मणीन्द्र की शहादत: तुमने जिस देश को जीवन दिया, देश तुन्हें क्या देगा

FARRUKHABAD NEWS FEATURED

manindr nath bnarjiफर्रुखाबाद:(दीपक शुक्ला) जुल्म और सितम को सह देने वाला भी दंड का उतना ही हकदार होता है जैसे कोई अत्याचारी और आततायी| फिर अगर इन ऊँचे आदर्शो की प्राप्ति में कोई रोंडा बनकर आता है| तो रास्तो से उसका सफाया होना ही चाहिए|, भले ही वह हमारा कोई अत्यंत नजदीकी ही क्यों ना हो| माँ का रिश्ता सबसे ऊंचा होता है और उसके सम्मान को कोई क्षति पंहुचाने उसके हाथ कटने चाहिए, भले ही वे हमारे किसी आत्मीय जन के हाथ ही क्यों ना हो| यही किया था अमर शहीद मणीन्द्रनाथ बनर्जी ने भी| उन्होंने अपने मामा सीआईडी विभाग के डिप्टी एसपी जेएन बनर्जी की अंतड़ियो में गोली उतार दी|

महान क्रन्तिकारी शहीद मणीन्द्र नाथ बनर्जी का जन्म 13-1-1909 में वाराणसी के कुलीन पाण्डेघाट स्थित एक परिवार में हुआ था| पिता का नाम ताराचन्द्र बनर्जी जो होम्योपैथिक चिकित्सक थे| मणीन्द्रनाथ के पितामह अंग्रेजी हुकूमत में डिप्टी अधीक्षक के पद पर तैनात रहे| बाद में उन्होंने अंग्रेजी हुमुकत की नीतियों के आगे पद से त्यागपत्र दे दिया था मणीन्द्रनाथ बनर्जी आठ भाई थे| सभी एक से एक देश भक्त| सभी की जुबान पर जब जरूरत हो बुला लेना हमे अहले वतन, हम कफन बांधे सरो पर हर घड़ी तैयार है रहता था|

संन्याय परिवार के सम्पर्क में आने से वह क्रांतिकारी दल में शामिल हो गये| जब काकोरी कांड के षड्यंत्र के लोगो की गिरफ्तारी भी न हुई थी उसी समय यह थोडा बहुत काम करने लगे थे| पर्चा आदि बांटने का काम व अस्त्र-शस्त्र इधर से उधर ले जाने का काम भी करने लगे थे| किन्तु जब काकोरी षड्यंत्र समाप्त हो गया और उससे जुड़े लोगो को फांसी पर लटकाया गया तो मणीन्द्र के ह्रदय को काफी धक्का लगा| उस समय एक प्रकार से यूपी में कोई नियमित दल नही था| जो नेता बन कर बैठे थे वह कुछ करना नही चाह रहे थे| इसलिए मणीन्द्रनाथ ने उनसे कहा कि इस खून का बदला लेना चाहिए|

फिर क्या था मणीन्द्रनाथ ने पक्का इरादा कर लिया| देश प्रेम के मार्ग में व्यवधान बन रहे सीआईडी वाराणसी में डिप्टी अधीक्षक पद पर तैनात जेएन बनर्जी को स्वयं उनके भांजे मणीन्द्रनाथ बनर्जी की निगाह ,में  जीने का कोई हक नही था| देश भक्ति का रिश्ता पारिवारिक रिश्ते से ऊँचा होता है है| यह साबित कर दिखाया घने घुंघराले बाल व बड़ी-बड़ी शेर जैसी आँखों वाले अति मृदुभाषी , विनीत परन्तु सच्चाई के मार्ग पर चलने वाले नवयुवक मणीन्द्र ने| अपनी रिवाल्बर की गोलियों को स्वयं अपने मामा की अंतड़ियो में में उतार दिया|

दरअसल मणीन्द्र के मामा जेएन बनर्जी काकोरी कांड के षड्यंत्र में शामिल लोगो के खिलाफ सबूत जुटा रहे थे| और उन्हें सजा दिलाने में उन्होंने विशेष सतर्कता दिखायी थी| राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी को फांसी के कठघरे तक ले जाने में इनकी विशेष भूमिका रही| मणीन्द्रनाथ के मामा एन बनर्जी के प्रयास से मणीन्द्र का एक मित्र भी फांसी के फंदे पर झूल गया था| हालांकि मणीन्द्रनाथ ने काकोरी कांड में हिस्सा नही लिया था लेकिन फिर भी उन्होंने अपने मामा एन बनर्जी के कृत्य ने झकझोर कर रख दिया था| उन्हें अपने क्रन्तिकारी साथियों के साथ हमदर्दी थी| इसका प्रमाण उन्होंने अपने मामा का सीना गोलियों से छलनी कर दिया|

एन बनर्जी को घटनास्थल से ही गिरफ्तार कर लिया गया| उन्हें 12 वर्ष का कठोर कारावास दिया गया| उन्हें सजा काटने के लिये फतेहगढ़ सेन्ट्रल जेल भेज दिया गया| जंहा उनकी मुलाकात प्रसिद्द क्रांतिकारी मन्मथनाथ गुप्ता और यशपाल से हुई| उन्हें जेल के बी क्लास में बंद किया गया था| उन्होंने जेल में ही 66 दिन का अनशन किया| इसी बीच वह निमोनिया का शिकार हो गये| अंतिम समय में उन्होंने क्रांतिकारी मन्मथनाथ गुप्ता के वक्ष पर सिर रख 20 जून 1934 को देश की जनता को कह गये अब तुम्हारे हबाले वतन साथियो| जिसके बाद उनकी एक प्रतिमा सेन्ट्रल जेल के बाहर लगा दी गयी| जंहा प्रति वर्ष 20 जून को देश प्रेम से जुड़े लोगो का जमाबड़ा रहता है|