क्‍या कुछ नहीं होता मानसिक अस्‍पतालों में

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violence-against-women_03_12_2014नई दिल्ली: एक मानवाधिकार संगठन की रिपोर्ट के अनुसार देश के सरकारी अस्पतालों और मानसिक रोगियों के अस्पतालों में भर्ती कराई जाने वाली महिलाएं अक्सर शारीरिक और यौन हिंसा का शिकार हुई होती हैं। अक्सर उन्हें उनकी मर्जी के खिलाफ अस्पतालों में भर्ती कराया जाता है और वह इलेक्ट्रिक शॉक जैसे इलाज से गुजरकर और भी दुर्गति का शिकार होती हैं।

लंदन में स्थित ह्यूमन राइट वाच (एचआरडब्लू) नामक मानवाधिकार संगठन ने 45 साल की विद्या का हवाला देते हुए बताया कि वह अपने मुंबई के घर में अकेली थी। तभी खुद को सरकारी स्वास्थ्य कर्मचारी बताकर तीन लोग जबरन घर में घुस आए और उसका यौन उत्पीड़न कर उसे उठा ले गए। जब उसे होश आता है तो वह खुद को एक मानसिक रोगियों के अस्पताल में पाती हैं जहां उसकी मर्जी के खिलाफ उसका इलाज होता है और उसे बिजली के शॉक दिए जाते हैं। विद्या के अनुसार वह इस इलाज से शारीरिक रूप से सुन्न और अक्षम हो गई थी। उसने मानवाधिकार संगठन को बताया था कि उसके खिलाफ ये सब उसके पति ने कराया जो उसे पागल करार देकर तलाक देना चाहता था।

पीछा छुड़ाने को मनोरोगी करार देते हैं परिजन

मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट वाच की “ट्रीटेड लाइक एनिमल” रिपोर्ट के अनुसार भारत में अपंग महिलाओं और युवतियों को मानसिक रोगी करार देकर पागलखाने में जबरदस्ती भर्ती कराया जाता है। इन अस्पतालों में भी उनका शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न ही होता है। सरकारी अस्पतालों में गंदगी और गलत इलाज की अव्यवस्थाओं का साम्राज्य है। एचआरडब्लू की अनुसंधानकर्ता कृति शर्मा ने बताया कि इन अपंग महिलाओं के परिजन इनसे पीछा छुड़ाने के लिए मानसिक रोगों के अस्पताल की कोठरियों में इन्हें किसी न किसी बहाने बंद करा देते हैं। कई बार पुलिस भी ऐसी बेसहारा महिलाओं के साथ यही सलूक करती है। इन बदहाल सरकारी अस्पतालों में न उचित व्यवस्था होती है और नाही उपयुक्त सेवाएं दी जाती हैं।

7 करोड़ भारतीय मनोरोग से ग्रस्त

कृति के अनुसार सात करोड़ भारतीय विभिन्न प्रकार के मनोरोगों से ग्रस्त हैं। इनमें सीजोफिरेनिया जैसे गंभीर मानसिक रोग भी शामिल हैं। वहीं 15 लाख लोग अधिक बुद्धिमता के कारण होने वाली अक्षमताओं से ग्रस्त हैं, जैसे डाउन सिंड्र्रोम। इसके बावजूद देश के केंद्रीय स्वास्थ्य बजट में मानसिक रोगों पर केवल .06 फीसद ही खर्च किया जाता है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में मानसिक रोगियों के लिए केवल 43 सरकारी अस्पताल हैं। केवल तीन सैक्रियाटिस्ट वाले अस्पताल हैं। 1.20 अरब आबादी के देश में हर दस लाख लोगों में 0.47 फीसद मानसिक रोगों के शिकार हैं।