नए सपा जिलाध्यक्ष की घोषणा शीघ्र- नदीम, चंद्रपाल, विश्वास लाइन में

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Police Politicsफर्रुखाबाद: समाजवादी पार्टी की जिला कमेटी के भंग होने के साथ ही नए जिलाध्यक्ष की घोषणा भी जल्द ही हो जाएगी| समाजवादी पार्टी के प्रदेश कार्यालय के सूत्रों के अनुसार जेएनआई को जो जानकारी मिली है उसके अनुसार बहुत शीघ्र नए जिलाध्यक्ष की घोषणा हो जाएगी| अभी तक जो नाम प्रकाश में आये है उसके अनुसार नदीम फारुकी दौड़ में सबसे आगे चल रहे है| पूर्व में जिलाध्यक्ष रह चुके चंद्रपाल यादव और विश्वास गुप्ता भी अपने अपने नामो की पैरवी में जोर शोर से लगे हुए है| मुस्लिम वोटो को लेकर पूर्व जिलाध्यक्ष नदीम फारुकी बढ़त बनाये हुए है| वहीँ एक अन्य दावेदार पूर्व विधायिका उर्मिला राजपूत भी दावेदारों की लाइन में है| सपा प्रत्याशी रामेश्वर यादव की सहमती से ही अगले जिलाध्यक्ष की ताजपोशी भी होनी है|
सपा जिला कार्यकारिणी भंग होने के साथ साथ ही फ्रंटल सन्गठन भी भंग हुए है| इसमें कई फ्रंटल संगठनो ने अभी तक अपनी जिला कार्यकारिणी तक नहीं बना पायी थी| खबर है कि सचिन यादव के लगातार क्षेत्र में बने रहना भी राजकुमार सिंह राठौर के जिलाध्यक्ष पद के लिए काल बन गया| इस सम्बन्ध में कई शिकायते प्रदेश कार्यालय को की गयी थी| सचिन यादव के होर्डिंग को लेकर भी शिकायते की गयी थी| जिसके हटवाने को लेकर विवाद हो गया| और नतीजा थाने कोतवाली में मुकदमेबाजी तक पहुच गया|
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सचिन की टिकेट काट रामेश्वर यादव को प्रत्याशी बनाये जाने के बाद ही समाजवादी पार्टी दो धडो में बटकर खुलकर आ गयी थी| रामेश्वर यादव के पुत्र और भाई क्षेत्र में प्रचार में जुट गए| खम्बो पर होर्डिंग भी सज गए मगर कार्यकर्ता दो भागो में बाते होने के कारण प्रचार में सुर्खी भी नहीं आ रही थी| हालात ये थी रमजान के महीने में रोज अफ्तार और इद्द मिलन जैसे कार्यक्रम भी उतने जोरदार नहीं दिखाई पड़े जैसे पूर्व के वर्षो में चुनावी माहौल में होते रहे है|
सचिन यादव के टिकेट काटने और जिलाध्यक्ष राजकुमार के हटने के बाद भी फर्रुखाबाद में सपा में बढ़ती खायी और बढ़ेगी इसके आसार ज्यादा है| पहले से राजनीती में जमे जमाये अजेय नरेन्द्र सिंह यादव के पुत्र सचिन यादव और एटा के निवासी रामेश्वर यादव के बीच ही लोकसभा चुनाव में मुकाबले होने लगे तो कोई अचम्भा मत जानिये| हलांकि ऐसा होने में काफी अडचने होंगी, मगर सियासत में कुछ भी सम्भव है| पार्टी को गली गलौच कर छोड़ कर जाने के बाद जब लोग वापस उसी पार्टी में लौटते है तो उसे पुराना घर कहते है| ये सियासत है, इसकी चल भी ऊंट की तरह ही होती है पता नहीं कब किस करवट बैठ जाए| इसका असर आने वाले वक़्त में जल्द ही देखने को मिलने वाला है|