फर्रुखाबाद:(दीपक-शुक्ला) प्रसिद्ध विचारक जेम्स गारफील्ड ने कहा है, ‘यदि वृद्धावस्था की झुर्रियां पड़ती हैं तो उन्हें हृदय पर मत पड़ने दो। कभी भी आत्मा को वृद्ध मत होने दो।’ मगर आज ये झुर्रियां अपनों के बर्ताव के कारण बहुत से वृद्धों के चेहरे पर समय से पहले दिखने लगती हैं। एक पेड़ जितना ज्यादा बड़ा होता है वह उतना ही अधिक झुका हुआ होता है यानि वह उतना ही विनम्र और दूसरों को फल देने वाला होता है| यही बात समाज के उस वर्ग के साथ भी लागू होती है जिसे आज की तथाकथित युवा और एजुकेटेड पीढ़ी बूढ़ा कहकर वृद्धाश्रम में छोड़ देती है| वह लोग भूल जाते हैं कि अनुभव का कोई दूसरा विकल्प दुनिया में है ही नहीं. अनुभव के सहारे ही दुनिया भर में बुजुर्ग लोगों ने अपनी अलग दुनिया बना रखी है| आज जिले के मोहम्मदाबाद के वृद्धाश्रम में कुल 56 वृद्ध रह रहें है| जिन्हें अपने ही घर में अपनों ने पराया कर दिया|
आज वह जीवन के वह पल जो अब धुंधले हो चुके है उनको याद करके जी रहें हैं|
आज विश्व वृद्धजन दिवस मनाया जा रहा है| वह दिन बुजुर्गों को सम्मान देने का दिन होता है। नई पीढ़ी को यह बताने का दिन है कि ये बुजुर्ग बोझ नहीं, बल्कि जिस सुंदर-सी बगिया में आप खिलखिला रहे हो, उसको इसी बागबान ने सींचकर इतना मनोरम बनाया है। लेकिन उनके अपनों नें जिस तरह से मुंह मोड़ा वह हमारे देश, समाज और संस्कृति के लिए अहितकारी है। भारतीय संस्कृति के चिरकालिक होने में नानी के किस्सों व दादी के नुस्खों का भी योगदान रहा है। मौजूदा पीढ़ी अपने निर्माताओं के योगदान को नजरअंदाज करते हुए उन्हें अकेलेपन, असहायता के साये में धकेल रही है। बुजुर्ग लोग तिरस्कृत जीवन जीने को मजबूर हैं। बुजुर्ग किसी दूसरे द्वारा नहीं बल्कि अपने ही बेटों के कारण उपेक्षित हैं शायद यह उनका दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जिन बच्चों के लिए अपना पेट काटकर व भूखे रहकर उनका पालन पोषण किया आज वही बेटे उन्हे दर-दर की ठोकरें खाने के लिए मजबूर कर रहे हैं।
जिस घर को बनाने में एक इंसान अपनी पूरी जिंदगी लगा देता है, वृद्ध होने के बाद उसे उसी घर में एक तुच्छ वस्तु समझी जाता है| बड़े बूढ़ों के साथ यह व्यवहार देखकर लगता है जैसे हमारे संस्कार ही मर गए हैं| बुजुर्गों के साथ होने वाले अन्याय के पीछे एक मुख्य वजह सोशल स्टेटस मानी जाती है| सब जानते हैं कि आज हर इंसान समाज में खुद को बड़ा दिखाना चाहता है और दिखावे की आड़ में बुजुर्ग लोग उसे अपनी सुंदरता पर एक काला दाग दिखते हैं| बड़े घरों और अमीर लोगों की पार्टी में हाथ में छड़ी लिए और किसी के सहारे चलने वाले बुढ़ों को अधिक नहीं देखा जाता वजह वह इन बुढ़े लोगों को अपनी आलीशान पार्टी में शामिल करना तथाकथित शान के खिलाफ समझते हैं| यही रुढ़िवादी सोच उच्च वर्ग से मध्यम वर्ग की तरफ चली आती है. आज के समाज में मध्यम वर्ग में भी वृद्धों के प्रति स्नेह की भावना कम हो गई है|
वृद्धाश्रम मोहम्मदाबाद में अधीक्षक मयंक कुमार ने जेएनआई को बताया कि उनके यहाँ कुल 56 बुजुर्ग है| जिसमे अधिकतर अपनों से चोट खाये हुए है|