JNI DESK: आजादी से आज तक भारत में राष्ट्रीय झंडा बड़ा महत्वपूर्ण विषय रहा है| झंडा किसी राष्ट्र, राज्य या देश की अपनी निशानी होता है| इतिहास में राजा महाराजो के भी अपने अपने झंडे होते थे| यहाँ तक की महाभारत के युद्ध में भी कौरवो और पांडवो की सेनाओ के अपने अपने ध्वज थे| इन ध्वजों का बड़ा महत्त्व है| यहाँ हम नयी और पुराणी दोनों पीड़ियो के लिए कुछ सूक्ष्म ज्ञान लेकर आये है जो आपको और बुद्धिमान बनायेंगे| जानिए भारत में समय समय पर झंडे के रोहण के अंतर|
पहला अंतर
15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर झंडे को नीचे से रस्सी द्वारा खींच कर ऊपर ले जाया जाता है, फिर खोल कर फहराया जाता है, जिसे ध्वजारोहण कहा जाता है क्योंकि यह 15 अगस्त 1947 की ऐतिहासिक घटना को सम्मान देने हेतु किया जाता है जब प्रधानमंत्री जी ने ऐसा किया था। संविधान में इसे अंग्रेजी में Flag Hoisting (ध्वजारोहण) कहा जाता है जबकि 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के अवसर पर झंडा ऊपर ही बंधा रहता है, जिसे खोल कर फहराया जाता है, संविधान में इसे Flag Unfurling (झंडा फहराना) कहा जाता है।
दूसरा अंतर
15 अगस्त के दिन प्रधानमंत्री जो कि केंद्र सरकार के प्रमुख होते हैं वो ध्वजारोहण करते हैं, क्योंकि स्वतंत्रता के दिन भारत का संविधान लागू नहीं हुआ था और राष्ट्रपति जो कि राष्ट्र के संवैधानिक प्रमुख होते है, उन्होंने पदभार ग्रहण नहीं किया था। इस दिन शाम को राष्ट्रपति अपना सन्देश राष्ट्र के नाम देते हैं जबकि 26 जनवरी जो कि देश में संविधान लागू होने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, इस दिन संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति झंडा फहराते हैं|
तीसरा अंतर
स्वतंत्रता दिवस के दिन लाल किले से ध्वजारोहण किया जाता है जबकि गणतंत्र दिवस के दिन राजपथ पर झंडा फहराया जाता है।
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