फर्रुखाबाद:(जेएनआई ब्यूरो) केन्द्रीय कारागार में चल रही श्रीमद्भागवत कथाज्ञान यज्ञ के चतुर्थ दिवस पर प्रातःकाल की कथा पर बंदियों ने श्रवण किया| जिसमें बताया गया की अहंकार विनाश का कारण है। भागवत कथा मनुष्य को अहंकार रहित जीवन जीने की कला सिखाती है।
कथा में बताया गया कि श्रीमद् भागवत कथा का सुनने का व्यक्ति जब संकल्प करता है उसी समय परमात्मा उसके हृदय में आकर निवास कर लेते हैं। भगवान की कथा ऐसी है इसका ज्यों-ज्यों पान करते हैं त्यों-त्यों इच्छा बढ़ती जाती है। कथा रस कभी घटता नहीं निरन्तर बढ़ता रहता है। नित्य नए आनन्द की अभिवृद्धि होती रहती है। श्रीमद् भागवत अध्यात्म दीपक है जिस प्रकार एक जलते हुए दीपक से हजारों दीपक प्रज्जवलित हो उठते हैं उसी प्रकार भागवत के ज्ञान से हजारों, लाखों मनुष्यों के भीतर का अंधकार नष्ट होकर ज्ञान का दीपक जगमगा उठता है। भगवान का आश्रय ही सच्चा आश्रय है। कथा में आचार्य रमेश चन्द्र पाण्डेय ने अजामिल उद्धार, वृत्तासुर, ऋषि दधीच के त्याग, सन्त दादू, सन्त नामदेव एवं संत एकनाथ के प्रसंगो का वर्णन किया गया। श्रीमद्भागवत की पौराणिक कथाएं सुनाते हुए आचार्य ने कहा कि मंदिर में जाये “तो भगवान को मागें भगवान से न मांगे”। नारी सृष्टि स्वरूपा है अतः नारी को कभी भी प्रताड़ित नहीं करना चाहिए। मोह माया का कारण लौकिक वस्तुओं का आदान-प्रदान है जिसके कारण जीव सांसारिक बन्धनों में बंधा रहता है। मध्यान्ह की कथा में आचार्य के द्वारा देवासुर संग्राम, समुद्र मंथन, भगवान नारायण के मोहिनी स्वरूप, वामन अवतार के प्रसंग सुनाये गये। कथा के विराम से पूर्व आचार्य द्वारा कंस की कारागार में भगवान द्वारिकाधीश के प्राकट्य एवं भगवान के दिव्य एवं अलौकिक चतुभुर्ज रूप का वर्णन किया गया। चतुर्थ दिवस के कथा विराम पर जेल के वरिष्ठ अधीक्षक प्रमोद कुमार शुक्ल द्वारा श्रीमद्भागवत पूजन अर्चन एवं आरती की गयी। इस अवसर पर योग प्रशिक्षक रामकृपाल मिश्र, उपकारापाल सुरजीत सिंह, जयदीप त्रिवेदी, पवन मिश्र, शिवम अग्निहोत्री आदि रहे।