*लिपिकों और अधिकारियों का संगठित गिरोह सक्रिय
*मात्र दस वर्ष में हाईस्कूल करने की सनद वह भी फर्जी
*फर्जी सनद का असली अभ्यर्थी पकड़ा गया था सत्यापन में
फर्रुखाबाद: जिस इमारत की बुनियाद ही खोखली हो उसके भविष्य के बारे में अंदाजा आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है। बेसिका शिक्षा विभाग में फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर चयनित अध्यापकों के कारण देश की भावी पीढ़ी का भविष्य तबाह हो रहा है। विभाग में लगभग एक सैकड़ा मुन्ना भाई ठाठ से 20-25 हजार रुपये मासिक की मोटी तनख्वाह ऐंठ रहे हैं। बेसिक शिक्षा विभाग से लेकर डायट जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान तक अधिकारियों और कर्मचारियों का संगठित गिरोह सक्रिय है। फर्जी प्रमाण पत्रों के सापेक्ष आने वाले सत्यापन डायट और बेसिक शिक्षा विभाग में इस सफाई के साथ बदल दिये जाते हैं कि कई बार तो संबंधित अधिकारियों तक को शक नहीं होता है। कभी शिकावा शिकायत पर बात खुली भी तो उनको भी ले दे कर शांत कर दिया जाता है। हां यह जरूर है कि सत्यापन से जुड़े पदों की नीलामी का भाव हमेशा ऊंचा रहता है।
विभाग में कार्यरत ऐसे ही एक गुरू जी का मामला सामने आया है। प्रमाण पत्र के अनुसार इन्होंने मात्र 10 वर्ष की आयु में हाई स्कूल की परीक्षा पास करली थी। मजे की बात है कि बोर्ड के रिकार्ड में इसी अनुक्रमांक पर एक अन्य व्यक्ति पंजीकृत है और यह व्यक्ति भी विशिष्ट बीटीसी के प्रशिक्षण के दौरान तत्कालीन डायट प्राचार्य से सौदा न पटने के कारण बाहर निकाला जा चुका है। मुन्ना भाई बने गुरू जी मजे से 5 वर्षों से विभाग और देश के भविष्य को चूना लगा कर मूंछ ऐंठते फिर रहे हैं। कारण यह कि इनके फर्जी प्रमाणपत्रों का फर्जी सत्यापन फाइलों में सजाये बैठै बाबुओं और अधिकारियों का मुंह इनकी मासिक किस्त ने बंद कर रखा है।
विकास खंड मोहम्मदाबाद के प्राथमिक विद्यालय रैसेपुर में एक गुरू जी हैं देवेंद्र सिंह। इनका विशिष्ट बीटीसी 2005 में चयन हुआ था| इनके द्वारा विभाग में दाखिल प्रमाणपत्रों के अनुसार इन्होंने वर्ष 1975 में हाईस्कूल की परीक्षा पास की थी। और उनकी वर्तमान आयु मात्र 46 वर्ष है। उनके द्वारा दाखिल हाईस्कूल के प्रमाणपत्र अनुक्रमांक संख्या 513820 के अनुसार इनकी जन्म तिथि 01-01-1965 है। अर्थात इन्होंने मात्र दस वर्ष की आयु में ही हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। उनके द्वारा दाखिल हाईस्कूल के अनुक्रमांक संख्या 513820 के अंकपत्र के अनुसार गुरू जी ने हाईस्कूल प्रथम श्रेणी में पास किया था। गुरू जी यानि देवेंद्र सिंह के मात्र दस वर्ष में हाईस्कूल पास करलिये जाने का मामला तो विभाग ने यह कह कर रफा दफा कर दिया कि यह मामला तो माध्यमिक शिक्षा बोर्ड जाने कि उसने मात्र दस वर्ष की आयु के छात्र को किन परिस्थितियों और नियमों के आधार पर परीक्षा में बैठने दिया। उनके पास तो सत्यापन रखा है और सत्यापन में प्रामणपत्र सही पाया गया है।
