सभी की अपनी-अपनी ताल पर होने लगा धमाल – दिखाता देखो कौन धमाल
त्रिपौलिया चौक पर भगवा भेषधारी दीदी की 6 साल बाद पुराने घर में वापसी की खबर से ही जाम लग गया| जिस फर्रुखाबाद में बैरियर तोड़ बाबा की वापसी और धीरपुर नरेश की आमद से पत्ता नहीं खटका वहीं लगी कूंचो से निकल-निकल कर दीं दयाल उपाध्याय के बताये मार्ग पर चलने वाले साधक चेहरों पर विजयी मुद्दा और मुस्कान चिपकाए चौक को गुलजार करने आ गए| मिठाई बंटी, आतिशवाजी धूमधडाका का जो कुछ ऐसे मौकों पर होता है वह सब कुछ हुआ|
अपनी पुरानी पटिया पर औरों को बैठा देखा मियाँ झान झरोखे तो वर्तन वाली गली में खिसक गए| मुंशी हर दिल अजीज बाबा रामदेव की तरह दुपट्टे से अपनी दाढी और चेहरा छुपाये चहल कदमी करते हुए सब कुछ पुलसिया नजर से देखते रहे|
भीड़-भाड़ कम हुयी तो दोनों रफूगर वाली पटिया पर आकर जम गए| मियाँ बोले देखा मुंशी बेमतलब की बारात निकाल दी| अब दददुओं, मेजरों सत्यपालों आदि को कौन समझाए कि बिरादरी की राजनीति का खेल बहुत अजब-गजब है| कल तक कहते थे फलाने का टिकट अपने लाभ के लिए हमने सेट कराया है| आज पिता की बिरासत और बिरादरी के वोट के साथ भगवा भेषधारी दीदी के सजातीय वोट को अपने पाले में मानकर फूले नहीं समा रहे हैं| उचक-उचक कर फोटो खिंचवा रहे थे| अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब बैरियर तोड़ बाबा के पार्टी प्रत्याशी रहते इसी चोक में नारा लगाया ” लाल किले पर कमल निशान, अबकी जीतेंगें सलमान” लोक सभा चुनाव में बेचारे धीरपुर नरेश इसी आकलन से गच्चा खा गए|
मुंशी इसी बीच कई जोड़ा पान डकार चुके थे| पीक थूक कर बोले अरे मियाँ काहे जी हलकान करते हो बात तो तब बनी मानो जब दीदी के आने से पल्ला गल्ला मंडी और ठंडी सड़क की रौनक कुछ कम हो| वहां तो सबके सब सीमा तीत विश्वास से भरे बैठे हैं| जैसे विधान सभा की सदस्यता का प्रमाण पत्र लेना ही शेष हो| अपना ही नेता कब चिकोटी काटने लगे समझ में नहीं आता ? साइकिल वालों के सम्मलेन में अमृतसर कोच के अटेंडेंट ने जबर्दस्त नारेबाजी के बीच दहाड़ते हुए कहा अब चुनावी आरक्षण में कोई परिवर्तन नहीं होगा| बेचारे बांकी लोग रोते झींकते बाहर निकल आये| एक होटल में शरण ली और कलमकारों से अपना दुखडा रोया|
मियाँ इस बार बीच में ही बोल पड़े| सचमुच मुंशी मजा आ गया| सैफई की गद्दी बड़ी न्याय प्रिय है| विक्रमादित्य के सिंघासन की तरह जो दुत्कार कर भगाए गए थे| बैकुंठ धाम में अपने घाव सहलाकर आगे की रणनीति बना रहे थे| प्रदेश में विरोध का ठेका लिए जसवंत नगर के लाडले स्वयं आ गए सांत्वना देने| आशीर्वाद की मुद्रा में बोले मेरे भक्तगणों तू ज़रा भी दुखी मत हो| तुम्हारी भक्ति और निष्ठा से में बेहद प्रसन्न हूँ| तुम्हारी पूजा व्यर्थ नहीं जायेगी| जो इतरा रहे हैं उन्हें इतराने दो| सब लोग आगरा पहुँचो| एक महीन में हम पूरी की पूरी आरक्षण सूची पर फिर से विचार करेंगें| मुंशी बोले इसका जिसे जो मतलब निकालना हो निकाले फिलहाल एक महीने के लिए तुम भी खुश और हम भी खुश|
