सुल्तानपुर:…मैं 70 वर्ष बूढ़ा हो चुका हूं, रिक्शा चलाकर किसी तरह बाल-बच्चों का पेट पाल रहा हूं। जेल में बंदी के दौरान मेरा परिवार बिखर गया। पुलिस ने फर्जी फंसा दिया। 32 वर्ष से मेरे परिवार को पुलिस परेशान कर रही है। कुछ जिंदगी जीने के लिए बची है, जीना चाहता हूं। यह इबारत आरोपित राजाराम की है जो न्यायालय के समक्ष अपने जुर्म इकबाल में लिखी है। न्यायालय ने जुर्म इकबाल करने पर उसे मुकदमे से बरी कर दिया।
पुलिस पर बम से हमला करने का आरोपी था
24 जुलाई 1987 को थाना पीपरपुर पुलिस ने दुर्गापुर रेलवे क्रासिंग के पटरियों को उखाडऩे तथा दौड़ाने पर पुलिस पर बम से हमला करने पर कई लोगों को आरोपित बनाया था। उन्हीं के बयानों के आधार पर फैजाबाद निवासी पल्लेदार राजाराम को भी आरोपित बना दिया। गिरफ्तार हुआ, बेल मिली और फरार हो गया। पुलिस ने भगोड़ा घोषित किया, लेकिन 32 साल तक पुलिस की गिरफ्त में नहीं आया।
कानपुर में 20 साल तक चलाया रिक्शा
बीस साल तक कानपुर में स्कूली बच्चों का रिक्शा चलाता रहा। पुलिस परिवार वालों पर हाजिर कराने का दबाव बनाती रही। उसके पास अचल संपत्ति कुछ नहीं है। नवागत जज पूनम सिंह सख्त हुईं। उन्होंने पुलिस से पूछा कि 32 साल से राजाराम कहां है? पुलिस के हाथ-पांव फूले तो वह न्यायालय में अपने आप हाजिर हो गया। न्यायिक प्रक्रिया शुरू हो गई। न्यायालय में अपनी बची जिंदगी जीने की तमन्ना राजाराम ने व्यक्त करते हुए अपना जुर्म कुबूल कर लिया। जज ने जेल में बिताई समय को सजा मानते हुए उसे मुकदमे से बरी कर दिया। इस निर्णय से आरोपित की लुकाछिपी खत्म हो गई और वह अपने परिवार में पहुंच गया।