फर्रुखाबाद: शहर में यदि कुछ दिख रहा था तो छतो पर लोग और आसमान में केबल रंगबिरंगी पतंगे| अधिकतर जानकारों पतंगे पिली ही उड़ाई और पीले वस्त्र भी पहने दिखाई दिये| पतंगवबाजी भी जमकर ही की गयी| महिलाओं, बच्चो व बुजुर्गो ने भी जमकर पेंच लड़ाये|
बसंत ऋतु पर सरसों की फसलें खेतों में लहराती हैं,फसल पकती है और पेड़-पौधों में नई कोपलें फूटती हैं। प्रकृति खेतों को पीले-सुनहरे रंगों से सजा देती है। जिससे पृथ्वी पीली दिखती है। बसंत का स्वागत करने के लिए पहनावा भी विशेष होना चाहिए इसलिए लोग पीले रंग के वस्त्र पहनते हैं। पीला रंग उत्फुल्लता, हल्केपन खुलेपन और गर्माहट का आभास देता है।
केवल पहनावा ही नहीं खाद्य पदार्थों में भी पीले चावल, पीले लड्डू व केसर युक्त खीर का उपयोग किया जाता है। मन्दिरों में बसंती भोग रखे जाते हैं और बसंत के राग गाए जाते हैं। बसंत ऋतु में मुख्य रूप से रंगों का त्योहार होली मनाया जाता है। बसंत पंचमी से ही होली गाना भी शुरू हो जाता है। पितृ तर्पण भी कई जगह किया गया| महिलाये भी किसी कीमत पर पीछे नही रही| घूँघट की आड़ से जमकर पेंच लड़ाये गए| युवाओं ने छतों पर संगीत बजाकर सुबह से ही पतंगबाजी शुरू कर दी| पूरे दिन आसमान में पेंच लड़ते रहे| वही कटी पतंग को पकड़ने के लिये भी युवा गली-गली दौड़ते दिखाई दिये| पतंगबाजी के साथ ही कटी पतंग को पकड़ने का भी अपना आनन्द है|