लखनऊ: छात्रों की शुल्क की प्रतिपूर्ति किए जाने में हुई अनियमितताओं पर हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। पिछले वर्षों में फीस वापस पाने वाले छात्रों ने कोर्स पूरा किया भी या नहीं, इसका कोई ब्यौरा संबंधित विभागों के पास मौजूद नहीं है। इस पर कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि छात्रों की फीस का भुगतान तभी किया जाए, जब उन्होंने कोर्स पूरा कर लिया हो और परीक्षा दे रहे हों।
यह भी कहा कि आधी फीस कोर्स पूरा होने पर और बाकी रिजल्ट आने के बाद दी जाए। इतना ही नहीं, छात्रों के खाते में भेजी गई रकम संस्थान को शुल्क भुगतान में ही इस्तेमाल हो। इस राशि को किसी और काम में लगाने की अनुमति न दी जाए।
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वहीं, राज्य के महाधिवक्ता ने अदालत को आश्वस्त किया कि जब तक संस्थानों की पिछली शुल्क प्रतिपूर्ति नहीं कर दी जाती, उन्हें अगले सत्र में ‘जीरो फी’ पर दाखिला लेने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा। सत्र 2011-12 के शुल्क प्रतिपूर्ति न किए जाने के तमाम मामले हाईकोर्ट में विचाराधीन हैं।
अदालत ने पाया कि कुछ संस्थानों ने एक दिसंबर 2012 और 21 दिसंबर 2012 को एनआईसी की वेबसाइट पर डाटा अपलोड किया था, उन्हें शुल्क प्रतिपूर्ति कर दी गई। जबकि इन्हीं तारीखों में या उससे पहले डाटा अपलोड करने वाले अन्य संस्थानों को प्रतिपूर्ति से मना कर दिया गया।
लखनऊ जिले में सत्र खत्म होने के बाद 29 नवंबर 2012 को डाटा अपलोड करने वाले संस्थानों को भी भुगतान कर दिया गया। यही स्थिति गाजियाबाद में भी देखने को मिली। इसे देखते हुए हाईकोर्ट ने शुल्क प्रतिपूर्ति में पारदर्शी व्यवस्था लागू करने का निर्देश दिया है। मामले में अगली सुनवाई 15 नवंबर को होगी।