जयंती विशेष: आधुनिक युग की मीरा थीं महादेवी वर्मा

FARRUKHABAD NEWS सामाजिक

फर्रुखाबाद:(जेएनआई ब्यूरो)महादेवी वर्मा की गिनती हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभ सुमित्रानन्दन पन्त, जयशंकर प्रसाद और सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के साथ की जाती है। महादेवी वेदना की गीतकार हैं, जिसकी अभिव्यक्ति छायावादी शैली में प्रकृति के माध्यम से हुई है। महादेवी वर्मा की कविताओं में एक गंभीरता होती थी जिसे पढ़ने पर एक रस का अनुभव तो होता ही था पर साथ ही समाज को एक नए चश्मे से देखने का अनुभव भी होता था|
आधुनिक हिंदी साहित्य कविता में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाने वाली तथा सत्याग्रह आंदोलन के दौरान कवि सम्मलेन में प्रथम पुरस्कार प्राप्त करने वाली महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च सन 1907 में होली वाले दिन फ़ररुख़ाबाद, उत्तर प्रदेश के एक साहू परिवार में हुआ था| जिसके चलते होली के दिन ही कवि और उनसे जुड़े लोग जयंती बनातें है|महादेवी वर्मा के पिता गोविन्द प्रसाद वर्मा एक वकील थे और माता श्रीमती हेमरानी देवी थीं, जो एक साधारण कवयित्री थीं और श्री कृष्ण की अनन्य भक्त मानी जाती थीं. इसी वजह से महादेवी वर्मा आगे चलकर कवयित्री बनी. इनके माता – पिता को शिक्षा का बहुत ज्ञान था.
महादेवी वर्मा साहित्यिक परिचय
पारिवारिक माहौल के कारण ही महादेवी को बचपन से ही कविता लिखने का शौक था|  सात वर्ष की अल्पायु में ही महादेवी ने कवितायेँ लिखना शुरू कर दिया था|  गोविन्द प्रसाद वर्मा के परिवार में दो सौ साल से कोई लड़की उत्पन्न नहीं हुई थी और होती थी तो उन्हें मार दिया जाती थी| महादेवी का जन्म होने से पिता गोविन्द प्रसाद जी की खुशियों का ठिकाना ही नहीं रहा. ये परिवार की सबसे बड़ी अथवा सबसे लाडली पुत्री थीं|  इनका जन्म माता रानी की कृपा से हुआ था|  इसलिए इनके दादाजी ने उनका नाम महादेवी रखा था|  इनके दो भाई एक बहिन थी| महादेवी वर्मा जी एक प्रसिद्ध कवयित्री और एक सुविख्यात लेखिका तो थीं ही साथ ही वो एक समाज सुधारक भी थीं|  उन्होंने महिलाओं के सशक्तिकरण पर विशेष ध्यान दिया.  साथ ही महादेवी वर्मा जी ने महिलाओं को समाज में उनका अधिकार दिलवाने की और समाज में उचित आदर सम्मान दिलवाने के लिए कई महत्वपूर्ण एवं क्रन्तिकारी कदम उठाये थे| ये आधुनिक काल की मीराबाई कहलाती थीं क्योंकि इनकी कविताओं में एक प्रेमी से बिछडने के कष्ट और बिरह, पीड़ा को भावात्मक तरीके से वर्णित किया गया है|
महादेवी वर्मा के प्रमुख काव्य संग्रह
दीपशिखा, नीरजा, सांध्यगीत, नीहार, रश्मि, प्रथम आयाम, अग्निरेखा, सप्तपर्ण|
महादेवी का कार्यक्षेत्र लेखन
संपादन और अध्यापन रहा महादेवी का कार्यक्षेत्र लेखन, संपादन और अध्यापन रहा। उन्होंने इलाहाबाद में प्रयाग महिला विद्यापीठ के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया। यह कार्य अपने समय में महिला-शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम था। इसकी वे प्रधानाचार्य एवं कुलपति भी रहीं। 1932 में उन्होंने महिलाओं की प्रमुख पत्रिका ‘चाँद’ का कार्यभार संभाला। 1930 में नीहार, 1932 में रश्मि, 1934 में नीरजा, तथा 1936 में सांध्यगीत नामक उनके चार कविता संग्रह प्रकाशित हुए। 1939 में इन चारों काव्य संग्रहों को उनकी कलाकृतियों के साथ यामा शीर्षक से प्रकाशित किया गया। उन्होंने गद्य, काव्य, शिक्षा और चित्रकला सभी क्षेत्रों में नए आयाम स्थापित किये। इसके अतिरिक्त उनकी 18 काव्य और गद्य कृतियां हैं जिनमें मेरा परिवार, स्मृति की रेखाएं, पथ के साथी, शृंखला की कड़ियाँ और अतीत के चलचित्र प्रमुख हैं।
मिले ये पुरस्कार-
1934 – से कसरिया पुरस्कार, 1942 – द्विवेदी पदक, 1943 – मंगला प्रसाद पुरस्कार, 1943 – भारत भारती पुरस्कार, ,1956 – पद्म भूषण, 1979 – साहित्य अकादमी फेलोशिप, 1982 – ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1988 – पद्म विभूषण
मृत्यु-
आधुनिक हिंदी साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाने वाली महादेवी जी ने अपना जीवन एक सन्यासी की तरह व्यतीत किया था. सन 11 सितम्बर 1987 ई . में इलाहाबाद उत्तर – प्रदेश में महादेवी वर्मा जी का निधन हो गया था|
केबल जयंती व पुण्यतिथि पर ही किया जाता याद
नगर के पल्ला पर 11सितम्बर 1990 को महादेवी की प्रतिमा का लोकार्पण हुआ था| तबसे आज तक उन्हें केबल जयंती और पुण्यतिथि ही चार मालाओं के साथ याद किया जाता है| इसके अलावा सरकारी तन्त्र भी महान विभूति को लेकर उदासीन है| नगर में लगभग एक दर्जन साहित्य से जुड़े संगठन है| लेकिन महादेवी की प्रतिमा उपेक्षा का शिकार है| उनकी प्रतिमा पर गंदगी का भंडार है| आस-पास अतिक्रमण होनें से उनकी प्रतिमा तक नही नही आती|