फर्रुखाबाद:(जेएनआई ब्यूरो) भारत में रामराज्य की आवश्यकता है। जब राजा और प्रजा दोनो अनुशासित रहकर सत्कर्म करेंगे तो स्वतः ही रामराज्य स्थापित हो जाएगा। मानस विचार समिति के बैनर तले डा.रामबाबू पाठक के संयोजन में पंडा बाग के सत्संग भवन में चल रहे|
मानस सम्मेलन के अन्तिम दिन उन्नाव से पधारे मानस मनोहर कविता कांत वाजेपयी ने श्रीराम राज्याभिषेक प्रसंग पर कहा कि श्रीराम रावण युद्ध का अन्त हुआ, रावण मारा गया।श्रीराम वनवास के दौरान मृगचर्म या कुश आसन पर बैठे थे, इसलिए राजतिलक से पहले श्रीराम को वरासन यानि दूल्हे के आसन पर बैठाया गया। श्रीराम के मन में अंतर द्वंद था कि 14 वर्ष बाद ही अयोध्या पहुंचना था, जिससे राजा दशरथ के वचनों का पालन हो सके। इधर भरत कही राम के देर से पहुंचने पर प्राण न त्याग दे। श्रीराम ने हनुमान को भरत को सूचना देने अयोध्या भेजा कि श्रीराम अयोध्या आ रहे हैं। बाद में श्रीराम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान सभी समर्थकों सहित अयोध्या के लिए पुष्पक विमान से रवाना हुए। विमान से उतरकर अयोध्या राजभवन में श्रीराम सभी माताओं, भाईयो से मिले। श्रीराम ने राज्याभिषेक से पहले सभी भाइयों की जटाए सुलझाकर अपने हाथो से नहलाया। गुरु वशिष्ठ ने पुराने आसन जिसमे हरिश्चंद्र,रघु, दशरथ बैठे थे। उसमे न बैठाकर ब्रह्माजी से दिव्य आसन मांगा। ब्रह्माजी के पुत्र गुरू वशिष्ठ ने जन-जन के नायक श्रीराम का राजतिलक करके मुकुट पहनाकर दिव्य आसन पर बैठाया। प्रथम तिलक वशिष्ठ मुनि किन्हा, पुनि सब विपरन आयुष दीन्हा।सभी संतो ने वैदिक मंतोचार से श्रीराम का दिव्य आसन पर राजतिलक किया। अयोध्या के सभी नर नारी श्रीराम के राजा बनने पर हर्षित हो गए माताओं कौशल्या,सुमित्रा,कैकेई भाईयो लक्ष्मण, भरत,शत्रुघ्न,हनुमान, विभीषण, सुग्रीव, जामवंत सभी वानरो से राजभवन सुशोभित हो रहा था। भक्तो ने भी सत्संग भवन में श्रीराम का तिलक करके राज्याभिषेक किया। उन्होंने भजन प्रस्तुत किया, सीता रामजी की प्यारी राजधानी लगे, मुझे मीठा मीठा सरयूजी को पानी लागे। डा.शिव ओम अंबर ने इस अवसर पर कहा कि जैसे भगीरथ के साथ गंगा जुड़ी है इसी प्रकार डा. पाठक की 36 वर्षो से रामचरित्र मानस की तीर्थ यात्रा चल रही है यह यात्रा डा. पाठक के अन्तश से जुड़ी है। कविता प्रस्तुत की, कन्हा राजकीय भोज कन्हा झूठे बेर,दीनबंधु बैठ गए, शवरी के कक्ष में। नगर विधायक मेजर सुनील दत्त द्विवेदी की पत्नी अनिता द्विवेदी ने भजन प्रस्तुत किया, जगत के रंग क्या देखू तेरा दीदार बाकी है, यू भटकू गैरो के दर्पण में तेरा दरबार बाकी है। अंत में सभी मानस विद्वान महेश चंद्र मिश्र इंदौर, मप्र. , पीलाराम शर्मा दुर्ग, छत्तीसगण, अरुण गोस्वामी झांसी, कविताकांत वाजपेयी उन्नाव, किरन भारती हमीरपुर,मानस संयोजक डा.रामबाबू पाठक,तबला वादक नंदकिशोर पाठक को शाल ओढ़ाकर माल्यार्पण कर गिफ्ट भी प्रदान किया गया। तबले पर संगत नंदकिशोर पाठक ने की। संचालन पंडित रामेंद्र मिश्रा ने किया। ज्योति स्वरूप अग्निहोत्री ,सुरजीत पाठक उर्फ बंटू, महेश चंद्र चतुर्वेदी, रामजीपाठक, शशांक पाठक, प्रभुदत्त मिश्रा, अनुराग पाण्डेय आदि रहे|