गोधरा कांड में अदालती फैसला: 11 को मौत, 20 को उम्र कैद की सजा

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गोधरा कांड में दोषी ठहराए गए 11 आरोपियों को विशेष अदालत ने मौत की सजा और 20 अन्य को उम्रकैद की सजा सुनाई है। साल 2002 की इस घटना में 59 कारसेवकों के मारे जाने के बाद गुजरात में फैले दंगों में 1,200 से भी ज्यादा लोग मारे गए थे।

विशेष न्यायाधीश पीआर पटेल ने इस मामले को दुर्लभ में भी दुर्लभतम की श्रेणी में रखते हुए 11 दोषियों को मौत की सजा सुनाई, जबकि दोषी ठहराए गए 20 अन्य लोगों को उम्रकैद की सजा दी गई।

लोक अभियोजक जेएम पंचाल ने कहा कि गोधरा के पास साबरमती एक्सप्रेस के एस6 कोच में आग लगाने की साजिश में उनकी सक्रिय भूमिका देखते हुए अदालत ने 11 लोगों को मौत की सजा दी है।

अदालत ने उम्रकैद की सजा पाने वाले दोषियों पर विभिन्न धाराओं के तहत जुर्माना भी लगाया है, जो उनकी कैद के साथ—साथ चलेगा। अभियोजन पक्ष का कहना था कि यह बहुत जघन्य अपराध था और इसलिए सभी 31 दोषियों को मौत की सजा दी जानी चाहिए।

इसके पहले 22 फरवरी को अदालत ने 31 लोगों को इस मामले में दोषी ठहराया था। अदालत ने अभियोजन पक्ष की इस बात को स्वीकार किया था कि इस घटना के पीछे एक साजिश थी। अदालत ने 31 आरोपियों को धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास) और 120बी (आपराधिक साजिश) के तहत दोषी ठहराया था।

इन सभी को धारा 147, 148 (घातक हथियारों के साथ हमला करना), 323, 324, 325 और 326 (नुकसान पहुंचाना), और 153ए (धार्मिक आधार पर विभिन्न समुदायों के बीच वैमनस्य बढ़ाना) के अलावा भारतीय रेलवे अधिनियम, सार्वजनिक संपत्ति नुकसान निरोधक अधिनियम और बंबई पुलिस अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत भी दोषी ठहराया था। अदालत ने इस मामले में 63 अन्य आरोपियों को बरी कर दिया।

इससे पहले गोधरा नरसंहार मामले के 31 दोषियों को सजा सुनाए जाने के बारे में विशेष अदालत ने शुक्रवार को फैसला एक मार्च तक के लिए सुरक्षित रख लिया था। इस दौरान अभियोजन पक्ष ने दोषियों को प्राणदंड देने का आग्रह किया।

न्यायाधीश आरआर पटेल ने सजा को लेकर साबरमती जेल में अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष की दलीलें सुनने के बाद फैसला मंगलवार तक के लिए सुरक्षित रख लिया था। अदालत ने 22 फरवरी को इस मामले में 31 लोगों को दोषी करार दिया था और 63 अन्य को बरी कर दिया था। अपने फैसले में अदालत ने माना था कि 2002 में हुए गोधरा कांड के पीछे एक साजिश थी, जिसमें साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में 59 कारसेवकों को जिंदा जला दिया गया था।

गोधरा कांड के बाद गुजरात में बड़े पैमाने पर दंगे हुए, जिनमें 1200 से अधिक लोग मारे गए थे। दंगों में मरने वालों में अधिकतर अल्पसंख्यक समुदाय के लोग थे। सरकारी वकील जेएम पांचाल ने अदालत से बाहर आकर कहा था कि हमने सभी 31 दोषियों को फांसी की सजा देने का आग्रह किया। हमने अपनी मांग के समर्थन में सबमिशन किया।

दूसरी तरफ बचाव पक्ष के वकील एडी शाह ने कहा था कि न्यायाधीश ने दोषियों को सुना। शाह ने कहा कि उन्होंने सजा में नरमी बरते जाने का आग्रह किया। नरसंहार के मामले में दोषी साबित इन लोगों को भादंसं की धाराओं 147, 148 (घातक हथियारों के साथ दंगा करने), 323, 324, 325, 326 (नुकसान पहुंचाने), 153ए (विभिन्न समूहों के बीच धार्मिक आधार पर वैमनस्य बढ़ाने) तथा भारतीय रेल अधिनियम और बंबई पुलिस अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत भी दोषी ठहराया गया।

अदालत ने अपने फैसले में यह स्वीकार किया कि कारसेवकों को लेकर अयोध्या से लौट रही साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 डिब्बे में आग का लगना कोई हादसा नहीं, बल्कि इसके पीछे एक साजिश थी। अदालत ने वैज्ञानिक सबूतों, पारिस्थितिजन्य और दस्तावेजी साक्ष्यों तथा गवाहों के बयानों के आधार पर अपने 850 से अधिक पृष्ठ के फैसले में घटना के पीछे षडयंत्र के सिद्धांत को स्वीकार किया।