पढ़ें: ‘मन की बात’ में नशे की लत पर क्या बोले PM मोदी

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modi 3दिल्ली:आज फिर मुझे आप से मिलने का सौभाग्य मिला है। आपको लगता होगा कि प्रधानमंत्री ऐसी बातें क्यों करता है। एक तो मैं इसलिए करता हूं कि मैं प्रधानमंत्री कम, प्रधान सेवक ज्यादा हूं। बचपन से मैं एक बात सुनते आया हूं और शायद वहीं ‘मन की बात’ की प्ररेणा है। हम बचपन से सुनते आए हैं कि दुख बांटने से कम होता है और सुख बांटने से बढ़ता है। ‘मन की बात’ में, मैं कभी दुःख भी बांटता हूं, कभी सुख भी बांटता हूं। मैं जो बातें करता हूं वो मेरे मन में कुछ पीड़ाएं होती हैं उसको आपके बीच में प्रकट करके अपने मन को हल्का करता हूं और कभी कभी सुख की कुछ बातें हैं जो आप के बीच बांटकर मैं उस खुशी को चौगुना करने का प्रयास करता हूं।

मैंने पिछली बार कहा था कि लंबे अरसे से मुझे हमारी युवा पीढ़ी की चिंता हो रही है। चिंता इसलिए नहीं हो रही है कि आपने मुझे प्रधानमंत्री बनाया है, चिंता इसलिए हो रही है कि किसी मां का लाल, किसी परिवार का बेटा, या बेटी ऐसे दलदल में फंस जाते हैं तो उस व्यक्ति का नहीं, वो पूरा परिवार तबाह हो जाता है। समाज, देश सब कुछ बर्बाद हो जाता है। ड्रग्स, नशा ऐसी भंयकर बीमारी है, ऐसी भंयकर बुराई है जो अच्छों अच्छों को हिला देती है।

मैं जब गुजरात में मुख्यमंत्री के रूप में काम करता था, तो कई बार मुझे हमारे अच्छे-अच्छे अफसर मिलने आते थे, छुट्टी मांगते थे। तो मैं पूछता था कि क्यों? पहले तो नहीं बोलते थे, लेकिन जरा प्यार से बात करता था तो बताते थे कि बेटा बुरी चीज में फंसा है। उसको बाहर निकालने के लिए ये सब छोड़-छाड़ कर, मुझे उस के साथ रहना पड़ेगा। और मैंने देखा था कि जिनको मैं बहुत बहादुर अच्छे अफसर मानता था, उनका भी सिर्फ रोना ही बाकी रह जाता था। मैंनें ऐसी कई माताएं देखी हैं। मैं एक बार पंजाब में गया था तो वहां माताएं मुझे मिली थी। बहुत गुस्सा भी कर रही थीं, बहुत पीड़ा व्यक्त कर रही थीं।

हमें इसकी चिंता समाज के रूप में करनी होगी। और मैं जानता हूं कि बालक जो इस बुराई में फंसता है तो कभी कभी हम उस बालक को दोषी मानते हैं। बालक को बुरा मानते हैं। हकीकत ये है कि नशा बुरा है। बालक बुरा नही है, नशे की लत बुरी है। बालक बुरा नही है, अपने बालक को बुरा न मानें। आदत को बुरा मानें, नशे को बुरा मानें और उससे दूर रखने के रास्ते खोजें। बालक को ही दुत्कार देगें तो वो और नशा करने लग जाएगा। ये अपने आप में एक साइको सोशो मेडिकल प्रॉब्लम है। और उसको हमें साइको सोशो मेडिकल प्रॉब्लम के रूप में ही देखना पड़ेगा। उसी के रूप में समझना पड़ेगा और मैं मानता हूं कि कुछ समस्याओं का समाधान मेडिकल से परे है। व्यक्ति स्वंय, परिवार, यार दोस्त, समाज, सरकार, कानून, सभी को मिल कर एक दिशा में काम करना पड़ेगा। इसे टुकड़ों में करने से समस्या का समाधान नहीं होना है।

