फर्रुखाबाद:(जेएनआई ब्यूरो) विधानसभा चुनाव की दास्तान भी बहुत ही अजीब है। एक सीट के लिए पांच -पांच ,आठ-आठ, दस-दस लोग दिन रात एक करके अपने समर्थको के साथ जनता से मतदान करने के लिए किसी हद तक जाने को तैयार है वही मतदाता भी सभी के वादों को सुनकर अपनी मतलब की रोटिया सेंकने में जुटे है| मतदान होने में सिर्फ कुछ समय ही बचा है। किसी भी दल का या निर्दलीय नेता जीत हासिल करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। फिलहाल सभी को अपनी जीत दिखाई दे रही है। हालांकि सब जानते हैं कि जीत का सेहरा सिर्फ एक के सिर ही सजेगा बाकी सबकाेे निराशा ही हाथ लगेगी लेकिन जब तक हार नहीं होती तब तक सभी जीत का एहसास कर रहे हैं।जिले मे चुनाव का माहोल चौसर के खेल की भांति प्रतीत हो रहा है जिसमे सारे प्रत्याशी चौतरफा से मतदाताओं को घेरने में लगे है कही जातीय गोलबंदी से जीत के समीकरण बनाने की सियासत हो रही है।कही अपने अपने चुनावी वादों की सियासत हो रही है| विधानसभा चुनाव का रण जीतने के लिए समर सज चुका है। सियासी पहलवान चुनावी दंगल में किस्मत आजमाने के लिए कूद पड़े हैं। हर प्रत्याशी को उसकी जीत पक्की लग रही है।चुनावी दंगल में जीतने के लिए पार्टी और प्रत्याशियों के वादों में विकास अहम मुद्दा है। जनता की दुखती रग पर हाथ रखकर वह जीतने के लिए जतन कर रहे हैं लेकिन सियासत के चश्मे से देखें तो राजनीति जातिगत समीकरणों के ही इर्द-गिर्द घूम रही है। प्रत्याशियों को उतारने वाली पार्टियां भी इस बात को बहुत ही बखूबी से समझ रही हैं। जिसके चलते इस बार जातिगण फैक्टर को ध्यान में रखते हुए अपने सियासी सुरमाओं को मैदान फतह करने के लिए उतारा है। प्रत्येक पार्टी अपने वादों की लम्बी-लम्बी सूची तैयार कराकर वोटरों को लुभाने का प्रयास कर रही है इस दौर में निर्दलीय प्रात्याशी भी वोटरों से अपने वादों पर वोट करने का प्रयास कर रहे है|