अब अन्ना और सरकार के बीच खुली ‘जंग’

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नई दिल्ली ।। अन्ना हजारे और सरकार के बीच सीधा टकराव शुरू हो गया है। आज पहले अन्ना हजारे की तरफ से अरविंद केजरीवाल और प्रशांत भूषण ने सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए सवाल किया कि आखिर प्रधानमंत्री किसी तरह की जांच से इतना डरते क्यों हैं ? अगर प्रधानमंत्री के किसी फैसले की जांच हो जाएगी तो उससे कौन सी आफत आने वाली है ? इसके ठीक बाद सत्तारूढ़ कांग्रेस ने अन्ना की टीम पर जवाबी हमला करते हुए सवाल किया कि यह सिविल सोसायटी है क्या ? इन्हें किसने इस सोसायटी का नुमाइंदा बना दिया ?

अन्ना हजारे के सहयोगी अरविंद केजरीवाल और प्रशांत भूषण ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सवाल किया कि उन्हें समझ में नहीं आता सरकार प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने से क्यों डर रही है। केजरीवाल ने कहा कि कुछ समय पहले तक यही सरकार प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने को तैयार दिख रही थी। अब अचानक पता नहीं ऐसा क्या हो गया है कि सरकार को इस मसले पर यू टर्न लेना पड़ा।

जाने-माने वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि सरकार के लोग बार-बार सिविल सोसायटी के आंदोलन को लोकतंत्र विरोधी करार दे रहे हैं। पता नहीं लोकतंत्र की उन्होंने कैसी परिभाषा गढ़ ली है जिसमें उन्हें जनता की सक्रियता खतरनाक लगने लगी है। आखिर आम जनता का कोई हिस्सा अगर शांतिपूर्ण ढंग से कोई सुझाव देता है और तर्कों के जरिए उसकी अहमियत साबित करता है तो लोकतंत्र के लिए खतरा कैसे पैदा हो जाता है ?

इसके कुछ ही मिनट बाद कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में अन्ना की टीम के इरादों पर सवाल खड़ा कर दिया। तिवारी हालांकि कांग्रेस प्रवक्ता की हैसियत से बोल रहे थे, लेकिन उन्हेंने सरकार के सभी कदमों का बढ़-चढ़कर बचाव किया। उन्होंने कहा कि अन्ना के विचार लोकतंत्र विरोधी हैं। एक तरफ वह मानते हैं कि इस देश का आम वोटर शराब की बोतल के बदले वोट बेच देता है, दूसरी तरफ वह खुद को उसी आम आदमी का प्रवक्ता बताते हैं।
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि अन्ना बार-बार भूख हड़ताल की धमकी देते हैं। अगर उन्हें अपनी बात के सही होने का इतना ही भरोसा है तो संयुक्त समिति की बैठक में तर्कों के जरिए सरकार से अपनी बात क्यों नहीं मनवा लेते ?