मैंने अभी असम में डीजीपी की कॉन्फ्रेंस रखी थी। मैंने उनके सामने मेरी इस पीड़ा को आक्रोश के साथ व्यक्त किया था। मैंने पुलिस डिपार्टमेंट में इसकी गंभीर बहस करने के लिए उपाय खोजने के लिए कहा है। मैंने डिपार्टमेंट को भी कहा है कि क्यों नहीं हम एक टोल-फ्री हैल्पलाइन शुरू करें। ताकि देश के किसी भी कोने में, जिस मां-बाप को ये मुसीबत है कि उनके बेटे में उनको ये लग रहा है कि ड्रग की दुनिया में फंसा है, एक तो उनको दुनिया को कहने में शर्म भी आती है, संकोच भी होता है, कहां कहें? एक हैल्पलाइन बनाने के लिए मैंने शासन को कहा है। वो बहुत ही जल्द उस दिशा में जरूर सोचेंगे और कुछ करेंगे।

उसी प्रकार से, मैं जानता हूं ड्रग्स तीन बातों को लाता है और मैं उसको कहूंगा, ये बुराइयों वाला 3 डी है- मनोरंजन के 3 डी की बात मैं नहीं कर रहा हूं। एक डी है डार्कनेस, दूसरा डी है डेस्ट्रक्शन और तीसरा डी है डेवस्टेशन। नशा अंधेरी गली में ले जाता है। विनाश के मोड़ पर आकर खड़ा कर देता है और बर्बादी का मंजर इसके सिवाय नशे में कुछ नहीं होता है। इसलिए इस बहुत ही चिंता के विषय पर मैंने चर्चा की है।

जब मैंने पिछले ‘मन की बात’ कार्यक्रम में इस बात का स्पर्श किया था, देश भर से करीब सात हजार से ज्यादा चिट्ठियां मुझे आकाशवाणी के पते पर आई। सरकार में जो चिट्ठियां आई वो अलग। ऑनलाइन, सरकारी पोर्टल पर, माय जीओवी डॉट इन पोर्टल पर, हजारों ई-मेल आए। ट्विटर, फेसबुक पर शायद, लाखों कमेन्ट्स आए हैं। एक प्रकार से समाज के मन में पड़ी हुई बात, एक साथ बाहर आना शुरू हुई है।

मैं विशेषकर, देश के मीडिया का भी आभारी हूं कि इस बात को उन्होनें आगे बढ़ाया। कई टी. वी. ने विशेष एक-एक घंटे के कार्यक्रम किए हैं और मैंने देखा, उसमें सिर्फ सरकार की बुराइयों का ही कार्यक्रम नहीं था, एक चिंता थी और मैं मानता हूं, एक प्रकार से समस्या से बाहर निकलने की जद्दो-जहद थी और उसके कारण एक अच्छा विचार-विमर्श का तो माहौल शुरू हुआ है। सरकार के जिम्मे जो बाते हैं, वो भी सेंसीटाइज्ड हुई हैं। उनको लगता है अब वो उदासीन नहीं रह सकते हैं।

मैं कभी-कभी, नशे में डूबे हुए उन नौजवानों से पूछना चाहता हूं कि क्या कभी आपने सोचा है आपको दो घंटे, चार घंटे नशे की लत में शायद एक अलग जिंदगी जीने का अहसास होता होगा। परेशानियों से मुक्ति का अहसास होता होगा, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि जिन पैसों से आप ड्रग्स खरीदते हो वो पैसे कहां जाते हैं? आपने कभी सोचा है? कल्पना कीजिए! यही ड्रग्स के पैसे अगर आतंकवादियों के पास जाते होंगे! इन्हीं पैसों से आतंकवादी अगर शस्त्र खरीदते होंगे! और उन्हीं शस्त्रों से कोई आतंकवादी मेरे देश के जवान के सीने में गोलियां दाग देता होगा! मेरे देश का जवान शहीद हो जाता होगा! तो क्या कभी सोचा है आपने? किसी मां के लाल को मारने वाला, भारत मां के प्राण प्रिय, देश के लिए जीने-मरने वाले सैनिक के सीने में गोली लगी है, कहीं ऐसा तो नहीं है न? उस गोली में कहीं न कहीं तुम्हारी नशे की आदत का पैसा भी है, एक बार सोचिए और जब आप इस बात को सोचेंगे, मैं विश्वास से कहता हूं, आप भी तो भारत माता को प्रेम करते हैं, आप भी तो देश के सैनिकों को सम्मान करते हैं, तो फिर आप आतंकवादियों को मदद करने वाले, ड्रग-माफिया को मदद करने वाले, इस कारोबार को मदद कैसे कर सकते हैं।

कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि जब जीवन में निराशा आ जाती है, विफलता आ जाती है, जीवन में जब कोई रास्ता नहीं सूझता, तब आदमी नशे की लत में पड़ जाता है। मुझे तो ऐसा लगता है कि जिसके जीवन में कोई ध्येय नहीं है, लक्ष्य नहीं है, ऊंचे इरादे नहीं हैं, एक वैक्यूम है, वहां पर ड्रग का प्रवेश करना सरल हो जाता है। ड्रग से अगर बचना है, अपने बच्चे को बचाना है तो उनको ध्येयवादी बनाइए, कुछ करने के इरादे वाले बनाइए, सपने देखने वाले बनाइए। आप देखिए, फिर उनका बाकी चीजों की तरफ मन नहीं लगेगा। उसको लगेगा नहीं, मुझे करना है।

आपने देखा होगा जो खिलाड़ी होता है ठंड में रजाई लेकर सोने का मन सबका करता है, लेकिन वो नहीं सोता है। वो चला जाता है खुले मैदान में, सुबह चार बजे, पांच बजे चला जाता है। क्यों? ध्येय तय हो चुका है। ऐसे ही आपके किसी बच्चे में, ध्येयवादिता नहीं होगी तो फिर ऐसी बुराइयों के प्रवेश का रास्ता बन जाता है।

मुझे आज स्वामी विवेकानंद के वो शब्द याद आते हैं। हर युवा के लिए वो बहुत सटीक वाक्य हैं उनके और मुझे विश्वास है कि वाक्य, बार-बार गुनगुनाए स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है- ‘एक विचार को ले लो, उस विचार को अपना जीवन बना लो। उसके बारे में सोचो, उसके सपने देखो। उस विचार को जीवन में उतार लो। अपने दिमाग, मांसपेशियां, नसों, शरीर के प्रत्येक हिस्से को उस विचार से भर दो और अन्य सभी विचार छोड़ दो’।

विवेकानंद जी का ये वाक्य, हर युवा मन के लिए है, बहुत काम आ सकता है और इसलिए, मैं युवकों से कहूंगा ध्येयवादी बनने से ही बहुत सी चीजों से बचा जा सकता। कभी-कभी यार दोस्तों के बीच रहते हैं तो लगता है ये बड़ा कूल है। कुछ लोगों को लगता है कि ये स्टाईल स्टेटमेंट है और इसी मन की स्थिति में कभी- कभी पता न रहते हुए ही, ऐसी गंभीर बीमारी में ही फंस जाते हैं। न ये स्टाईल स्टेटमेंट है और न ये कूल है। हकीकत में तो ये बर्बादी का मंजर है और इसलिए हम सब के हृदय से अपने साथियों को जब नशे के गौरव गान होते हो, अब अपने अपने मजे की बाते बताते हो, तालियां बजाते हो, तब ना कहने की हिम्मत कीजिए, खारिज करने की हिम्मत कीजिए, इतना ही नही, उनको भी ये गलत कर रहे हो, अनुचित कर रहे हो ये कहने की आप हिम्मत जताइए।

