लखनऊ: दिल्ली में उलटफेर के बाद यूपी में आम आदमी पार्टी की आहट से भाजपा सहमी है। संगठनात्मक ‘अलर्ट’ जारी कर अपने नेताओं से ‘आप’ को लेकर चर्चा या टिप्पणियां नहीं करने को कहा गया है। सार्वजनिक स्थलों पर केवल भाजपा की उपलब्धियां ही गिनाने का फरमान जारी किया है।
‘आप’ से निपटने के लिए पार्टी में जो मंत्र दिए जा रहे हैं, उसमें भाजपा को नंबर एक बताते हुए ‘आप’ की लड़ाई को केवल कांग्रेस से दिखाना है। ‘आम जनता को बताएं कि दिल्ली में ‘आप’ ने कांग्रेस को चौपट किया। लोगों का गुस्सा कांग्रेस के खिलाफ है। जनता भाजपा को विकल्प बनाना चाहती है इसीलिए दिल्ली के लोगों ने नम्बर एक बनाया’.., जैसे तथ्यों पर पार्टी का बचाव करने की हिदायत है। ‘आप’ का हौव्वा समाप्त करने की रणनीति शहरी इलाकों की बैठकों में विशेष रूप से बताई जाती है।
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लोकसभा चुनाव से पूर्व ‘आप’ के उभार से भाजपाइयों की नींद उड़ना बेवजह नहीं है। शहरी मतदाताओं खासकर युवाओं में तेजी से बढ़ा ‘आप’ का क्रेज आने वाले दिनों में नुकसानदेह भी हो सकता है। दिल्ली में चमत्कारी जीत के बाद आम आदमी पार्टी का अगला कदम उत्तर प्रदेश की ओर है। यहां अपने दम पर कम से कम 36 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके आप नेता मिशन यूपी पर जुटे है। शहरी इलाकों के अलावा वीआईपी संसदीय सीटें उनके निशाने पर है।
पकड़ कमजोर होने का खतरा
शहरी क्षेत्रों में ‘आप’ की पकड़ बढ़ती है तो निश्चित रूप से भाजपा घाटे में रहेगी। गत विधानसभा अथवा निकाय चुनाव के नतीजों पर गौर करें तो भाजपा का दबदबा नगरीय इलाकों में दिखता है। अपने सबसे खराब दौर में भाजपा शहरी क्षेत्र में दूसरे नंबर की पार्टी रही। पार्टी के कुल 47 विधायकों में से 27 शहरी क्षेत्रों से है। निकाय चुनाव में भाजपा की बढ़त कायम रही। एक महापौर का कहना है कि आप को दिल्ली की तरह से हल्के में लेना उचित नहीं होगा।
सोशल नेटवर्किंग पर खतरा
सियासत में गेम चेंजर के रूप में सामने आयी ‘आप’ से सोशल नेटवर्किंग में जंग की पिछड़ने का खतरा भी भाजपा को सता रहा है। भाजपा आईटी सेल से जुड़े एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि शहरी युवाओं व महिलाओं में ‘आप’ की लोकप्रियता की काट जल्द तलाशनी होगी वरना लोकसभा चुनाव में दिल्ली की तरह किनारे पर ठहरने का डर रहेगा।