तो फिर क्या सपा में केवल बाप बेटा ही रह जायेंगे?

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Editorफर्रुखाबाद: लोकसभा फर्रुखाबाद की सीट पर समाजवादी पार्टी को जनपद की चारो विधानसभाओ में से एक भी विधानसभा में इतने भी वोट नहीं मिले जितने कि उनके गृह जनपद और विधायकी वाले अलीगंज से भाजपा का प्रत्याशी बटोर लाया| इस पर भी प्रत्याशी के पुत्र सुबोध का ये तुर्रा कि गद्दार पार्टी में नहीं रहेंगे और गद्दार नेताओ की सुनने वाला अधिकारी जिले में नहीं रह पायेगा क्या सन्देश दे रहा है| वैसे सुना है कि सपा के मुखिया मुलायम सिंह यादव और उनके पुत्र मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अब जनता की नब्ज टटोलने में लगे है और दिशा निर्देश भी ये दिए जा रहे है कि जनता के करीब जाओ| जब सभी जगह मामला साफ़ हो गया तो गद्दार कौन है इस पर विचार करना प्रथम सवाल हो गया है| फर्रुखाबाद के सपा के सम्मेलन में जनपद अलीगंज के विधायक के पुत्र का अल्टीमेटम एक तानाशाही रवैये और स्यंभू दृष्टिकोण को दर्शाता है| वैसे “पहले फरक और बाद में वाद” की बात कह कर फर्रुखाबाद की जनता की तौहीन करने की जगह मोहब्बत से जीत लेने के इरादे रखे तो बेहतर होगा क्योंकि समधियाने से लेकर जरारी तक हार ही हार में गिनने लगोगे तो सब गद्दार ही नजर आएंगे| और अब जनता को अधिकारी नेता के माध्यम से काम कराने वाला नहीं सीधे उसका काम करने वाला चाहिए| दोनों मामलो में जनता की नब्ज टटोलो| वर्ना चंद उन चेहरों जिन्हे फर्रुखाबाद की जनता “भलेमानस” नहीं मानती के भरोसे रहे तो मैदान खाली ही नजर आएगा|

नरेंद्र मोदी क्यों जीते? उनके पीछे जनता क्यों चल पड़ी? और क्यों गद्दी सँभालने के बाद जनता का विश्वास दिनों दिन बढ़ता जा रहा है| इसे समझने की जरुरत है| जनता व्यवस्था में बदलाव चाहती है| सपा का कार्यकर्ता अपने मुखिया के पास जाकर रोता है कि अधिकारी उसकी नहीं सुनते| काश वो यह कह कर रोया होता कि फलां अधिकारी जनता की नहीं सुनता| शायद काम बन जाता| अधिकारी जनता के काम करने वाला होना चाहिए| केवल सपा नेता और कार्यकर्ता की सुने तो अधिकारी अच्छा वर्ना बसपाई मानसिकता| इससे ऊपर उठना पड़ेगा| सपा कार्यकर्ता बिना कागज के गाडी चलाता पकड़ा जाए तो गलत हो गया जाम लगा दो, दरोगा को लाइन हाजिर करा दो| और जनता के साथ ऐसा हो तो अच्छा है| ये दर्ष्टिकोण बदलना होगा| अब जनता को वो अधिकारी और प्रशासन चाहिए तो सभी के साथ सामान व्यवहार करे| वर्ना याद रखो जीतने वाले से ज्यादा वोट उसके विरोधियो को मिलाकर पड़ते है| और जब एक हो जाते है तभी मोदी जैसे सत्ता में आते है| सत्ता आने पर कार्यकर्ता दलाली करते है| कोई बालू का अवैध खनन करता है| क्या जनता ये सब नहीं जानती| जनता सायानी हो चली है, बोलती नहीं वक़्त आने पर वोट की चोट कर देती है|

“दोस्ती निभाना” तो तुम्हे आता है “दुश्मनी निभाना” छोड़ कर तो देखो दोस्तों से घर भर जायेगा|
पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह यादव के पुत्र सचिन यादव का टिकेट काटा जाना भी कुछ इसी प्रकार के रवैये का मसला था| पार्टी के कुछ लोग तिरस्कृत होने लगे तो अभियान और मुहीम चला दी और विरोध कर टिकट कटवा दी| मगर जिसे लाये उसे भी फर्रुखाबाद की जनता ने नकार दिया| आखिर चुनाव जीतने के लिए लोकप्रिय, जनप्रिय सहृदय और दूसरो की बात का मान रखने वाले नेता की जरुरत थी| लट्ठ की दम पर राजनीति करने का जमाना चला गया| ठेकेदारी करे चंद लोग और वोट दे आम जनता| क्यों दे भाई?

आम जनता की बेरोजगारी का भी ख्याल रखना होगा| अब भ्रष्ट कोटेदारों और प्रधानो की दम पर चुनाव नहीं जीते जा सकेंगे| क्योंकि प्रधान और कोटेदार के समर्थक चंद लोग होते है विरोध में 90 फ़ीसदी लोग| वोट डालना जनता सीख गयी है| बूथ की सुरक्षा करना भी लोगो को आ गया है| बदलाव के मौसम में रेत की दीवार बनाना बेमानी है| चिंतन करो कि गद्दार कौन है? जनता की आवाज में आवाज मिलाने वाला गद्दार है या फिर जनता की आवाज दबाने वाला गद्दार है| जनता का राशन लूटने वाला गद्दार है या फिर जनता को राशन दिलवाने वाला गद्दार है| भ्रष्टाचार करने वाला गद्दार है या फिर भ्रष्टाचार का विरोध करने वाला गद्दार है? दुश्मन के दिल में उतर कर तो देखो एक भी गद्दार नजर नहीं आएगा| न नेता, न अफसर और न ही जनता| “दोस्ती निभाना” तो तुम्हे आता है “दुश्मनी निभाना” छोड़ कर तो देखो दोस्तों के लिए आँगन छोटा पड़ जायेगा|

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