मैं माता-पिता से भी कहना चाहता हूं। हमारे पास आज कल समय नही हैं दौड़ रहे हैं। जिंदगी का गुजारा करने के लिए दौड़ना पड़ रहा है। अपने जीवन को और अच्छा बनाने के लिए दौड़ना पड़ रहा है। लेकिन इस दौड़ के बीच में भी, अपने बच्चों के लिए हमारे पास समय है क्या? क्या कभी हमने देखा है कि हम ज्यादातर अपने बच्चों के साथ उनकी लौकिक प्रगति की ही चर्चा करते हैं? कितने नंबर लाया, परीक्षा कैसी गई, ज्यादातर क्या खाना है? क्या नहीं खाना है? या कभी कहां जाना है? कहां नहीं जाना है, हमारी बातों का दायरा इतना सीमित है। या कभी उसके हृदय के भीतर जाकर के अपने बच्चों को अपने पास खोलने के लिए हमने अवसर दिया है? आप ये जरूर कीजिए।

अगर बच्चे आपके साथ खुलेंगे तो वहां क्या चल रहा है पता चलेगा। बच्चे में बुरी आदत अचानक नहीं आती है, धीरे धीरे शुरू होती है और जैसे-जैसे बुराई शुरू होती है तो घर में उसका बदलाव भी शुरू होता है। उस बदलाव को बारीकी से देखना चाहिए। उस बदलाव को अगर बारीकी से देखेंगे तो मुझे विश्वास है कि आप बिल्कुल शुरुआत से ही अपने बालक को बचा लेंगे। उसके यार दोस्तों की भी जानकारी रखिए और सिर्फ प्रगति के आसपास बातों को सीमित न रखें। उसके जीवन की गहराई, उसकी सोच, उसके तर्क, उसके विचार उसकी किताब, उसके दोस्त, उसके मोबाइल फोन्स, क्या हो रहा है? कहां उसका समय बीत रहा है, अपने बच्चों को बचाना होगा। मैं समझता हूं जो काम मां-बाप कर सकते हैं वो कोई नहीं कर सकता। हमारे यहां सदियों से अपने पूर्वजों ने कुछ बातें बड़ी विद्वत्तापूर्ण कही हैं। और तभी तो उनको स्टेट्समैन कहा जाता है। हमारे यहां कहा जाता है- 5 वर्ष लौ लीजिए, दस लौं ताड़न देई, 5 वर्ष लौ लीजिए, दस लौं ताड़न देई, सुत ही सोलह वर्ष में, मित्र सरिज गनि देई, सुत ही सोलह वर्ष में, मित्र सरिज गनि देई।

कहने का तात्पर्य है कि बच्चे की 5 वर्ष की आयु तक माता-पिता प्रेम और दुलार का व्यवहार रखें, इसके बाद जब पुत्र 10 वर्ष का होने को हो तो उसके लिए डिसिप्लिन होना चाहिए, डिसिप्लिन का आग्रह होना चाहिए और कभी-कभी हमने देखा है समझदार मां रूठ जाती है, एक दिन बच्चे से बात नहीं करती है। बच्चे के लिए बहुत बड़ा दंड होता है। दंड मां तो अपने को देती है लेकिन बच्चे को भी सजा हो जाती है। मां कह दे कि मैं बस आज बोलूंगी नहीं। आप देखिए 10 साल का बच्चा पूरे दिन परेशान हो जाता है। वो अपनी आदत बदल देता है और 16 साल का जब हो जाए तो उसके साथ मित्र जैसा व्यवहार होना चाहिए। खुलकर के बात होनी चाहिए। ये हमारे पूर्वजों ने बहुत अच्छी बात बताई है। मैं चाहता हूं कि ये हमारे पारिवारिक जीवन में इसका कैसे हो उपयोग।

एक बात मैं देख रहा हूं दवाई बेचने वालों की। कभी कभी तो दवाईयों के साथ ही इस प्रकार की चीज आ जाती हैं, डॉक्टर की पर्ची के बिना ऐसी दवाईयां न दी जाएं। कभी कभी तो कफ सिरप भी ड्रग्स की आदत लेने की शुरूआत बन जाता है। नशे की आदत की शुरूआत बन जाता है। बहुत सी चीजे हैं मैं इसकी चर्चा नहीं करना चाहता हूं। लेकिन इस डिसिप्लिन को भी हमको स्वीकार करना होगा।