मुंशी मियाँ के और करीब खिसकते हुए बोले तुम्हे हाँथ वाले रनबांकुरों की खबर है| पूरे इत्मीनान से अपनी गोटें चल रहे हैं| कैसे भी हो जीतने के लिए जो कुछ करना पडेगा करेंगें| आखिर हम कोई लल्लू पंजू तो हैं नहीं| सियासत के गली-कूंचों में घूमने फिरने का 125 साल का अनुभव् है| सभी को मालूम है कि प्रत्याशी कौन होगा| परन्तु अधिकृत घोषणा की कोई जल्दी ही नहीं है| साइकिल हो चाहे हांथी दोनों सवारों की पत्रावलियां पडी है हमारी मेज पर दिखते नहीं रोज सवेरे लखनऊ में गरजते हैं हमारी षड्यंत्रकारी गतिविधियों पर| परन्तु क्या मजाल कि समर्थन वापसी की हिम्मत दिखाए और तो और हमारे दिग्गज नेताओं के मुकाबले ऐसे प्रत्याशी हमें खुश करने के लिए हमें उतार दिए हैं जो हमसे कम लड़ेंगें अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं से लड़ते हुए उनके मनोबल को तोडते रहेंगें| मियाँ बोले मुंशी यह सब देखकर अब यहाँ मन नहीं लगता| चलो चल फिरकर देखेंगे|
कम्पिल की कथा-
पुराण प्रसिद्द और इतिहास की बेशुमार धरोहर अपने में समेटे कम्पिल नगरी की कथाएं मन को जितना रोमांचित और प्रफुल्लित करते हैं उसके धुल धूसरित वर्तमान पर उतना ही रोना आता है| कम्पिल को लेकर नेताओं ने चुनाव के पहले और बाद में जितने सपने दिखाए वह सब के सब मुंगेरीलाल के सपने ही सावित हुए| कुछ भी हकीकत में बदलता काया पलट हो जाती कम्पिल की| लेकिन हमने तो सपनों को सार्थक करना सजाना सीखा ही नहीं| पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह द्वारा उद्घाटित कम्पिल कताई मिल की दुर्दशा देख लीजिए| आप स्वयं जान जायेंगें कि हम और हमारे नेता विकास के प्रति कितने प्रतिपद्द हैं| वह तो कहिये धार्मिक नगरी है साधू-संतो का डेरा है बसेरा है| जैन धर्म्लाम्बियों में अपनी आस्था को लेकर कभी कम न होने वाला जूनून है| मंदिर है गंगा है इसलिए थोड़ा मन चंगा है| लेकिन बांकी ऐसा कुछ नहीं दिखता जिससे यह लगे कि इस प्राचीन नगरी के गौरव और गरिमा को बढाने के लिए किसी के पास समय है| विस्तार से फिर कभी|
कायमगंज की व्यथा-
लगभग चौदह वर्ष के वनवास के बाद पितौरा के दीपू को जब दिल्ली की हुकूमत में हिस्सा मिला तब पूरा का पूरा जिला और विशेषकर कायमगंज रोमांचित होकर सपना देखने लगा| हमारी आदत है सपने देखने की खयाली पुलाव पकाने की| नेताओं की आदत है उसमे छौंक लगाने की| पूरे दो साल हो गए है ज़रा हिसाब लगाकर बताईये जिले और विशेषकर कायमगंज की किस ज्वलंत समस्या का समाधान हो गया| जिसमें आम आदमी और बेरोजगार नौजवानों को कोई राहत मिली हो| हां हुकूमत में साझेदारी होने, पार्टी पत्रिका के संपादक होने, मसौदा कमेटी के सरकारी सदस्य होने, बनारस सम्मलेन में राजनैतक प्रस्ताव पेश करने जैसे अनेक अपायों से