बाल दिवस विशेष- क्या करेगा सलमान का RTE डायट में बच्चे धो रहे झूठे बर्तन

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फर्रुखाबाद: कभी कभी तस्वीर अपने आपमें बड़ी खबर बन जाती है| कुछ लिखने की जरुरत नहीं पड़ती| लाख सवालो का जबाब कह जाती है| बेशर्मो को भी शर्मशार होने पर मजबूर कर देती है| नियत और नियति दोनों की दास्तान बयान कर जाती है तस्वीर| केंद्र की सरकार ढिंढोरा पीट रही है कि उसने शिक्षा का अधिकार दे दिया है| चुनाव के करीब आते ही जिले के सांसद सलमान खुर्शीद भी अपने भाषणो में इसका जिक्र करने लगे है| मगर उन्ही के जिले में इस कानून के लागू होने के 5 साल बाद भी अब तक 1 बच्चे तक को इस अधिकार के तहत प्राइवेट स्कूल में इस अधिनियम के तहत प्रवेश नहीं मिल सका है| वहीँ शिक्षा के अधिकार के हर पहलू को लागू करने के लिए बना जिला शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान (डायट) का हाल ये है कि यहाँ शिक्षको के प्रशिक्षण के दौरान जो भोजन बनता है उसके झूठे बर्तन स्कूल में पढ़ाई की उम्र वाले नाबालिक बच्चे धो रहे है| ये चित्र फर्रुखाबाद जनपद के रजलामई में स्थित डायट का है| चित्र देने वाले एक गम्भीर शिक्षक ने इसका विडियो भी भेजा और बताया कि जब ये बच्चा बर्तन धो रहा था तब डायट प्राचार्य भी वहाँ मौजूद थे|
DAYAT-PHOTO
खैर वैसे तो युवा समाजवादी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के उत्तर प्रदेश में ये तस्वीर कोई खास मायने नहीं रखती मगर ये तस्वीर खास जगह और खास दिन पर बहुत कुछ मुह चिढ़ाती है, केंद्र सरकार पर, राज्य सरकार पर, जिले के सांसद और विधायक और अन्य समजसेविओ सहित पूरी व्यवस्था पर| चाचा नेहरू का जन्मदिन बाल दिवस 14 नवम्बर को कांग्रेस खास मानती है| बाकी सरकारे भी इसके सरकारीकरण के कारण मानती है मगर फिर ये तस्वीर हर वर्ष मिल ही जाती है| दिलों में दिन के पावन होने का कोई महत्त्व नहीं है| जिन्होंने शपथ ली है या फिर जिन्होंने नहीं ली है| हाल दोनों का एक सा है| बाल दिवस अमीरो और साधन सम्पन्न बच्चो के लिए एक त्यौहार है, एक छुट्टी है और एक मनोरंजन है| मगर गरीब के बच्चे के लिए रोज जैसा ही रहेगा| ये बच्चा दोपहर को शिक्षा के अधिकार को लागू करने वालो के झूठे बर्तन ही साफ़ करता नजर आएगा| इस पर शर्म भी किसी को नहीं आएगी| जो इस प्रकरण के तनिक भी दोषी है वे इसे बकवास लेख बताकर पल्ला झाड़ लेंगे| तस्वीर खीचने वाले को मन ही मन में गालियां देंगे| और खबर छापने वाले पर नुक्ता लगाएंगे| इससे ज्यादा कुछ नहीं होगा|

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इस खबर को कांग्रेस वाले भी पढ़ेंगे और भाजपाई भी| बसपा वाले भी इस खबर को पढ़ेंगे और सपा वाले भी| प्रशासन में एक दूसरे को फोन करके इस खबर को बताया जायेगा| मगर न कांग्रेस की आत्मा को कुछ एहसास होगा और न ही बसपा वालो को| सबसे ज्यादा दलित वोटो पर अपना हक़ जताने वाले भी जानते है कि परिषदीय स्कूलो में दलित और पिछड़े वर्ग के बच्चे पड़ते है| मगर शायद दलित बसपा के लिए वोट बैंक से ज्यादा कुछ नहीं इसीलिए उनकी आत्मा से भी कुछ एहसास निकलने की उम्मीद नहीं लगती| फिर शासन प्रशासन और सरकार जिन्हे ये सब रोकना चाहिए उसने क्या उम्मीद है? और सबसे बड़ा सवाल डायट प्राचार्य पर जिनके कैंपस में ये बालक अपना बचपन शिक्षको के झूठे बरतनो में तलाश रहा है?