BSA बेसिक शिक्षा अधिकारी या भ्रष्टाचार समर्थक अधिकारी

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rti logoफर्रुखाबाद: वैसे भ्रष्टाचार करना या उसका समर्थन करना दोनों बराबर के अपराध है मगर इन दोनों बातो से मुकर जाना और निरंतर प्रक्रिया जारी रखने पर सामाजिक, सैद्धांतिक, नैतिक और कानूनी अपराध एक साथ होते है| मामला जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी का है| कार्यशैली के अनुरूप शब्दों का वर्णन कर दिया जाए तो इस पद को जिला भ्रष्टाचार समर्थन अधिकारी भी कह सकते है| गांधीजी के तीनो बंदरो के अनुरूप अधिकारियो और नेताओ की कार्यशैली ने जनता को आप जैसी पार्टियो को चुनने पर मजबूर कर दिया है| न भ्रष्टाचार देखो, न किसी की बुराई सुनो और न ही कोई कार्यवाही करो| फर्रुखाबाद के जिला बेसिक अधिकारी द्वारा एक आरटीआई के सवाल के जबाब में जो जबाब दिए है उससे उपरोक्त कथन कितना सिद्ध होते है फैसला करिये|

ठेकेदारी कौन कर रहा है ये गोपनीय विषय है?
आरटीआई एक्टिविस्ट और बेसिक शिक्षा से ही रिटायर मास्टर ऐनुल हसन ने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी से आरटीआई के तहत पूछा कि जिले में कस्तूरबा गांधी विद्यालय में खाने की व्यवस्था कौन सी फर्म कर रही है और कौन उसका मालिक है? बेसिक शिक्षा के खंड अधिकारी ने अपने हस्ताक्षर से जो जबाब भेजा वो है- ” ये सवाल सूचना के अधिकार की श्रेणी में नहीं आता”| यानि की जनता के टैक्स के पैसे से जो खर्च जनहित में हो रहा है उसे कैसे खर्च किया जा रहा है, किसके मार्फ़त किया जा रहा है, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी और उनके अधीनस्थों के मुताबिक जनता को जानने का अधिकार नहीं है| दरअसल में बात जबाब देने या नहीं की नहीं है| बात नियत की है| ऐनुल हसन के मुताबिक एक कस्तूरबा गांधी विद्यालय में खाना सप्लाई का काम एक परिषद के हेड मास्टर की पत्नी के नाम की फर्म करती है जिसे हेड मास्टर संचलित करते है| कमीशन आदि तो हेड मास्टर ही पहुचाते होंगे| खैर बात इतनी भर नहीं है| ये हेड मास्टर एक मदरसे के प्रबंधक भी परिषद की नौकरी के दौरान बने रहे| इनके मदरसे में करोडो की सरकारी इमदाद ऐसे लूटी गयी जैसे दुल्हन की रवानगी पर बच्चे पैसे लूटते है| पकडे गए तो कार्यवाही ऐसे की गयी की बचने के लिए कोर्ट चले जाओ और बाद में लूट चुके सरकारी धन को वापस करने के एवज में खूब मालखायी हुई| जो जाँच करने गया दामाद की तरह जीम के आया| खैर बात ऐनुल हसन के सवाल और मिले हुए जबाब की है| जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय के जबाब की चतुराई की है| एक फ़ौज से रिटायर सैनिक से ऐसे पारदर्शी परदे की उम्मीद न थी| गोया ये कोई राष्ट्र की सुरक्षा से संबंधित मामला नहीं था जो इतनी गोपनीयता बरत रहे है| बेईमानी को इतनी भी ईमानदारी से न ढकिये कि पानी पड़ने पर झीना होकर मामला पारदर्शी हो जाए और मुह छुपाना भी मुश्किल हो| जबाब तो मिल ही जायेगा ऐसे नहीं तो दिल्ली के चुनाव की तरह| एक झटके में सूफड़ा साफ़ और कमान नए लोगो को|

” इस बिंदु की जानकारी अधोहस्ताक्षरी के कार्यालय में उपलब्ध नहीं है”
दूसरा सवाल जो ऐनुल हसन ने पूछा कि बताये कि मुज्जफर हुसैन प्रधानाध्यापक पूर्व माध्यमिक विद्यालय देवरान गढ़िया विकास खंड कमालगंज ने अपने सेवाकाल में कितने विद्यालय बनबाये? कितनी बॉउंड्री वाल बनबाई? कहाँ कहाँ बनबाई? क्या ये सभी निर्माण उनके तैनाती/कार्यरत स्कूल में थे या अन्यथा भी कहीं कराये गए थे? सवाल जरा लम्बा था मगर जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने मंझे हुए खिलाडी की तरह पांच दिवसीय मैच की पारी वन-डे में निपटा दी| जबाब दिया-” इस बिंदु की जानकारी अधोहस्ताक्षरी के कार्यालय में उपलब्ध नहीं है”

निश्चित ही यह जबाब जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने बड़े ही बेशर्मी से दिया होगा या फिर टाइप करने वाले ने टाइप कर दिया और अफसर ने बिना पढ़े ही हस्ताक्षर कर दिया होगा| क्योंकि सरकारी खर्च के दस्ताबेज नहीं है ये बात शासनादेशों और सविधान के विपरीत है| अगर जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के कार्यालय में इस बात का जबाब नहीं कि जनता के टैक्स के पैसे उन्होंने कैसे और कहाँ खर्च किये तो इसका मतलब साफ़ है कि जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने सरकारी धन का उपयोग एक बनिए की दूकान की तरह किया और चलते बने| अगर दस्ताबेज नहीं है तो फिर दस्ताबेज गायब करने वाला जेल गया कि नहीं| अगर नहीं तो क्या आपकी (संबंधित जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी) सहमति भी थी| जबाब तो देना ही पड़ेगा| बात बढ़ेगी तो राज्य सूचना आयोग तक जाएगी ही| मामला एक ऐसे अध्यापक से सबंधित जिसके शैक्षिक प्रमाण पत्रो से लेकर चयन और प्रमोशन तक संदेह के घेरे में है| जबाब नहीं दिया तो संदेह बढ़ेगा ही| वैसे उत्तर प्रदेश का बेसिक शिक्षा विभाग एक काजल की कोठरी से कम नहीं है| हर फाइल में भ्रष्टाचार का घुन लगा हुआ है| कितना भी बचोगे एक लकीर तो लग ही जाएगी| अखिलेश यादव कह रहे थे प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता सुधारेंगे| किसकी की “दम” पर ये नहीं बताया| याद रहे कि कमजोर जड़ वाले दरख्त कभी बरगद नहीं हुआ करते और मायावती के इको पार्क में लगे प्लास्टिक के पेड़ में लगे खजूर कभी खाने के लायक नहीं होते| जो साहब जरा छुपाइये कम, खाइये कम, पर्दा हटाने का दिखाइए दम| तभी लोग समझेंगे कि वाकई में फ़ौज से आये हो|

आर टी आई एक्टिविस्ट ने सवाल तो कई पूछे थे| मगर जो जबाब जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने दिए उसके जबाब अगली क़िस्त में पढ़िए| पढ़ते रहिये जे इन आई न्यूज़|