इन दिनों अच्छी पढ़ाई के लिए गांव के बच्चे भी अपना राज्य छोड़कर अच्छी जगह पर एडमिशन के लिए बोर्डिंग लाइफ जीते हैं, हॉस्टल में जीते हैं। मैंने ऐसा सुना है कि वो कभी-कभी इस बुराइयों का प्रवेश द्वार बन जाता है। इसके विषय में शैक्षिक संस्थाओं ने, समाज ने, सुरक्षा बलों ने सभी ने बड़ी जागरूकता रखनी पड़ेगी। जिसकी जिम्मेदारी है उसकी जिम्मेदारी पूरा करने का प्रयास होगा। सरकार के जिम्मे जो होगा वो सरकार को भी करना ही होगा। और इसके लिए हमारा प्रयास रहना चाहिए।

मैं यह भी चाहता हूं ये जो चिट्ठियां आई हैं बड़ी रोचक, बड़ी दर्दनाक चिट्ठियां भी हैं और बड़ी प्रेरक चिट्ठियां भी हैं। मैं आज सबका उल्लेख तो नहीं करता हूं, लेकिन एक मिस्टर दत्त करके थे, जो नशे में डूब गए थे। जेल गए, जेल में भी उन पर बहुत बंधन थे। फिर बाद में जीवन में बदलाव आया। जेल में भी पढ़ाई की और धीरे धीरे उनका जीवन बदल गया। उनकी ये कथा बड़ी प्रचलित है। येरवड़ा जेल में थे, ऐसी तो कई कथाएं होंगी। कई लोग हैं जो इसमें से बाहर आए हैं। हम बाहर आ सकते हैं और आना भी चाहिए। उसके ले हमारा प्रयास भी होना चाहिए, उसी प्रकार से। आने वाले दिनों में मैं बड़ी हस्तियों को भी आग्रह करुंगा। चाहे सिने कलाकार हों, खेल जगत से जुड़े हुए लोग हों, सार्वजनिक जीवन से जुड़े हुए लोग हों। सांस्कृतिक संत जगत हो, हर जगह से इस विषय पर बार-बार लोगों को जहां भी अवसर मिले, हमें जागरूक रखना चाहिए। हमें संदेश देते रहना चाहिए। उससे जरूर लाभ होगा।

जो सोशल मीडिया में एक्टिव हैं उनसे मैं आग्रह करता हूं कि हम सब मिलकर के ड्रग फ्री इंडिया हैश टैग के साथ एक लगातार आंदोलन चला सकते हैं। क्योंकि इस दुनिया से जुड़े हुए ज्यादातर बच्चे सोशल मीडिया से भी जुड़े हुए हैं। अगर हम Drugs Free India hash-tag, इसको आगे बढ़ाएंगे तो एक लोकशिक्षा का एक अच्छा माहौल हम खड़ा कर सकते हैं।

मैं चाहता हूं कि इस बात को और आगे बढाएं। हम सब कुछ न कुछ प्रयास करें, जिन्होंने सफलता पाई है वो उसको शेयर करते रहें। लेकिन मैंने इस विषय को इसलिए स्पर्श किया है मैंने कहा कि दुख बांटने से दुख कम होता है। देश की पीड़ा है, ये मैं कोई उपदेश नहीं दे रहा हूं और न ही मुझे उपदेश देने का हक है। सिर्फ अपना दुख बांट रहा हूं, या तो जिन परिवारों में ये दुख है उस दुख में मैं शरीक होना चाहता हूं। और मैं एक जिम्मेदारी का माहौल बनाना चाहता हूं, हो सकता है इस विषय में मत-मतान्तर हो सकते हैं। लेकिन कहीं से तो शुरू करना पड़ेगा।

मैंने कहा था कि मैं खुशियां भी बांटना चाहता हूं। मुझे गत सप्ताह ब्लाइंड क्रिकेट टीम से मिलने का मौका मिला। विश्व कप जीत कर आए थे। लेकिन जो मैंने उनका उत्साह देखा, उनका उमंग देखा, आत्मविश्वास देखा, परमात्मा ने जिसे आंखें दी हैं, हाथ-पांव दिए हैं सब कुछ दिया है लेकिन शायद ऐसा जज्बा हमारे पास नहीं है, जो मैंने उन ब्लांइड क्रिकेटरों में देखा था। क्या उमंग था, क्या उत्साह था। यानि मुझे भी उनसे मिलकर ऊर्जा मिली। सचमुच में ऐसी बातें जीवन को बड़ा ही आनंद देती है।

