‘फर्रुखाबाद परिक्रमा’- ये इलाका तो भाभीजी, मामा भांजे और उस्ताद के लिए..

EDITORIALS

कम्पिल से कन्नौज तक धमाल ही धमाल

मुंशी हर दिल अजीज दौड़ते भागते हाँफते त्रिपौलिया चौक पर आकर रुके| पानी पिया पान खाया और पटिया पर बैठ गए| थोड़ी देर बाद रेलवे रोड, नेहरू रोड की ओर देख लेते परन्तु मियाँ झान झरोखे कहीं दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे थे| लोहाई रोड से नाला मछ रट्टा तक का इलाका तो मामी जी, मामा, भान्जे और उस्ताद के लिए आरक्षित है| उधर जाने और देखने की हिम्मत नहीं पड़ी|

मुंशीजी बेचारे कब तक चुप बैठते| एक पुराने अखाड़ची पहलवान टाईप सज्जन पर बड़े प्रेम से दोस्ती का शहद टपकाते हुए बोले- भाई साहब ! बहुत दिनों बाद दिखे कहिये क्या हालचाल हैं| पहलवान शायद पहले से ही फुंके बैठे थे, तल्ख़ अंदाज में बोले हमार हाल और चाल को तुम हमार ऊपर छोड़ दो अपनी बताओ किसी को चैन से बैठने दोगे कि नहीं| मुंशी तुम्हारी और मियाँ जी की जोड़ी बनवास पर थी तब तक जिले और शहर में सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था| या यूं कहें कि दिख नहीं रहा था| परन्तु अब तुम दोनों………|

इसी बीच मियाँ झान झरोखे जाने कहाँ से आ टपके पहलवान के कंधे पर जोर से हाँथ मारते हुए बोले| अबे क्या हो गया मोटे? ठीक ठाक कुछ नहीं था हम नहीं थे सब चुप थे| लूट मची थी मनमानी का बोलबाला था| कम्पिल से कन्नौज तक जाने कितने छोटे बड़े गिरोह बहुरूपियों के खेमे में धमाल मचाये थे| नेता अफसर पुलिस दलाल, सब हो रहे थे मालामाल अब सुधरने का मौक़ा दे रहे हैं| वोटर जाग रहा है अब 45 या 50 प्रतिशत वोट नहीं पड़ेगा| वोट पड़ेगा 80,85 और 90 प्रतिशत| राजनीति में जात-पात की, साम्प्रदायिकता की, भ्रष्टाचार की, महंगे चुनाव की, धन बल बाहुबल, बेईमानी भ्रष्टाचार की जो गन्दगी तुम सब ने मिलकर फैलाई है मतदाता मिलकर इसबार उन सब को साफ़ करने का मन बना चुका है| पहलवान सकपका गए बोले भैया हमें माफ़ करो, हमें बख्शो| हम तो आज से ही दुआ करेंगें कि आप दोनों अपनी प्रतिज्ञा पूरी करें| हमें अच्छे सच्चे जन प्रतिनिधि अफसर और पुलिस मिले|

मियाँ और मुंशी यह कहते हुए अपने-अपने घर चले गए-

कबिरा खड़ा बाजार में सबकी मांगे खैर,
न काहू से दोस्ती न काहू से बैर|

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चेला चला गुरू की चाल-

एक जिले के दो जिले भले ही बन गए हो कन्नौज और फर्रुखाबाद को अलग नहीं किया जा सकता| दिगम्बर सिंह यहाँ से भले ही कन्नौज चले गए हों परन्तु उनकी बुनियाद यहीं की है| जिले के सबसे बड़े कालेज वद्री विशाल के छात्र संघ अध्यक्ष रहते उनकी पहिचान बनी तब दोनों जिले एक थे| फिर वह ठेकेदारी और सहकारिता से जुड़े| सहकारिता के दिग्गज नेता छोटे सिंह यादव उस समय मुलायम सिंह यादव के स्थानीय स्तर पर आँख और कान ही नहीं थे मिनी मुख्यमंत्री थे| दिगंबर सिंह उन्ही छोटेसिंह के प्रमुख सिपहसलारों में थे| छोटा कद बेमिसाल तेजी| छोटे सिंह मुलायम सिंह का गुणगान करते करते आगे ही बढ़ते चले गए| परन्तु अचानक जाने क्या हुआ? पहले गुरू का मोह भंग हुआ सपा और मुलायम सिंह से| वह बसपा में चले गए अब दिगंबर सिंह का मन विचलित हो गया| सपा पर परिवारवाद का आरोप लगाते हुए कांग्रेस का दामन थाम लिया| देखना है आने वाले दिनों में चेला गुरू को कांग्रेस में लाता है या गुरू चेले को बहन जी के क़दमों में लाकर डालते हैं|

