एक दहशत भरा चुनाव: ए चाँद तू किस मजहब का है- ईद भी तेरी और करवा चौथ भी तेरा

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Editorमंगल पर जीवन तलाशने के युग में भारतीय राजनीति का खोखलापन चिंताजनक विषय है| सत्ता, कुर्सी और ओहदा इन तीन की तलाश में विकास और जीवन में मंगल की चाह जैसे विलुप्त हो रही है| तीन माह का राजनैतिक ओलम्पिक अब आखिरी सत्र में है| चुनावी दाव पेच चलकर सत्ता पाने की बात तो चाणक्य ने भी कही थी मगर चुनाव से पहले वाली रात में कोई नेता ये कहेगा कि बताओ “ब्राह्मणों का वोट ले लू या मुसलमानों का” ये बात आज तक पढ़ने को न मिली| ये सियासी पहाड़े परदे के पीछे के है जो नेताओ ने मंचो पर मीडिया की मौजूदगी में नहीं गढ़े| चुनाव हो गया| मगर यू लगता है कि शमशान में जली चिता की राख ठंडी होने देने का समय अब किसी के पास नहीं है| अधसुलगी लाश को पानी से बुझा कर अंतिम विसर्जन की तैयारी हो चली है| लोकतंत्र एक बार फिर हार गया और नेता जीत गया|

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वोट पाने के लिए क्या क्या घिनौने कदम उठाये जा रहे थे| लोकतंत्र की लाश पर पैर रखकर हर कोई जीतने की अभिलाषा पाल बैठा| सिर्फ ताज पहनने की लालसा| भ्रष्टाचार में डूबे कोटेदार और प्रधानो की कमजोरियों पर जख्म हरे किये जा रहे थे| किसी को बस्ता जमा होने का डर तो किसी को गरीन जनता के राशन की लूट से चल रही रोजी रोटी छीन जाने का डर| डरा हुआ हर कोई था| जो चुनाव लड़ रहा था और जो चुनाव लड़ा रहा था| दोनों बदहवास से अपने अपने को बचा रहे थे| अपनी मृग मरीचिका सी सत्ता छिन जाने का डर| चुनाव लड़ने वाले नेता अपनी गाडियों में वैध और अवैध दोनों प्रकार के रिवाल्वर, तमंचे लेकर चल रहे थे|

एक पूर्व डीजीपी से पूछा गया कि लोगो को हथियार लेकर चलने का शौक है या फिर सुरक्षा की जरुरत है| उनका जबाब था कि जो सभ्य समाज में सबसे ज्यादा कमजोर और डरा हुआ होता है उसे सबसे ज्यादा सुरक्षा की जरुरत पड़ती है| क्या ऐसे डरपोक को देश की बागडौर सौप देनी चाहिए| जो खुद डरा हुआ है| सुरक्षा के घेरे में चलता है वो कैसे दूसरो की सुरक्षा की बात करता है| फलां जाति के लोग फलां जाति के नेता के नाम पर एकजुट हो जायेंगे| ऐसा भ्रमजाल| लोकतंत्र के मंदिर में किस को भेज रहे हो| सभी नेताओ ने जातियों का मीनू तैयार किया हुआ था| उसे परोसने वाले सहयोगी भी जातिवार थे| ब्राह्मणों के लिए कौन? ठाकुरों के लिए कौन? मुसलमानों के लिए कौन? काछियो, कुर्मियो, किसानो, दलितों और न जाने कौन कौन से जातीय व्यंजन से सजे थाल वोटरों को परोसे जा रहे थे| आखिरी दौर में बयानवीरो की बारी है| मुद्दे अब मुर्दे हो चले है|

शांति भंग न हो-
चुनाव वाले दिन लोग आस्थावान हो जाते है| चुनाव से जुड़े हर वर्ग और हर मशीनरी का आस्थावान होना जरुरी भी है| मगर लोकतंत्र के प्रति आस्थावान होते कम ही दिखे| चुनाव आयोग का निर्देश था कि जहाँ पांच या उससे ज्यादा बूथ एक साथ है वहां केंद्र से भेजे सुरक्षा बल तैनात किये जाए| मगर ऐसा पूर्ण रूपेण नहीं था| वर्ना आब्जर्वर को जरारी मतदान केंद्र जहाँ 7 बूथ एक साथ थे वहां ये कहना न पड़ता कि यहाँ केंद्रीय सुरक्षा क्यों नहीं है| कई जगह पीठासीन अधिकारी और सहायक की भूमिका में गए मित्रो ने बताया कि वे फर्जी वोट रोकने की कोशिश करते तो निगरानी में लगाये गए अधिकारी कहते चुपचाप होने दो| शांति भग न हो|

ग़ालिब ने खूब कहा है..: ऐ चाँद तू किस मजहब का है ईद भी तेरी और करवाचौथ भी तेरा..