लखनऊ:उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव का परिणाम आने के बाद भाजपा अब मिशन 2019 की तैयारी में जुट गई है। लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की सभी 80 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा गया है लेकिन, नगर पंचायत और नगर पालिका परिषदों में हारने वाली सीटों ने भाजपा को नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है। लिहाजा यह पार्टी हारने वाले इलाकों को टटोलने में जुट गई है।
भाजपा सार्वजनिक तौर पर जीत का जश्न मनाने में सक्रिय है लेकिन, अंदरखाने वह चुनौतियों का आकलन कर रही है। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय सरकार और संगठन के स्तर पर मिशन 2019 का लक्ष्य हासिल करने को ताना-बाना बुन रहे हैं। भाजपा ने नगर निगमों में बेहतर प्रदर्शन तो किया ही है, नगर पालिका परिषद और नगर पंचायतों में भी विपक्षी दलों के मुकाबले आगे है लेकिन, चिंता की बात यह है कि इस मुकाबले निर्दलियों का पलड़ा बहुत भारी है। पार्टी को सुकून देने के लिए यही पर्याप्त है कि हाथ से फिसली हुई ज्यादातर सीटें निर्दलियों के खाते में गई हैं। भाजपा यह पड़ताल करेगी कि आखिर वह कौन से समीकरण रहे जिनके चलते निर्दलियों के पक्ष में परिणाम आया।
जीते हुए निर्दलियों में कुछ भाजपा के बागी हैं तो कुछ टिकट पाने से वंचित नए लोग हैं। ऐसे में पहला सवाल यही है कि क्या टिकट बंटवारे में पार्टी से चूक हुई। दरअसल, पार्टी के कई दिग्गज अपनी-अपनी पसंद के उम्मीदवार चाह रहे थे और उनकी यह मुराद पूरी नहीं हो सकी। प्रदेश में लोकसभा व विधानसभा चुनाव की तरह नीति-नियंताओं के दिमाग में था कि जिसे भी टिकट दिया जाएगा वह चुनाव जीत लेगा पर, बात बन नहीं सकी।
लोकल मुद्दे भी रहे प्रभावी
चूंकि यह चुनाव नितांत स्थानीय मुद्दों से जुड़ा रहा इसलिए कई इलाकों में लोकल मसले ही प्रभावी रहे। नतीजतन, जैसे-जैसे चुनाव निचले स्तर की ओर गया निर्दलियों का पलड़ा भारी होता गया। बानगी के लिए इतना ही काफी है कि 16 में 14 महापौर जीतने वाली भाजपा ने नगर पालिका परिषदों में 922 सदस्य जीते लेकिन, यह सदस्य संख्या निर्दलियों के खाते में 3380 हो गई।नगर पंचायतों में भाजपा के सिर्फ 664 सदस्य जीते, जबकि 3875 सदस्य निर्दलीय हैं। अब स्थानीय समीकरण दुरुस्त करने के लिए भाजपा की यह चुनौती है। भाजपा अपने विधायकों और मंत्रियों को भी इसके लिए जवाबदेह बनाएगी।
क्षेत्रीय स्तर पर शुरू होगी समीक्षा
भाजपा अब क्षेत्रवार समीक्षा करेगी। विधायकों, मंत्रियों और प्रभारी मंत्रियों के साथ ही संगठन के भी बड़े नेताओं के क्षेत्र की समीक्षा होगी। किन सीटों पर सामाजिक और भौगोलिक समीकरण बिगड़ा। जातीय स्तर पर उम्मीदवारों के चयन और मिले मतों का आंकड़ा तैयार किये जा रहे हैं। ताकि यह भी स्पष्ट हो सके कि जातीय चुनौतियों से निपटने के लिए किस तरह की तैयारी की जाए।