साल 2013 दिल्ली विधानसभा चुनावों के नतीजों से जहां भारतीय राजनीति में बदलाव की शुरुआत हुई है। वहीं, मतदाताओं ने पारंपरिक कांग्रेस और भाजपा की महिला प्रत्याशियों को सिरे से नकारते हुए आप की महिलाओं को मौका दिया है।
राजधानी के दंगल में बेशक महिला मतदाताओं ने रिकॉर्ड 65.17 फीसदी मतदान किया हो, लेकिन जीत का ताज आम आदमी पार्टी की तीन महिला प्रत्याशियों के पक्ष में वोट देकर किया है।
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चुनावी नारों व वादों में भले ही महिलाओं को साथ लेकर चुनाव लड़ने की बात की गई थी, लेकिन टिकट वितरण में सभी राजनैतिक दलों ने महिला प्रत्याशियों पर भरोसा नहीं जताया था।
राजनैतिक दलों के महिला प्रत्याशियों पर भरोसा न करने का ही नतीजा है कि मतदाताओं ने भी उन्हें नकारा है। दिल्ली विधानसभा चुनावों में रिकॉर्ड 65.86 फीसदी मतदान हुआ था। चुनाव में कांग्रेस ने छह तो भाजपा ने पांच महिलाओं को मैदान में उतारा था।
जबकि आप ने भी पांच महिलाओं को मौका दिया था। चुनाव में 16 महिला प्रत्याशी मैदान में थीं, जिसमें से महज मंगोलपुरी से राखी बिरला, शालीमार से वंदना कुमारी व पटेल नगर से वीना आनंद के सिर पर जीत का ताज सजा है।
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2008 के विधानसभा चुनाव पर नजर दौड़ाई जाए तो भाजपा के टिकट पर सिर्फ तीन महिला उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा, लेकिन जीत किसी को भी हासिल नहीं हो सकी।
जबकि कांग्रेस ने नौ उम्मीदवार मैदान में उतारा था, इनमें शीला दीक्षित सहित तीन को जीत हासिल हुई। 1993 में भी कुल तीन महिलाएं विधानसभा पहुंचीं थीं। जबकि 1998 में शीला व सुषमा स्वराज सहित नौ जबकि 2003 में कुल सात महिलाओं ने विधानसभा में एंट्री पाई।