फर्रुखाबाद:(दीपक शुक्ला)चूल्हे की रोटी का स्वाद जिसने चख रखा हो, उसे मिट्टी की हांडी का बदल अच्छा नहीं लगता। मुझे बैलगाड़ी में बैठाकर गांव ले चलिए, घुटन होती है कारों में महल अच्छा नहीं लगता। यह कुछ लाइनें नाम चीन शायर अशोक साहिल की है| यह वेदना उस धुन की पक्की महिला को देखकर याद आ गयी जो उज्ज्बला योजना के युग में चूल्हे से दो वक्त की रोटी की जुगाड़ में लगी दिखी| उसका हौसला और उत्सुकता देखने लायक था| वह रामनगरिया में चूल्हे बिक्री करने के लिए तैयार कर रही थी|
चूल्हा और हांडी अब गुजरे जमाने की बात हो गए हैं। आधुनिक रसोई में चूल्हे के धुएं की सोंधी महक नहीं, बल्कि गैस की बू और सीटी की आवाज आती है। हालांकि मिट्टी के चूल्हे की जगह आज हाथों को गैस चूल्हा दिया गया| लेकिन जिसने चूल्हे की रोटी का स्वाद चखा होगा वह यह जानते होंगे की गैस और चूल्हे की रोटी के स्वाद में क्या फर्क है| आधुनिकता के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में भी चूल्हा का अस्तित्व लगभग बुझ गया।
लेकिन इसके बाद भी रामनगरिया मेले में आने वाले कल्पवासियों और शौक़ीन लोगों के लिए वृद्ध महिला इंद्रा को मिट्टी के चूल्हें बनाते देख रहा नही गया| उससे पूंछा की आज के युग में भी मिट्टी के चूल्हे पर रोटी कौन बनायेगा| मेरा सबाल शायद उसकी आने वाली उम्मीदों के सामने बहुत छोटा था| इंद्रा ने बताया जो चूल्हे की रोटी खाता है उसे गैस की रोटी किसी भी कीमत पर नही भाती| इंद्रा के चेहरे के भाव मै समझ गया| की इस आधुनिक युग में भी इंद्रा जैसे लोग अपने लिए एक रोचक रोजगार तलाश कर ही लेते है|
इंद्रा ने बताया की चूल्हे की कीमत 30 से 50 रूपये तक है| जो रामनगरिया में खूब बिक्री होंगे|
सहयोगी- प्रमोद द्विवेदी नगर प्रतिनिधि