यूपी में आईपीएस अफसरों की जाति का महत्व

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Caste Farrukhabadफर्रुखाबाद: यूपी में नेता अफसर क्या आम जनता भी दिन रात जाति का जाप करती है| हर जिले दर्जनो जाति वाले संगठन मिल जायेंगे| क्षत्रिय समाज, ब्राह्मण समाज, जैन समाज, विष्वकर्मा समाज, बाल्मीकि समाज, कुर्मी समाज, जाटव समाज जैसे हर जाति और उपजाति के दो लोगो से लेकर सैकड़ो लोग पदाधिकारी बनाकर लैटर पेड़ छापकर सन्डे तो सन्डे मीटिंग करते है| मंडे को अखबार में छपती है| और ट्यूसडे से लेकर सैटरडे के बीच डीएम दफ्तर पहुच जो भी अफसर इंचार्ज होता है उसे ११ से लेकर २१ सूत्रीय ज्ञापन सौप उसकी कई दर्जन फ़ोटो प्रतियां प्रेस वालो को बाटते मिल जायेंगे| फिर दो पन्नो से चार पन्नो के स्थानीय खबरो को छपने का दावा करने वाले उन्हें जगह के अनुसार फिलर (मीडिया में फिलर खबरो के बीच के स्थान में खली जगह को भरने को कहते है) के रूप में छाप देते है| ये जाति का सिरप बड़ा महत्त्व रखता है|

जब भी कोई अफसर जिले में तबादले पर आता है तो सबसे पहले उसकी जाति का पता लगाने में जनता के रूचि होती है| तेरी जाति का कलेक्टर आया या फिर मेरी जाति का| लोग संबंधित जाति के दोस्त को फोन पर बताते है कि भाई अब तो आपकी चलेगी नए डीएम आपकी बिरादरी के है| नेता भी जाति का रजिस्टर तैयार करते है| इसमें बहुजन समाज पार्टी सबसे आगे है| इसके बाद भाजपा और सपा की तैयारी होती है| इस मामले में कांग्रेस सबसे फिस्सड्डी है| इसमें कांग्रेस का कोई दोष नहीं| यू पी में कांग्रेस के लिए जाति के लोग गिनने वाले (संगठन) के लोग ही नहीं है| अब जनता, नेताओ के बाद सबसे धर्मनिरपेक्ष कहे जाने वाले सरकारी तंत्र का भी वही हाल है| कई मामलो में सविधान की उपेक्षा कर अफसरो की जाति का गणित लगाया जा रहा है| इस मामले में बसपा और सपा सरकारे अव्वल रही है|

आईपीएस अफसरों की जाति को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार अपने अभिलेखों में दो तरह की बातें करती दिखती है| आईपीएस अमिताभ ठाकुर ने अप्रैल 2011 में खुद को सरकारी अभिलेखों में कास्टलेस (जाति-विहीन) कहे जाने के लिए आवेदन दिया| लम्बे समय तक इस पर फैसला नहीं आने पर उन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में इस सम्बन्ध में मुक़दमा भी किया है|

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आरटीआई कार्यकर्ता डॉ नूतन ठाकुर द्वारा प्राप्त गृह विभाग की सम्बंधित पत्रावली में कहा गया है कि आईपीएस अफसरों की ग्रेडेशन लिस्ट और शासकीय अभिलेखों में जाति नहीं लिखी जाती है और उनकी पदोन्नति, ट्रांसफर आदि जाति के आधार पर संपन्न नहीं किये जाते हैं, मात्र सेवा में आते समय अभिलेखों में ये अधिकारी “स्वयं ही” अपनी कास्ट अंकित करते हैं. इस आधार पर श्री ठाकुर को कास्टलेस लिखे जाने का कोई औचित्य नहीं माना गया|

इसके विपरीत अन्य आरटीआई सूचना के अनुसार शासन और डीजीपी कार्यालय में प्रयुक्त आईपीएस अफसरों के बायोडाटा में प्रत्येक अधिकारी की जाति प्रमुखता से अंकित होती है| डॉ ठाकुर ने कहा है कि मुख्य बायोडाटा में जाति लिखे जाने से स्पष्ट है कि इन अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग सहित अन्य मामलों में उसका ख़ास स्थान रहता है जिस बात को अमिताभ ठाकुर की पत्रावली में झुठलाया गया है|