अन्ना हजारे और बाबा रामदेव का आन्दोलन

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अन्ना हजारे और बाबा रामदेव का आन्दोलन
राजनीति के रंगा बिल्ला दोनों खुश
काला धन जहां का न हो
रोके नहीं रुकेगा लोकतंत्र का सुप्रभात

राजनीति में और विशेषकर सत्ता संघर्षों में दोस्ती और दुश्मनी का कोई समय नहीं होता| स्वार्थ सध रहा हो तो मेल है दोस्ती हैं गलबहियां है| स्वार्थ न सध रहा हो तो आधी रात में निर्दोषों पर बर्बरता, गिरफ्तारी, आंसूगैस, लाठीचार्ज और विशेषणों से युक्त अनुपम शब्दावली| जन लोकपाल बिल और विदेशों में देश के काले धन भ्रष्टाचार आदि के ज्वलंत मुद्दों को लेकर अन्ना हजारे और बाबा रामदेव द्वारा चलाये जा रहे आन्दोलन में मेल मिलाप और क्रूरता और निर्ममता तानाशाही का जो खेल दिल्ली में चल रहा है वह राजनीति में निरंतर आ रही गिरावट का ज्वलंत और नवीनतम प्रकरण है|

दिल्ली में चले इस घटनाचक्र ने और आगे की सम्भावनाओं ने पूरे देश को कलंकित किया है| साथ ही लोकतंत्र में धिनौनी और निक्रस्थ्तम परम्पराओं का सर्जन किया अहै| अच्छी और स्वागत योग्य बात यह है कि इस सबके बाद भी अन्ना हजारे और बाबा रामदेव द्वारा छेड़ा गया जन आंदोलन जन की आकांक्षाओं का प्रतीक बनता जा रहा है|

कौन हारा कौन जीता? इसकी विवेचना और व्याख्या लोग अपने ढंग से कर रहे हैं और करेंगें| सबके अपने तर्क और निष्कर्ष होंगें| परन्तु बाबा रामदेव के आंदोलन के प्रबल से प्रबल विरोधी भी चार जून की रात रामलीला मैदान दिल्ली में हुई पुलसिया कार्रवाई और दमन चक्र को यदि सही और जरूरी ठहराते है तब फिर उनकी बुद्धि पर दया नरस के अलावा कुछ भी नहीं कहा जा सकता| सर्वोच्च न्यायालय ने मात्र मीडिया रिपोर्ट के आधार पर स्वाताह संज्ञान लेकर इस घटना के संदर्भ में दिली और केंद्र सरकार को नोटिस भेजकर न्याय पालिका की सर्वोच्चता निर्भीकता और निष्पक्षता को रेंखाकित किया है| यह स्वागत योग्य कदम है|

अन्ना हजारे ने जब जन लोकपाल बिल को लेकर आंदोलन प्रारम्भ किया| तब उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को लेकर जाने क्या कहा गया| परन्तु अन्ना संत की तरह अविचलित और निर्विकार रहते हुए अपना कार्य कर रहे हैं| सरकारी षड्यंत्रों के बाद भी उनके प्रति लोगों की श्रद्धा और आस्था बढ़ती जा रही है|

बाबा रामदेव पर भी भाजपा और संघ से सम्बद्ध होने के आरोप लगाए जाते रहे| चार जून की रात में हुए दुर्भाग्य पूर्ण घटना चक्र के बाद इन आरोपों में आक्रामकता और तेजी बढ़ती जा रही है| मतलब साफ़ है कि बाबा के विरोधी और सत्ता शीर्ष पर बैठे लोग अपने राजनैतिक स्वार्थों के कारण यह अभियान चला रहे हैं| आने वाले दिनों में यदि बाबा का आंदोलन तेजी पकड़ता है तब फिर निंदा, आलोचना और आरोपों के इस अभियान में और तेजी आयेगी| हरिद्वार में कल बाबा के मंच पर उमा भारती सहित साधू संतों की उपस्थित तथा उमा भारती की भाजपा से निरंतर बढ़ती नजदीकियों ने तो बाबा के विरोधियों को वह सारा साजो सामान मुहैया कर दिया जो वह चाहते हैं|

बाबा यह बार बार घोषणा करते हैं कि उनकी न तो कोई राजनैतिक आकांक्षा है न ही वह किसी राजनैतिक दल विशेष से कोई संबंध रखना चाहते हैं| परन्तु बाबा के आंदोलन को लेकर भाजपा, विहिप और संघ की गतिविधियाँ बाबा के विरोधियों को खुश होने के अवसर प्रदान कर रही हैं| यह वही भाजपा है जिसने केंद्र में अपनी हुकूमत के दौरान विदेशी बैंको में देश के काले धन की वापसी को लेकर शायद ही कोई प्रयास किया हो| आज भी भाजपा और उनके सहयोगी संगठन अपने स्तर से अपनी विशिष्टता बनाने के मकसद से ही सही यह घोषणा करने की स्थित में नहीं है कि उनसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े किसी भी व्यक्ति का विदेशी बैंको में कला धन नहीं है| अकेली भाजपा ही क्या कांग्रेस सहित सभी राजनैतिक दलों, वरिष्ठ नौकरशाहों, व्यापारियों, उधोगपतियों, टेक्नो केंटों, कारपोरेट दिग्गजों की भी कमोवेश यही स्थित है|