पिछले दिनों एक खबर चर्चा में रही। जम्मू कश्मीर की क्रिकेट टीम ने मुंबई जाकर के मुंबई की टीम को हराया। मैं इसे हार-जीत के रूप में नहीं देख रहा हूं। मैं इस घटना को दूसरे रूप में देख रहा हूं। पिछले लंबे समय से कश्मीर में बाढ़ के कारण सारे मैदान पानी से भरे थे। कश्मीर संकटों से गुजर रहा है हम जानते हैं कठिनाइयों के बीच भी इस टीम ने जो स्प्रिट के साथ, बुलंदी के हौसले के साथ, जो विजय प्राप्त की है वो अभूतपूर्व है और इसलिए कठिनाइयां हैं, विपरीत परिस्थितियां हो, संकट हो उसके बाद भी लक्ष्य को कैसे प्राप्त किया जा सकता है, ये जम्मू कश्मीर के युवकों ने दिखाया है और इसलिए मुझे इस बात को सुन करके विशेष आनंद हुआ, गौरव हुआ और मैं इन सभी खिलाड़ियों को बधाई देता हूं।

दो दिन पहले यूनाइटेड नेशन ने, योग को, पूरा विश्व 21 जून को योग दिवस के रूप में माने इसके लिए स्वीकृति दी है। भारत के लिए बहुत ही गौरव का, आनंद का अवसर है। सदियों से हमारे पूर्वजों ने इस महान परंपरा को विकसित किया था, उससे आज विश्व जुड़ गया। योग व्यक्तिगत जीवन में तो लाभ करता था, लेकिन योग ने ये भी दिखा दिया वो दुनिया को जोड़ने का कारण बन सकता है। सारी दुनिया योग के मुद्दे पर यू.एन. में जुड़ गई। और मैं देख रहा हूं कि सर्वसम्मति से प्रस्ताव दो दिन पहले पारित हुआ।

177 देश को-स्पोंसर बने। भूतकाल में नेल्सन मंडेला जी के जन्मदिन को मनाने का निर्णय हुआ था। तब 165 देश को-स्पॉन्सर बने। उसके पूर्व इंटरनेशनल टॉयलेट डे के लिए प्रयास हुआ था तो 122 देश को-स्पॉन्सर बने। उससे पहले 2 अक्टूबर को नॉन वायलेंस के लिए 140 देश को-स्पॉन्सर बने। इस प्रकार के प्रस्ताव से 177 देशों का को स्पोंसर बनना यानि एक विश्व रिकॉर्ड हो गया है। दुनिया के सभी देशों का मैं आभारी हूं जिन्होंने भारत की इस भावना का आदर किया। और विश्व योग दिवस मनाने का निर्णय किया। हम सबका दायित्व बनता है कि योग की सही भावना लोगों तक पहुंचे।

पिछले सप्ताह मुझे मुख्यमंत्रियों की मीटिंग करने का अवसर मिला था। मुख्यमंत्रियों की मीटिंग तो 50 साल से हो ही रही है, 60 साल से हो रही है। लेकिन इस बार प्रधानमंत्री के निवास स्थान पर मिलना हुआ और उससे भी अधिक हमने एक रीट्रीट का कार्यक्रम प्रारंभ किया, जिसमें हाथ में कोई कागज नहीं, कोई कलम नहीं, साथ में कोई अफसर नहीं, कोई फाइल नहीं। सभी मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बराबर के मित्र के रूप में बैठे। दो ढाई घंटे तक समाज के, देश के भिन्न भिन्न विषयों पर बहुत गंभीरतापूर्वक बातें की, हल्के फुल्के वातावरण में बातें की। मन खोलकर के बातें की। कहीं उसको राजनीति की छाया नहीं दी। मेरे लिए ये बहुत ही आनंददायक अनुभूति थी। उसको भी मैं आपके बीच शेयर करना चाहता हूं।

