क्या यह आजम खां की प्यारी भैंसें नहीं हैं?

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azam khan bhaisरामपुर: क्या नगर विकास मंत्री की पशुशाला से चोरी गई सातों भैंसें वास्तव में कैबिनेट मंत्री की ही हैं? कहीं दूसरी भैंसों को तो पशुशाला में तो नहीं भेज दिया गया है? ये सवाल इसलिए उभरकर सामने आ रहा कि पुलिस पांच दिन बाद भी पशु चोरों को तलाश नहीं कर पाई है। अगर चोरों को भैंसें यूं ही छोड़ देनी थीं, तो उन्होंने इतना बड़ा रिस्क क्यों उठाया?

लोगों में चर्चा है कि कैबिनेट मंत्री की भैंसें उसी दिन ठिकाने लगा दी गईं। सच्चाई क्या है यह तो पुलिस जानती है या फिर भैंसों की देखभाल करने वाले। पुलिस की ओर से भैंसों की बरामदगी का जो दावा किया जा रहा है उसमें भोट थाना क्षेत्र के इंड्रा गांव को छोड़कर किसी गांव के ग्रामीण इस बात को स्वीकार नहीं करते हैं कि भैंसें यहां मिली थीं।

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इंड्रा गांव में दो भैंसें मिलीं थी। गांव के लोगों ने ही इस बारे में पुलिस को सूचना दी थी। भुर्जी की मडैय्या गांव का कोई भी व्यक्ति इस बात को स्वीकार करने को तैयार नहीं है कि यहां भैंसें मिलीं थी।

गांव के लोग इस बात को जरूर स्वीकार करते हैं कि पुलिस गांव में आई थी और लोगों के घरों में जा जाकर पशुओं को देखा था। यहां कोई भैंस नहीं मिली। पुलिस दावा है कि दो भैंसें चमरौवा में मिली थीं। कहां मिली थीं। किसके यहां मिलीं?अगर ऐसे ही घूम रही थीं तो पुलिस ने तो उस इलाके का चप्पा-चप्पा छान मारा था।
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फिर कुछ घंटें के अंदर भैंसें कैसे मिल गईं। भैंसों के मिलने के संबंध में पुलिस की ओर से यह भी जानकारी दी गई थी कि दो भैंसें खुद ही पशुशाला पहुंच गई थीं। एक गंज कोतवाली क्षेत्र में घूमती मिली। क्या चोर इतने शरीफ थे कि वो खुद ही भैंसों को पशुशाला तक छोड़ गए?
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गांव के कुछ लोग दबी जुबान से यह भी कहते हैं कि हो सकता है कि पुलिस ने अपनी साख बचाने के लिए दूसरी भैंसों को बरामदगी दिखा दी हो। पशु चोरों की गिरफ्तारी को पुलिस ने कुछ लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ जरूर की है, लेकिन कोई सफलता हाथ नहीं लगी है।