इस सबके बावजूद जिस प्रकार से पूरी की पूरी भाजपा इस मुद्दे को शिखर से लेकर मूल तक उठाने, भड़काने और भुनाने में लगी है| उसे देखकर बाबा की बारबार इनकारी के बाद भी दाल में कुछ काला होने की आशंका बलवती होने लगी है| कांग्रेस तो दाल में काला ही काला होने का अभियान चलाने की तैयारी भाजपा की तर्ज पर कर रही है| काले धन की वापसी से भाजपा, कांग्रेस या किसी राजनैतिक दल को कुछ भी लेना-देना नहीं है| हाँ आंदोलन की तेजी के साथ ही साथ अपने निहित स्वार्थों की पूर्ती के प्रयास तेज हो गए| बाबा के समर्थक और विरोधी दोनों ही आंदोलन को अपने राजनैतिक हितों को साधने के प्रयास में कमर कास कर तैयार हो गए हैं| साम्प्रदायिकता का मुद्दा भी उछाल दिया गया है| कांग्रेस और भाजपा को तो लगता है मुंहमांगी मुराद मिल गयी है|

विदेशी बैंको से देश का काला धन कब वापस आयेगा| यह तो अभी नहीं कहा जा सकता परन्तु भाजपा और कांग्रेस दोनों इस बात को लेकर खुश है कि उन्हें बैठे ठाले मिशन २०१२ और २०१४ के लिए लंबा फ़ायदा पहुंचाने वाला मुद्दा मिल गया| कथित रूप से नित नए रहस्य उजागर करने की बातों के साथ बाबा की मुखरता, दमन, उत्पीडन की प्रतिक्रया स्वरुप देश भर में उमड़ी जन सहानुभूति को देखकर भाजपा गदगद है| वहीं कांग्रेस सांप्रदायिकता से लड़ने के लिए अपने पुराने इतिहास की दुहाई ही नहीं दे रही| इस मुद्दे को भाजपा पर वार करके उसे धार भी दे रही है| नतीजतन रंगा बिल्ला दोनों ही बाबा के आन्दोलन को लेकर मुंहमांगी मुराद पूरी होने की तर्ज पर खुश है| बात अन्य राजनैतिक दलों की करें तो फिलहाल इस समय तो सबके सब दमन चक्र के विरोध में प्रतिक्रया देकर शांत हैं|

सच पूंछो तो यह शुतुरमुर्गी सोच है| आलोचना और बयानबाजी की रेट में हम अपनी गर्दन छुपाकर भले ही अपने आपको खुश फहमी में डाले रहे परन्तु वास्तविकता यही है कि अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के आन्दोलनों ने जन सामान्य के बीच सभी राजनैतिक दलों और लगभग सभी नेताओं की विश्वसनीयता पर बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह लगा दिया है| आप खुश फहमी के शिकार हो सकते हैं| राजघाट के सत्याग्रह में आप मौज-मस्ती ही नहीं नाच गाना भी कर सकते हैं| कांग्रेस नेता जनार्दन द्विवेदी की पत्रकार वार्ता में हुयी जूता फेंकने की घटना को आप सरकार के प्रति जन आक्रोश की अभिव्यक्ति बताकर प्रसन्न हो सकते हैं|

इसी क्रम में सत्ता में बैठे लोग प्रधानमंत्री को सबसे बड़ा सन्यासी और सोनिया गांधी को त्याग की देवी बताने का अभियान चला सकते हैं| बाबा रामदेव को संघ और भाजपा का मुखौटा बताकर उनके आन्दोलन को साम्प्रदायिकता फैलाने का अभियान बता सकते हैं| परन्तु कल तक आप इन्ही बाबा रामदेव का सारे प्रोटोकाल के विपरीत वरिष्ठ केंद्रीय मंत्रियों के साथ स्वागत वार्ता कर रहे थे| इन्ही अन्ना हजारे और उनके साथियों के साथ जन लोकपाल बिल के मसौदे को लेकर बैतःके कर रहे थे| कल तक सब ठीक था आज सब गलत हो गया| देश की जनता सबकी करतूतों को देख रही हैं|

सत्ता पर बैठे और सत्ता के लिए कुछ भी करने को तैयार बैठे अहंकारियों चुनाव परिणामों की समीक्षा करो| कम मतदान और वोटों के बंटवारे के चलते आपकी सरकारे और आपका विरोध सब का सब अल्पतम में है| देश की जनमानस अन्ना और बाबा के आन्दोलन के साथ पूरी ईमानदारी से है| उसके मुखर विरोध के मुकाबले उसके शांत और निर्विकार तटस्थ होने या लगने वाला स्वरूप बहुत ही विशाल और कल्पना नीति है| ठीक वैसे ही जैसे आपातकाल के समर्थकों और विरोधियों की कल्पना से परे थे| तुम सब अपने-अपने निहित स्वार्थों का खेल खेलते रहो| परन्तु आने वाले दिनों में प्रबल जन आक्रोश के मूर्त रूप में बढ़ा हुआ मतदान प्रतिशत सभी को उनकी औकात बता देगा| गन्दगी चाहे जिस तरफ से हो ताली में बैठ कर खत्म हो जायेगी| नतीजतन सच्चे और अच्छे लोकतंत्र का धवल शुद्ध स्वरुप जन आकाक्षाओं को पुष्पित पल्लवित करेगा|

अन्ना और बाबा द्वारा छोड़े गए प्रबल जन आन्दोलन की बहुत शीघ्र ही यही परिणित देश दुनिया के सामने आने वाली है|