नई दिल्ली: नकली नोटों के चलन को रोकने में अभी तक असफल रहने के बाद सरकार अब आखरी दांव खेलने को तैयार है। यह दांव प्लास्टिक नोटों के तौर पर होगा जिसे देशभर में उतारने की तैयारियां लगभग अंतिम चरण में हैं। देश के पांच शहरों में कुछ महीने पहले ही प्रायोगिक तौर पर प्लास्टिक नोटों का प्रचलन शुरू किया गया है। अभी तक के अनुभव से उत्साहित रिजर्व बैंक अगले वर्ष पूरे देश की जनता जनता के हाथों में प्लास्टिक नोट देने जा रहा है।
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पिछले तीन-चार वर्षो से देश में प्लास्टिक नोट उतारने की तैयारियों में जुटे रिजंर्व बैंक पर वित्त मंत्रालय का भी जबरदस्त दबाव है कि वह अब इसमें ज्यादा देरी नहीं करे। प्लास्टिक नोटों का प्रचलन वास्तविक तौर पर देश के चयनित पांच शहरों में शुरू करने का अनुभव काफी अच्छा रहा है। पिछले कुछ महीनों से जयपुर, शिमला, भुवनेश्वर, मैसूर और कोचीन में प्रायोगिक तौर पर प्लास्टिक नोट प्रचलन में हैं। अभी तक के आकलन के मुताबिक रिजर्व बैंक का यह यकीन और पुख्ता हुआ है कि इसका नकल करना काफी मुश्किल होगा। साथ ही नए नोट छापने की लागत भी कम होगी।
वित्त मंत्रालय भी प्लास्टिक नोटों के प्रचलन पर करीबी निगाह रखे हुए है। देशभर में इसे एक साथ उतारने के लिए मंत्रालय अतिरिक्त संसाधन भी उपलब्ध कराने को तैयार है। उसका मानना है कि देश में नकली नोटों की समस्या को प्लास्टिक नोट बहुत हद तक खत्म कर सकेंगे। दरअसल, सरकार को आशंका है कि आगामी आम चुनाव से पहले देश में पड़ोसी राज्यों की तरफ से फिर बड़े पैमाने पर नकली नोटों का खेप देश में भेजा जा सकता है। यह भी एक वजह है कि वित्त मंत्रालय प्लास्टिक नोटों को जल्दी प्रचलन में लाना चाहता है।
आरबीआइ के आंकड़ों के मुताबिक देश में हर वर्ष लगभग दो लाख करोड़ रुपये के नए नोट छापते हैं। लगभग 20 फीसद नोट सड़ने, गलने या फटने की वजह से हर वर्ष प्रचलन से बाहर किए जाते हैं।