डीएम साहब खोलिए तिलस्म का राज- बेसिक शिक्षा के इस कमरे में मत जाईये- “यहाँ सांप रहता है…”

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Narendra Sarin Schoolफर्रुखाबाद: बचपन में नानी और दादी कहानी सुनाती थी कि एक राजा था उसने अपनी सम्पत्ति दुश्मनों से बचाने के लिए जमीन में गाड़ दी और उस पर नाग देवता बैठा दिए| फिर जब कोई उस सम्पत्ति को पाने के लिए जमीन खोदता तो उसमे नाग निकल आता था| कहानी किस्से रात को नींद लाने के लिए सुनाये जाते थे और फिर उसे भूल जाते| बड़े होकर पाया कि उन कहानी किस्सों के पीछे एक सन्देश होता था| अब वक़्त बदल गया है| अब कहानी किस्सों के पीछे सन्देश नहीं मकसद होता है| तभी तो भ्रष्टाचार छुपाने के लिए कमरे के दरवाजे के बाहर सरकारी चोरो ने लिख दिया- “यहाँ सांप रहता है”|

“यहाँ सांप रहता है”-
हो सकता है की जब आप कभी इस सन्देश लिखे दरवाजे पर पहुचे तो खबर पढ़कर सरकारी चोर इसे मिटा दे इसलिए इसकी कई तस्वीरे भी उतार ली गयी कई लोगो के साथ उतार कर सुरक्षित इसलिए रख ली ताकि कल को कोई यह न कह सके कि खबरनवीस ने इसे खुद लिख लिया| फिलहाल इस तस्वीर के पीछे छुपे राज को भी जान ले|
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फतेहगढ़ के मुख्यालय पर स्थित सरकारी प्राथमिक और जूनियर स्कूल| स्कूल का नाम नरेन्द्र सरीन मांटेसरी स्कूल इसलिए है क्योंकि एक समाजसेवी ने ये कीमती जमीन शिक्षा के मंदिर के लिए दान कर दी थी| अब यहाँ यकीनन चोरो का अड्डा है| पिछले 8 साल से इस स्कूल में आना जाना हो रहा है| और 10 साल का रिकॉर्ड का अध्ययन करने को भी मिला| हर साल इस भवन के माध्यम से 2 लाख बच्चो को मूर्ख बनाया जाता रहा है| यहाँ बच्चो को मिलने वाली मुफ्त किताबो का भण्डारण होता है| इसके अलावा लाइब्रेरी या अन्य साहित्य जो स्कूलों के लिए आता है यही भंडारित किया जाता है| किताबे पिछले 10 सालो से किस्तों में आती है जो वार्षिक परीक्षा के समय तक बाटी जाती है और कुछ आती भी नहीं है केवल बिलों के भुगतान होते है| वर्ष 2009 में फर्रुखाबाद जनपद में 2.97 लाख बच्चो के लिए किताबो का आर्डर किया गया था जबकि नामांकित (असली और फर्जी मिलाकर ) बच्चे केवल 2.37 लाख ही थे| यानि की जरुरत से 60 हजार सेट ज्यादा मंगाए गए| समय रहते व्यवस्था computerised हुई और नामांकन 1.90 लाख के अंदर आ गया| हर वर्ष किताबे मंगाई जाती रही मगर बच्चो को अंत तक नहीं मिलती| जो माल बच जाता है उसे नरेंद्र सरीन स्कूल के कमरो में पैक कर उस पर लिख दिया जाता है – “यहाँ मत आईये यहाँ सांप रहता है”

इस स्कूल में कुल कितने कमरे है इसका तक हिसाब नहीं है| कई अतिरिक्त कक्षा कक्षा तो गायब ही है| कमरे बेहिसाब है| आधे खुले ही नहीं थे फिर भी सरकार को डिमांड भेजी जाती यहाँ अतिरिक्त कक्षा कक्ष की जरुरत है| एक रिटायर हो चुके मास्टर साहब तो पूरा कमरा ही चुरा कर जा चुके है| मतलब ये कि जिस कमरे के लिए पैसा आया वो पैसा तो निकल गया मगर कमरा कभी नहीं बना| एक छत पर बना दिया गया| खैर चोरो की कोई जात नहीं होती| जिस कमरे के बाहर सांप लिखा है उसमे किताबे भरी है| जिसका लेखा जोखा किसी के पास नहीं|

इसी स्कूल के पिछवाड़े में बने एक एक कमरे में लगभग 10 हजार स्लेट भरी है जिसका लकड़ी का फ्रेम दीमक छत गयी मगर किसी को पढ़ने लिखने के लिए नहीं दी गयी| दरअसल में ये एक अलग घोटाला है| जानकार बताते है कि कभी साक्षरता अभियान में बाटने के लिए स्लेट आई थी| स्टोर इंचार्ज का प्रभार संभाले मास्टर साहब ने आधी बाजार में बेच दी और जो बिक नहीं पायी उनके दीमक चाट गयी, अवशेष अभी भी उसी सांप वाले कमरे में मौजूद है| साक्षरता अभियान भी पूरा हो गया लोग साक्षर भी हो गए और स्लेट भी बच गयी| जय हो नाग देवता की|
Slate at PS narendra Sarin
यहाँ कोई बच्चो का खाना चुराता है तो कोई किताबे| कोई कमरे चुराता है तो कोई बच्चो भविष्य| हर कोई कुछ न कुछ चुरा रहा है| न जाने कितने डीएम इन 10 सालो में आये और चले गए| कितनो ने यहाँ एसडीएम और नगर मजिस्ट्रेट भेजे और जाँचे करवा ली| लिखने में कोई कोताही नहीं कि किसी एसडीएम ने ईमानदारी से जाँच कर रिपोर्ट तैयार की तो हिसाब डीएम ने कर लिया और कई बार तो नीचे वाले साहब ही माया मोह में फास गए| जानकारी अपर शिक्षा निदेशक बेसिक शिक्षा कानपुर को भी है मगर वे भी बच्चो के भविष्य की जगह माया मोह में फसे हुए है| मीडिया भी जाँच के समय मौजूद रही, कमिया और घोटाले भी बताये है कि हैं मगर फिर भी घोटालेबाजो के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई| होती भी कैसे यहाँ तो “माया” वाला नाग जो बैठा है| अब चौहान साहब आये है देखते है कि वे इन सांपो का राज खोल पाते है या नहीं| दफ्तर के बड़े बाबू पालीवाल से लेकर राजेश वर्मा तक बड़े राजदार है इस सांपो के| इन 10 सालो में निरंतर अध्ययन करने के लिए जरुरी दस्ताबेज भी कहीं सुरक्षित है| कहानी नवाबगंज में वर्ष 2007 में पकड़ी गयी कबाड़ी की गोदाम पर बिकी 1 लाख से ज्यादा किताबो से शुरू हुई थी| FIR हुई थी| आधा मामला चार्ज शीट तक निपट गया और आधा न्यायालय में| अब भी न्यायालय में मामला है सुना है कि विभाग के लोगो ने उन किताबो को अपनी होने से इंकार कर दिया है| “सब सांप/नाग की माया है”|