वाराणसी :सनातनी परंपरा के तीन ऋणों में पितृ ऋण प्रमुख माना जाता है। पितरों को समर्पित आश्विन मास का कृष्ण पक्ष पितृ पक्ष कहा जाता है। आश्विन कृष्ण पक्ष 15 सितंबर से शुरू हो रहा है। हालांकि सनातन धर्म में किसी पक्ष का आरंभ उदया तिथि अनुसार माना जाता है और श्राद्ध-तर्पण का समय दोपहर में होता है, ऐसे में पितृपक्ष प्रतिपदा का श्राद्ध 14 सितंबर को ही किया जाएगा। इस बार आश्विन कृष्ण पक्ष में त्रयोदशी की हानि से यह पखवारा 14 दिनों का ही होगा। पितृ विसर्जन या सर्व पैत्री श्राद्ध अमावस्या 28 सितंबर को होगी। गत वर्ष भी षष्ठी हानि से पितृ पक्ष 14 दिनों का ही था। ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार आश्विन प्रतिपदा तिथि 14 सितंबर को दिन में 9.04 बजे लग रही है जो 15 को सुबह 10.45 बजे तक रहेगी।
यह है शास्त्रीय मान्यता : जिन माता-पिता ने हमारी आयु, आरोग्य और सुख, सौभाग्य आदि की अभिवृद्धि के लिए अनेक प्रयत्न किए, उनके ऋण से मुक्त न होने पर हमारा जन्म ग्रहण करना निरर्थक है। उनके ऋण उतारने में ज्यादा खर्च भी नहीं होता। केवल वर्ष भर में उनकी मृत्यु तिथि को सर्व सुलभ जल, तिल, यव, कुश और पुष्प आदि से उनका श्राद्ध संपन्न करने के साथ गो ग्रास देकर एक, तीन या पांच ब्राह्माणों को भोजन करा देने मात्र से ऋण उतर जाता है।
यह है श्राद्ध विधान : पितृपक्ष में नदी या सरोवर तट पर तर्पण तथा मृत्यु तिथि पर अपने पूर्वजों के श्राद्ध में ब्राह्माणों को भोजन श्रद्धा के साथ करा पितरों को तृप्त व प्रसन्न किया जाता है। मृत्यु तिथि पर पितरों को याद कर उनकी स्मृति में योग्य ब्राह्माण को श्रद्धापूर्वक इच्छा भोजन कराने के बाद दान-दक्षिणा देते हुए संतुष्ट करना चाहिए।
यह हैं शास्त्रीय प्रमाण : याज्ञवलक्य स्मृति के अनुसार ‘आयु: प्रजां धनं विद्यां स्वर्ग सुखानि च। प्रयच्छंति तथा राज्यं प्रिता निर्णाम पितामहा:।।’ यानी श्राद्ध कर्म से प्रसन्न हो कर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, धन, विद्या, स्वर्ग, मोक्ष, सुख और राज्य दे देते हैं। मोक्ष स्वर्ग और पुत्र के दाता जीवित पितर नहीं किंतु दिव्य पितर ही हो सकते हैं। स्त्री जिसे कोई पुत्र न हो वह स्वयं अपने पति का श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि पर कर सकती हैं। तिथि विशेष पर रात में मुख्य द्वार पर दीपक जला कर पितृ विसर्जन किया जाता है। पितरगण पुत्रादि से श्राद्ध तर्पण की कामना करते हैं, उपलब्ध न होने पर श्राप देकर चले जाते हैं। स्मरण योग्य विशेष तिथियां
23 सितंबर को मातृ नवमी : माता की मृत्यु तिथि अज्ञात होने पर व सौभाग्यवती स्त्रियों का श्राद्ध विधान।
-25 सितंबर को आश्विन कृष्ण एकादशी (इंदिरा एकादशी व्रत) व आश्विन कृष्ण द्वादशी भी होगी। इस दिन संन्यासी या वनवासी के निमित्त श्राद्ध का विधान है।
-27 सितंबर को आश्विन कृष्ण चतुर्दशी पर दुर्घटना में मृतकों का श्राद्ध विधान।
-28 सितंबर को सर्वपैत्री अमावस्या पर जिस किसी की भी मृत्यु तिथि अज्ञात हो या अन्य कारणों से नियत तिथि पर श्राद्ध न हुआ हो, इस दिन श्राद्ध कर सकते हैं।