिभावक कामधेनु गाय

फर्रुखाबाद: अभिभावक स्कूल प्रबंधकों के लिए कामधेनु गाय के समान हो गया है। प्रवेश शुल्क से लेकर पाठ्य पुस्तकों की खरीद में अभिभावकों का जमकर आर्थिक दोहन किया जा रहा है। अभिभावकों की हालत उस गुड़ भरे हंसिया के समान हो गयी है जिसे न उगलते बनता है और न निगलते। कॉपी -किताबों की बिक्री से स्कूल संचालकों और दुकानदारों की जमकर कमाई कर रहे है ।

अच्छी शिक्षा की खातिर अभिभावक भारी भरकम प्रवेश शुल्क देकर निजी स्कूलों में अपने बच्चों का दाखिला करा देता है। प्रवेश होते ही अभिभावकों को भारी भरकम पाठ्य पुस्तकों की सूची थमा कर स्कूल प्रबंधक अपनी निर्धारित दुकान पर खरीदने के निर्देश देते हैं। उसके पीछे मात्र पुस्तकों की बिक्री पर मिलने वाला कमीशन होता है।

कुछ पुस्तक विक्रेताओं ने बाकायदा संबंधित स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली पुस्तकों की सूची बना कर प्रबंधकों को उपलब्ध करा रखी है। उस सूची को ही अभिभावकों को थमा कर अपने चहेते दुकानदार से पुस्तकें खरीदने को कहा जाता है।

खास बात तो यह है कि यह पुस्तकें अन्य दुकानों पर उपलब्ध नहीं होती है। इसके अलावा कापियों की खरीद के लिए भी संबंधित दुकान पर ही भेजा जाता है। इसके अलावा प्रत्येक निजी विद्यालय की ड्रेस भी निर्धारित है। ड्रेस या उसका कपड़ा खरीदने के लिए भी प्रबंधकों ने कुछ वस्त्र विक्रेताओं से मिलीभगत कर रखी है।

अभिभावकों की मजबूरी है कि बच्चे के भविष्य को देखते ही स्कूल के दिशा निर्देशों का पालन करें। अभिभावकों ने स्पष्ट कहा कि पुस्तकें और ड्रेस खरीदने के लिए मजबूर करने वाले स्कूल प्रबंधकों के विरुद्ध शिक्षा विभाग के अधिकारियों को कार्रवाई करनी चाहिए।