फर्रुखाबाद:(दीपक-शुक्ला)पुराने समय में खाना पकाने के लिए मसाले पीसने के लिए ओखली-मूसल और सिल बट्टा का इस्तेमाल किया करते थे। बेशक इन चीजों में मसाला पीसने में मेहनत और समय दोनों खर्च होते थे लेकिन खाने का जो स्वाद आता था, यब बात आपके परिजन अच्छी तरह जानते होंगे। आजकल लोगों के पास समय नहीं है इसलिए अब इस काम के लिए ग्राइंडर, ब्लेंडर और मिक्सर आदि का इस्तेमाल होता है। जिससे सिल-बट्टा का कारोबार करने वाले कारीगरों की रोजी-रोटी पर खासा असर डाला है| एक जमाने में मेला रामनगरिया से लोग सिल-बट्टा लेंने के लिए साल भर इंतजार करते थे| लेकिन आज इस कारोबार को तो जंग लगी ही है साथ ही आम आदमी की रसोई से सिल-बट्टा से पीसे गये मसालों का स्वाद गायब सा हो गया है|
मेला रामनगरिया लगभग लग गया है| हजारों की संख्या में कल्पवासी भी जुट गये है| मेला का शुभारम्भ भी जल्द होने वाला है|मेला देखें के लिए दूर-दराज से लोग आने भी शुरू होंगे| मेले में दुकान लगाने वाले कारोबारी अपनी दुकानें भी सजाने लगे है| उन्ही में से आधा दर्जन दुकाने सिल-बट्टा बनाने वाली है| जो पत्थर को काटकर उसे सिल-बट्टे का रूप दे रहे है| यह कारोबारी बीते कई दशकों से सिल-बट्टा की दुकानें लगाकर कारोबार करते आये है| लेकिन आज उनके सामने निराशा है| घरों के रसोईघर से सिल-बट्टा की जगह मिक्सी ने ले ली है| कुछ मिनटों में ही सब्जी के लिए मसाला एक बटन दबाकर पीसा जा सकता है|
रामनगरिया में सिल-बट्टे की दुकान लगाये कारीगर अमित कुमार ने बताया की उसके परिवार में पुश्तैनी यह कारोबार होता चला आ रहा है| इस समय सिल सफेद या लाल पत्थर की 150 से 200 रूपये में इसके साथ ही साथ बड़ी सिल चार सौ से 500 रुपये में उपलब्ध है| अमित ने जेएनआई को बताया कि लेकिन पिछले वर्षों में कारोबार में भारी गिरावट आयी है| ग्राहकों की संख्या और सिल के प्रति रूचि भी घटी है| घर की महिलायें सिल से मसाला पीसनें में कोई रूचि नही रखती| जिस कारण बिक्री भी कम है| ग्रामीण क्षेत्रों में तो अभी सिल प्रयोग हो रहा है| लेकिन शहरी क्षेत्र में अधिकतर सिल की जगह इलेक्ट्रानिक मिक्सी ने ले ली है| रामनगरिया में सिल-बट्टा बना रहे कारोबारी कुलदीप ने जेएनआई को बताया की आगरा और इलाहाबाद से वह सिल खरीदते है| लेकिन सरकार इस बिलुप्त होते कारोबार पर भी 15 प्रतिशत जीएचटी चार्ज करती है| जिससे कारीगर काफी आहत है|
पहले लोग मसालों को पिसने के लिए किसी ग्राइंडर, ब्लैडर और मिक्सी को उपयोग में नहीं लाते थे। बल्कि वो मसाले को पीसने के लिए ओखली मसूल या सिल बट्टा का प्रयोग करते थे। बेशक उस समय मसाला पीसने में मेहनत और समय दोनों ही बहुत अधिक लगता था।
लेकिन उस समय उनके खाने में जो स्वाद आता था वो आज के खाने के कहीं दूर दूर तक नजर नहीं आता। इसका कारण यह कि आज कम सिल बट्टा का उपयोग नहीं बल्कि मिक्सर को मसाले पिसने के लिए उपयोग में लाते हैं इससे मसाले झटपट से पीस तो जाते हैं लेकिन मसालों का स्वाद खत्म हो जाता है।
सिल बट्टा पर मसाले पीसने के फायदे
1. टेस्ट को बढायें
जब आप सिल बट्टा या ओखली मसूल में मसाले को पीसते तो इसकी खुशबु भी मसालें में मिल जाती है जिसके कारण मसाले का टेस्ट ओर अधिक बढ़ जाता है। इसका कारण यह हैं कि ये जड़ी बूटियों और मसाले में तेल जारी करती है। जिससे इनका स्वाद और ज्यादा बढ़ जाता है।
2.साबुत मसाले पीसें जाते हैं
जब आप ब्लैडर को प्रयोग में लाते हो तो आपको चीजों को काटकर पीसना पड़ता है। जबकि सिल बट्टा पर सब चीजों को साबुत ही पीसा जाता है। जिससे चीजों के तेल और फाइबर भी पिसें जाते हैं। यहीं कारण हैं कि सिल बट्टा पर तैयार चटनी ग्राइंडर की चटनी से अधिक स्वादिष्ट होती है।
3.गर्मी को पैदा नहीं होने देता
जब आप इलेक्ट्रिक ब्लैडर को मसाले पीसने के लिए प्रयोग में लाते हो तब उसमें गर्मी पैदा हो जाती है। जिससे उसका स्वाद बदल जाता है। जब आप ब्लेंडर में अदरक को पीसते हो तो गर्मी के कारण लहसुन का स्वाद कडवा हो जाता है। जबकि सिल बट्टा पर गर्मी पैदा नहीं होती।
4.एक्सरसाइज
यह जाहिर सी बात है कि जब आप सिल बट्टा या ओखली पर अधिक देर तक अपने हाथों को चलाते हो तो इससे आपकी अच्छी-खासी एक्सरसाइज भी हो जाती है। आपकी दादी के हाथ, कंधे और बाहें मजबूत होने का एक मुख्य कारण यह भी हैं। जब सिल बट्टे पर काम करते समय आपकी एक्सरसाइज होती हैं। तब आपका पेट बाहर की तरफ नहीं निकलता।
5.हाथों का इस्तेमाल
ब्लैडर में आप चीजों को डालकर दो मिनट में पीस लेते हो जबकि सिल बट्टा या ओखली मसूल में आपको काफी देर तक अपने हाथों को चलाना पड़ता है। इसके आपको यह पता रहता हैं कि खाने में आपको कैसा मसाला चाहिए। आप उसे अपने जरूरत के अनुसार बना सकते हो।
6.बिजली की बचत
जब आप सिल बट्टे पर मसाले पिसते है तब आपको ब्लैडर की आवश्यकता नहीं होती। जिससे आपकी बिजली की भी बचत हो जाती है।