बनवास के बाद किसी का खत्म किसी का शुरू-

त्रिपौलिया चौक पर मई के महीने में इस बार गहमा गहमी कुछ ज्यादा रही| हर एक के पास अपनी खुशी के अपने कारण थे, और हैं| कुछ बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना जैसे नज़ारे पेश कर रहे हैं|

त्रिपौलिया चौक मजदूरों के शहर में सबसे बड़ी मंडी है जसमई, आवास विकास, घटियाघाट आदि पर भी छोटे बड़े इस तरह के केंद्र बन गए हैं| परन्तु चौक का नजारा सुबह से लेकर देर रात तक अपनी अलग पहिचान और मस्ती रखता है| मई दिवस पर प्रति वर्ष यहाँ से लाल सलाम वालों का जमघट जुटता है| हुआ सब इस बार भी परन्तु बाम पंथियों के तेवर इस बार ढीले-ढीले से थे| सपाईयों के सरफुटौहल के चर्चे यहाँ बराबर सुनने को मिलेंगें| एक ग्रुप जाता तथा दूसरा आकर जगह घेर लेता| पानी, बिजली, पेट्रोल दाम महंगाई, भ्रष्टाचार को लेकर चुनावी वर्ष में इसबार सरगर्मियां मई के बाद भी जारी रहेंगीं| ऐसा माहौल बनता जा रहा है|

13 मई को बसपाई सब कुछ अच्छा अच्छा ही देख सुन और बता रहे थे| कांग्रेसी अंधेर नगरी का राग अलाप रहे थे| बहन जी के कार्यकाल के चार साल पूरे हो गए| पांच राज्यों के चुनाव परिणाम जैसे ही आने शुरू हुए मायावती और ममता बनर्जी की तुलना शुरू हो गयी| कांग्रेसियों के अलावा किसी के पास खोने पाने को कुछ विशेष था ही नहीं| सो वे वेचारे मुंह लटकाए हंसी दबाये रुक-रुक चहल कदमी करते रहे| भाजपाईयों को झटका जरूर थोड़ा जोर का लगा| सोचते थे केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल में कुछ हाँथ लग जाता तो सिंहनाद, सिंहगर्जना, विजय वाहिनी, शंखनाद जैसा कुछ रिहर्सल हो जाता| बेचारे मन मसोस कर रह गए| 17 मई वुद्ध जयन्ती की जवर्दस्त धूमधाम रही त्रिपौलिया पर|

कांग्रेसी राजीव गांधी की पुण्य तिथि से निपटे ही थे किसी ने याद दिलाया कि कल (22 मई) सलमान साहब का बनवास खत्म होने की दूसरी वर्ष गाँठ है| उपलब्धियों का लेखा-जोखा दर्जनों प्रतिनिधि टटोलने लगे हैं| हर विभाग के प्रतिनिधि ने अपने पत्रों ज्ञापनों की शिकायत का बस्ता खोला परन्तु नतीजा वही ढाक के तीन पात, ठनठन गोपाल| एक पुराने कांग्रेसी बोले काहे दुखी होते हो अपने सलमान साहब कोई मन मोहन सिंह से ज्यादा काबिल तो है नहीं| जब उनके अच्छे भले रिकार्ड को महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और तिहाड़ जेल में बढ़ते वीआईपी की भीड़ ने बदरंग कर दिया तब फिर बेचारे सलमान साहब कर भी क्या सकते हैं- बात भी सही है|

कोई आलमस्त कोई माल मस्त
कोई मस्त फकीरी बाने में |
हम इधर मस्त, तुम उधर मस्त
क्या रखा है दिल को जलाने में|

और अंत में-

घर में दो ही प्राणी,
उसमे भी पुरखिन कानी|
मेरी जेबों में सभी पार्टियां है,
वोटर भैया समझे- बड़ी मजबूरियाँ है|
कौन विभाग है वेईमानी में सबसे आगे| कौन नेता है सबसे शरीफ, कौन अफसर है सबसे ज्यादा कर्मठ| किस पार्टी में कौन है सबसे निष्ठावान| किस योजना में और निर्माण में नहीं हुआ बन्दर बाँट से लेकर और अनेक विषयों पर आने वाले दिनों में आपसे भेंट करने का इरादा है| कहाँ हमसे चूक हुई और कहाँ आपसे चूक हुई ? बिना किसी पूर्वा गृह के उसपर चर्चा सार्थक चर्चा, रचनात्मक विचार विमर्श करेंगें| लेकिन यह सब आपकी मदद के बिना संभव नहीं है| आईये और फर्रुखाबाद परिक्रमा में चलिए हमारे साथ| जागिये और जगाईये| अच्छे चुनाव परिणामों के लिए मतदान प्रतिशत बढाने का संकल्प कीजिये|

जय हिंद………..

(लेखक वरिष्ट पत्रकार के साथ वकील व समाजवादी चिंतक है)

प्रस्तुति-

सतीश दीक्षित (एडवोकेट)
1/432, आवास विकास कालोनी फर्रुखाबाद

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