महत्वपूर्ण मंत्रालय देकर पार्टी ने सरकार ने आपकी कद काठी तो बड़ाई परन्तु अपने सिवाय ज़ुबानी जमा खर्च के अमर सिंह को गले लगाने और विरोधियों की लानत मलानत करने के अपने फर्रुखाबाद और कायमगंज के लिए क्या किया? हां धुन के आप पक्के हैं जो ठान लेते हैं उसे पूरा करके ही दम लेते हैं| आपने तय कर लिया है आप फर्रुखाबाद और कयाम्गंज के लिए उतना भी नहीं करेंगें जितना आपके पूज्य पिता जी ने अपने कार्यकाल में किया|
आपने एक बात और तय की है कायमगंज की सीट आरक्षित हो गई तो क्या अबकी सदर सीट पर कब्जा कर अपना पुरुषार्थ दिखाने की आपने ठान ली है| पर भैया ज़रा संभल कर| लोक सभा चुनाव की तरह मतदान प्रतिशत कम रहा तब तो भगवान जाने| महंगाई और भ्रष्टाचार से जनता फूंकी बैठी है कहीं ऐसा नहीं कि फिरोजाबाद की कहानी फर्रुखाबाद में दोहरा दी जाए| वैसे एक बात और जान लो यह जनता है सब जानती है चाहे जितने प्रपंच करो तालमेल करो अबकी लोगों ने जमकर मतदान करने की ठान ली है| ऐसे में बड़े-बड़े वट वृक्ष उखड जाते हैं| फर्रुखाबाद को आपके उत्कर्ष पर जलन नहीं है| मौक़ा दस्तूर दोनों हैं| ताकत और अधिकार दोनों का तालमेल है| कुछ ऐसा कर डालो टीपू भाई कि आने वाली नस्लें भी तुम्हे आदर और प्रेम से याद करें| अन्यथा धीरपुर नरेश, हरदोई के लाल, चौथे खम्बे के लम्बरदार, चौथी दुनिया के बेताज बादशाह बैरियर तोड़ बाबा की तरह लोग तुमसे भी यहीं कहने लगें-
देश तो आजाद हो गया किन्तु तूने क्या किया,
घूसखोरी ढील और सत्ता धंता भाई भतीजा,
बाद महज तेजी और यह बाजार काले|
क्रोध से सब दूषणों की फेर माला
दूसरों को गालियों से पाट डालागालियाँ तुझको न कोई दे सके
इसके लिए बोल तूने क्या किया|
और अंत में-
हाई स्कूल परीक्षा में टॉप करने वालों को हार्दिक बधाई| इन मेधावियों ने अपना अपने परिवार और अपनी शिक्षा संस्था सहित अपने जिले का भी नाम रोशन किया| खूब आगे बढ़ो सपने देखो और साकार करने के लिए जी तोड़ मेहनत करो| सफलता तुम्हारी झोली में होगी| फिर से ढेर सारी बधाईयां की बरसात का जमकर आनंद लो| परन्तु अपने लक्ष्य से कभी मत विचलित होना|
लगे हांथो जिला विद्यालय निरीक्षक उनके सहयोगियों और नक़ल माफियाओं और महा मदन मोहन मालवीय के कलजुगी अवतारों मनी मेकिंग मशीन को जिले में शिक्षा के स्तर को सुधारने, नक़ल युक्त परीक्षा संपन्न कराने की ढेरों बधाईयां| इन महानुभावों की मेहरवानी से हमें परीक्षा परिणाम की प्रदेश स्तरीय रेकिंग में सत्तरवां स्थान मिला है| थोड़ी मेहनत और कर लीजिए इस वर्ष पहला स्थान मिल जाएगा| इससे क्या फर्क पडता है| पहला स्थान ऊपर से हो चाहें नीचे से| हम तो दूसरों को आगे बढ़ाते देख प्रसन्न होते हैं| आने वाले विधान सभा चुनाव में ऐसे कई महानुभाव पैसा बसूल कर नक़ल की खुली छूट का क़ानून विधान सभा में बनाने के लिए चुनाव मैदान में है| देखना है जनता उनका क्या हाल करती है|
जय हिंद………….