आइये अब देखते हैं इन मुन्ना भाई उर्फ गुरू जी उर्फ देवेंद्र सिंह का खेल। इन्होंने ने अपने चयन के लिये हाईस्कूल के जो प्रामणपत्र और अंकपत्र प्रस्तुत किये वह वास्तव में उनके न हो कर उन्हीं के गाँव ज्योता के एक अन्य व्यक्ति ओमेंद्र प्रताप सिंह के थे, और इंटरमीडिएट का अंकपत्र एक ऊषा श्रीवास्तव का है। मजे की बात है कि ओमेंद्र प्रताप सिंह का भी चयन विशिष्ट बीटीसी में हो गया था परंतु उनको भी फर्जी प्रमाण पत्रों के कारण तत्कालीन डायट प्राचार्य अंजना गोयल ने बाहर का रास्ता दिखा दिया था। आखिर दुखियारा ही दुखियारे के काम आता है सो देवेंद्र ने इसी ओमेंद्र प्रताप सिंह के हाईस्कूल प्रमाण पत्र अनुक्रमांक 513820 को काट छांट कर अपने चयन के लिये प्रस्तुत कर दिया। सौदा जब पट जाये तो फिर डर काहे का। देवेंद्र ने इंटरमीडिये के लिये एक ऊषा श्रीवास्तव पुत्री माया शंकर श्रीवास्तव के अनुक्रमांक 255107 का उपयोग कर लिया। उल्लेखनीय है कि ओमेंद्र प्रताप और ऊषा श्रीवास्तव के केवल अनुक्रमांक ही उपयोग किये गये। शेष सारे विवरण देवेंद्र सिंह ने अपनी मर्जी, सुविधा और इस फर्जीवाड़े के काकस के निर्देशानुसार भरे। उदाहरण के तौर पर ओमेंद्र प्रताप के हाईस्कूल में 500 में से मात्र 254 नंबर और द्वितीय श्रेणी थी परंतु देवेंद्र सिंह ने इसे 500 में से 320 अर्थात प्रथम श्रेणी कर लिया। इंटरमीडियेट में ऊषा श्रीवास्तव के 500 में से मात्र 171 नंबर थे और वह परीक्षा में फेल थीं, परंतु देवेंद्र प्रताप ने इसपर अपना नाम भरते समय 500 में से 325 अंक भर कर प्रथम श्रेणी स्वयं प्राप्त कर ली। यह राज़ आखिर माध्यमिक शिक्षा परिषद से सूचना के अधिकार के अंतर्गत मांगी गयी सूचना के क्रम में प्राप्त जानकारी के बाद खुल कर सामने आया।
अब सवाल यह है कि आखिर जब माध्यमिक शिक्षा परिषद से सूचना के अधिकार के अंतर्गत मांगी गयी सूचना के क्रम में सही जानकारी मिल जाती है तो फिर विभागीय और सरकारी तौर पर मांगी गयी सूचना गलत और इन मुन्ना भाइयों की मर्जी के अनुरूप कैसे आ जाती है। वजह साफ है कि बेसिक शिक्षा से डायट तक पूर एक काकस कार्यरत है। जो इन फर्जी अध्यपकों की सूचना बोर्ड से मांगता ही नहीं है। केवल लिफाफा तैयार होता है और रजिस्टर पर डिस्पैच होने के बाद गायब कर दिया जाता है। कुछ दिन बाद यही काकस अन्य सही अभ्यर्थियों के सत्यापन पत्रों पर बने बोर्ड के अधिकारियों के हस्ताथरों की नकल कर इन फर्जी गुरुओं के सत्यापन बनाकर विभाग के नाम लिफाफा बनाकर पोस्ट कर देते हैं। बस मामला पक्का और उधर मोटी तनख्वाह व इधर निर्धारित किस्त का क्रम जारी हो जाता है।