बड़ा सवाल- आलू एवं शाकभाजी अधिकारी को सब्जियां मिलती सस्ती तो आम जनता को महगी क्यों?

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shopफर्रुखाबाद: एक व्यंग के कवि ने एक कविता पढ़ी जिसका सार था कि एक सिपाही की भर्ती में रामसिंह भर्ती होने गया तो इंटरव्यू में सवाल पूछा गया| अफसर ने पूछा कि 10 रुपये किलो सेब बिकते है और तुम्हारी माँ बाजार से आधा किलो सेब लेने जायेगी तो कितने के मिलेंगे| राम सिंह ने जबाब दिया कि एक सिपाही की माँ से आधा किलो सेब के पैसे मांगने की हिम्मत किसकी होगी| इंटरव्यू ले रहा अफसर परेशान हो गया| अफसर ने फिर पूछा मान लो मैं 2 किलो सेब लेने बाजार में गया तो कितने का मिलेगा| राम सिंह ने जबाब दिया कि कैसी बात करते हो साहब| मेरे रहते आप सेब लेने जाओगे| मेरे सिपाही बनने का क्या फायदा क्या होगा, मंडी में तैनाती कर देना हर हफ्ते एक पेटी रोज घर पर मेमसाहब तक पंहुचा दिया करूंगा| तो यूपी में राम सिंहो की कमी नहीं है| जो भी बाजार में एक दो दिन में सब्जी लेने गया होगा उसे मालूम होगा कि आलू 20 रुपये किलो से काम में नहीं है| साफ़ सुथरा प्याज 30 रुपये किलो से कम नहीं और टमाटर 60 रुपये किलो से एक धेले नीचे देने को दुकानदार तैयार नहीं है| मगर जिले के आलू एवं शाकभाजी विकास अधिकारी को ये सब सस्ते में मिल रहा है|

सूचना कार्यालय के माध्यम से प्रेस को भेजी गयी विज्ञप्ति में नेपाल राम आलू एवं सब्जी अधिकारी बताते है कि दिनांक 14/07/2014 को फुटकर मूल्य आलू का 18 से 20 रुपये किलो, प्याज 20 से 25 रुपये किलो और टमाटर 35 से 40 रुपये किलो रहा| अब ये रेट मीडिया को भेजे है तो जाहिर है कि सरकार को भी यही रेट भेजे गए होगे| साहब कागजो में व्यापारियों से अपील कर रहे है कि बड़े व्यापारी अपना आलू निकाल कर बाजार में बेचे ताकि बाजार का मूल्य कंट्रोल में बना रहे| अच्छा प्रयास है| आधे से ज्यादा कोल्ड स्टोर में भरा आलू व्यापारियों का ही है मगर साहब है कि सिर्फ अपील कर सकते है| साहब या उनके चपरासी को तो बाजार में सब्जी सस्ती मिल ही जाएगी| सब्जी अधिकारी जो ठहरे| आखिर किस की मजाल जो राम सिंह से ज्यादा पैसे ले ले| आम आदमी को उल्लू बनाने का तरीका अच्छा है मगर जायज नहीं|
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