पिछले सप्ताह मुझे पूर्वोत्तर जाने का अवसर मिला। मैं तीन दिन वहां रहा। मैं देश के युवकों को विशेष आग्रह करता हूं कि आपको अगर ताज महल देखने का मन करता है, आपको अगर सिंगापुर देखने का मन करता है, आपको कभी दुबई देखने का मन करता है। मैं कहता हूं दोस्तो, प्रकृति देखनी है, ईश्वर का प्राकृतिक रूप देखना है तो आप पूर्वोत्तर जरूर जाइए। मैं पहले भी जाता था। लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में जब गया, तो वहां की शक्ति को पहचानने का प्रयास किया। अपार शक्तियों की संभावनाओं से भरा हुआ हमारा पूर्वोत्तर है। इतने प्यारे लोग हैं, इतना उत्तम वातावरण है। मैं सचमुच में बहुत आनन्द लेकर आया हूं। कभी कभी लोग पूछते हैं न? मोदी जी आप थकते नहीं हैं क्या? मैं कहता हूं पूर्वोत्तर जाकर के तो लगता है कि कहीं कोने भी थकान हुई होगी, वो भी चली गई। इतना मुझे आनंद आया। और जो प्यार दिया वहां के लोगों ने जो मेरा स्वागत सम्मान वो तो एक बात है। लेकिन जो अपनापन था वो सचमुच में, मन को छूने वाला था, दिल को छूने वाला था। मैं आपको भी कहूंगा, ये सिर्फ मोदी को ही ये मजा लेने का अधिकार नहीं है भारत के हर देशवासी को है। आप जरूर इसकी मजा लीजिए।

अगली ‘मन की बात’ होगी तब तो 2015 आ जाएगी। 2014 का ये मेरा शायद ये आखिरी कार्यक्रम है। मेरी आप सभी को क्रिसमस की बहुत बहुत शुभकामनाए। 2015 के नववर्ष की मैं आप सबको बहुत बहुत शुभकामनाएं देता हूं। मेरे लिए ये भी खुशी की बात है कि मेरे मन की बात को रिजनल चैनल्स की जो रेडियो चैनल्स हैं आपके जो प्रादेशिक चैनल हैं उसमें जिस दिन सुबह मेरे ‘मन की बात’ होती है उस दिन रात को 8 बजे प्रादेशिक भाषा में होती है। और मैंने देखा है कुछ प्रादेशिक भाषा में तो आवाज भी मेरे जैसे कुछ लोग निकालते हैं। मैं भी हैरान हूं कि इतना बढ़िया काम हमारे आकाशवाणी के साथ जो कलाकार जुड़े हुए हैं वो कर रहे हैं मैं उनको भी बधाई देता हूं। और ये लोगों तक पहुंचने के लिए मुझे बहुत ही अच्छा मार्ग दिखता है। इतनी बड़ी मात्रा में चिट्ठियां आई हैं। इन चिट्ठियों को देखकर के हमारे आकाशवाणी ने इसका जरा एक तरीका ढूंढा है। लोगों को सहूलियत हो इसलिए उन्होंने पोस्ट-बॉक्स नंबर ले लिया है। तो ‘मन की बात’ पर अगर आप कुछ बात कहना चाहते हैं तो आप पोस्ट-बॉक्स पर लिख सकते है अब।

मन की बात

पोस्ट बॉक्स 111, आकाशवाणी

नई दिल्ली

मुझे इंतजार रहेगा आपके पत्रों का। आपको पता नहीं है, आपके पत्र मेरे लिए प्रेरणा बन जाते हैं। आपके कलम से निकली एक-आधी बात देश के काम आ सकती है। मैं आपका आभारी हूं। फिर हम 2015 में जनवरी में किसी न किसी रविवार को जरूर 11 बजे मिलेंगे बाते करेंगे।

बहुत बहुत धन्यवाद।