जेएनआई की खबर पर एक बार फिर से मुहर लगी है| 4 नवम्बर 2015 को ही जेएनआई पर एक आर्टिकल प्रकाशित हुआ था- “ज्ञान देवी के मुकाबले सगुना के पक्ष में है गृह दशा” जिस पर आज 7 जनवरी 2016 को मुहर लग गयी|
बिना किसी छेड़छाड़ के पढ़े पिछली प्रकाशित खबर-
जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर इस बार दलित महिला आसीन होगी| ग्रहो की चाल सत्ता की चाबी दिलाने में निर्णायक भूमिका भले ही अदा न करती हो मगर प्रभावित जरूर करती है| जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी तक जाने के लिए जिन जिन प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा है वे ग्रहो की चाल और दशा के शिकार हो सकते है|
जिले की प्रथम महिला के सहारे जिला पंचायत की चाबी हथियाने के लिए सगुना, ज्ञान देवी को चुनाव मैदान में उतारा गया है| दोनों ही निरक्षर है| राजनीति से लेकर जिला पंचायत के मायने तक नहीं जानते मगर चुनाव में जीते है| कमालगंज वार्ड 2 से जीती अनपढ़ रिंकी ने तो ग्रेजुएट अंजुला देवी को चुनावी मैदान में पटखनी दी है| नवाबगंज तृतीय से जीती सगुना देवी कम से कम राजनैतिक परिवार से तो है| उनके पति अजीत कठेरिया कायमगंज से विधायक है मगर रिंकी और ज्ञान देवी तो मात्र मोहरे भर है जिला पंचायत सदन में काम करने के लिए| हालाँकि शैक्षिक योग्यता में सगुना भी अनपढ़ है जैसा की परचा दाखिल करते समय इन लोगो ने बताया है| इन सबके इतर एक और नाम है सुरभि सिंह का| नवाबगंज प्रथम से सुरभि ने नवाबगंज प्रथम के कुल मतदाताओ का केवल 6.7 फ़ीसदी मत पाकर जिला पंचायत में अपनी एक कुर्सी पक्की की है मगर चुनाव लड़ने तक जिला पंचायत अध्यक्ष जैसा ख्वाव उनके पति अजीत गंगवार ने नहीं देखा था| मगर ग्रहो की चाल सियासत के नए मायने गढ़ती है ये पौराणिक सत्य है वर्ना किसने सोचा था कि देश में वो भी प्रधानमंत्री बन सकता है जिसकी पार्टी के केवल दो ही सांसद थे और सबसे ज्यादा सांसद वाली पार्टी BJP विपक्ष में बैठी थी|
तो बात फर्रुखाबाद के जिला पंचायत की कुर्सी को लेकर राजनैतिक से लेकर ज्योतिषीय आंकड़ों की है| और इसमें स अक्षर से शुरू होने वाली सगुना देवी और सुरभि के पक्ष में गुरु, शनि और सूर्य नजरे गड़ाए है| ज्ञान देवी को अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुचने के लिए मंगल रास्ते में रोड़े अटका रहा है| वैसे भी संख्या बल में कम समर्थको के जीतने के कारण दावा कमजोर ही रहेगा| फिलहाल सगुना और ज्ञान देवी को प्रत्याशी बनाने के लिए दोनों के चाणक्यो ने लखनऊ में डेरा डाला हुआ है और सपा से प्रत्याशी बनाने के लिए जोर लगाया जा रहा है| एक बात ग्रहो की दशा से साफ़ है कि अगर सपा हाई कमान ने सगुना को प्रत्याशी नहीं बनाया तो सुरभि सिंह के सितारे जिला पंचायत की कुर्सी तक पहुचने के लिए सबसे बुलंद होंगे| इसके पीछे तार्किक राजनैतिक सोच भी है और एकता भी|
फिलहाल जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए भाजपा और बसपा के पास तो प्रत्याशी तक नहीं मगर अध्यक्ष उनका भी बन सकता है| चौकाने वाली बात हो सकती है| मगर इस जुगाड़ के देश में कुछ भी हो सकता है| जहाँ अंगूठा छाप ग्रेजुएट को हरा रहा हो वहां ये भी हो सकता है| अगर सगुना को सपा ने प्रत्याशी नहीं बनाया तो सुरभि लगभग एक दर्जन समर्थित वोटो के साथ या तो भाजपा प्रत्याशी बनेगी या फिर बसपा जिनके पास तीन और चार सदस्य ही है| बाकी का जुगाड़ तो हो ही जाता है इस भ्रष्ट और कलंकित लोकतंत्र में| ज्ञान देवी को सपा प्रत्याशी बनाये जाने के हालात में सुरभि सिंह के सितारे बुलंदी पर होंगे| ज्ञान देवी का वक्री मंगल रास्ता भटकायेगा वहीँ सुरभि के प्रबल शनि उन्हें सत्ता तक पहुचाने में ताकत लगा रहा होगा| मगर ये सब तब होगा जब सगुना देवी को सपा प्रत्याशी नहीं बनाएगी जिसके आसार कम ही लगते है क्योंकि गणित के हिसाब से अब तक सबसे ज्यादा जीते हुए सदस्य सगुना के पक्ष में ही दिख रहे है और अन्य ज्यादातर सदस्य भी अपने राजनैतिक भविष्य के लिए जिला पंचायत की ताकत को जिले के बाहर नहीं भेजना चाहेंगे| लखनऊ में पड़े नेताओ की वापसी से पहले ही काफी कुछ तस्वीर साफ़ होने लगेगी| वैसे दिवाली तो चारो की चमकदार बीतने वाली है| राजनीति के ककहरे से अज्ञान चारो दावेदार जिले के प्रथम नागरिक बनने की लाइन में जो खड़े है|
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