बेसिक शिक्षा में शासनादेशो की धज्जियाँ उड़ा संविदा पर नियुक्त अनुदेशको के तबादले का खेल

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फर्रुखाबाद: उत्तर प्रदेश में सरकार के नियमो और शासनादेशो का धरातल पर कोई पालन नहीं होता| नियम और शासनादेशो की कीमत लगायी जाती है| इसी की आड़ में भ्रष्टाचार और धन उगाही का काम शुरू होता है| अव्वल तो ये इतने बड़े पैमाने पर पर हो रहा है जिसमे शिकायत और उस पर कार्यवाही का कोई मतलब नहीं रह जाता| वैसे भी यू पी में किसी सरकारी योजना की गड़बड़ी में शिकायत का मतलब ऊपर के अधिकारिओ के लिए हिस्सा वसूलने की जानकारी देना है|

भ्रष्टाचार के मामले में बेसिक शिक्षा परिषद् विभाग, जिला आपूर्ति विभाग, स्वास्थ्य विभाग सहित अन्य सरकारी योजनाओ के क्रियान्वयन में होने वाले भ्रष्टाचार और उस पर निगरानी रखने वाले अमूमन एक ही कुनवे के लोग होते है| इनकी कॉलोनी अलग बनायीं गयी है| एक साथ एक दूसरे के पकडे गए मामलो को शेयरिंग करते निपटा लेते है और जनता के शिकायत और समाधान का कोई निष्कर्ष नहीं निकलता|

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बेसिक शिक्षा में शासनादेशो को ताक पर रख हो रहे संविदा पर नियुक्त अनुदेशको के तबादले-
उत्तर प्रदेश में 31 मार्च 2013 को शिक्षको की कमी को देखते हुए विषय विशेषज्ञ की भर्तियाँ के लिए उत्तर प्रदेश शासन ने बाकायदा आदेश जारी किया| कुछ नियम बनाये जिन्हें पालन करते हुए ये नियुक्तियां करनी थी| प्रक्रिया को पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त करने के लिए ऑनलाइन व्यवस्था की गयी| इन्हें अनुदेशक कहा गया| जिन्हें 7000/- मासिक मानदेय पर 11 माह के लिए नियुक्त होना था|

शासनादेश के अनुसार कुछ यूनिवर्सिटी की डिग्रियां मान्य नहीं थी| प्रथम वरीयता में अभ्यर्थी के निवास के ब्लाक में ही नियुक्त करना था| एक बार नियुक्ति हो जाने के बाद जिला स्तर पर बेसिक शिक्षा अधिकारी अभ्यर्थियो के स्कूल नहीं बदल सकता है| मगर फर्रुखाबाद जनपद में ये दोनों नियम टूटे| इतना ही नहीं शिकायत के बाबजूद कई अभ्यर्थियो को बाकायदा काउंसलिंग में मौका दिया गया और चयन सूची में नाम आया| मीडिया में खबरे छपी तो अभ्यर्थी खुद ही पकडे जाने के डर से संविदा की नौकरी ज्वाइन करने नहीं गए अलबत्ता जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने फर्जीवाड़े के सम्बन्ध में कोई प्रशासनिक व् अपराधिक कार्यवाही नहीं की| शायद इसके पीछे कुछ लाभ की बात हो सकती है| वर्ना फर्जीवाड़ा दिख जाए और छोड़ दिया जाए ऐसा हरिश्चन्द्र अब तो दीखता नहीं|

अब जबकि मीडिया में फर्जीवाड़े की खबरों के बाद अभ्यर्थियो ने विद्यालय ज्वाइन नहीं किये तो कई सीटे खाली रहना लाजिमी है| फिर खेल शुरू हुआ इन खली सीटो पर संविदा के अनुदेशको के तबादले का| खबर है की पैसे लेकर या मंत्रियो और नेताओ की सिफारिश में शासनादेशो की धज्जियाँ उड़ाई जा रही है| बदले में भ्रष्टाचार करने और जिले में बने रहने का संरक्षण का वादा होता है| कई मामले जे एन आई के संज्ञान में आ चुके है, सबूत जुटाए जा चुके है| उदहारण के लिए एक शिक्षा अनुदेशक का चयन राजेपुर ब्लाक के जूनियर विद्यालय बड़ागांव परतापुर में शारीरिक शिक्षा अनुदेशक के तौर पर हुआ| सूची में नाम था| अभ्यर्थी ने नयागांव में ज्वाइन किया और जैसा की बेसिक शिक्षा परिषद् में परम्परा है जनता का धन लूटने की, अनुदेशक स्कूल में बच्चो को पढ़ाने के लिए नहीं गया| खंड शिक्षा अधिकारी का चार्ज सम्भाले जिला समन्वयक ने स्कूल के निरिक्षण किया तो पाया कि अनुदेशक विद्यालय नहीं आता| रजिस्टर पर टिप्पणी के साथ अंकित किया| मगर कुछ ही दिनों बाद नयी खबर आई|

मंत्रीजी जी के कॉलेज की फर्जी मार्कशीट के सहारे एक महिला अभ्यर्थी संध्या पुत्री कश्मीर सिंह अपना चयन मोहम्दाबाद ब्लाक के जूनियर स्कूल बिहार में चयन कराने में कामयाब हो गयी| मामला जेएनआई की पकड़ में आया तो मामला मय नकली असली मार्कशीट के छपा| नतीजा ये हुआ कि संध्या में विद्यालय ज्वाइन नहीं किया| अलबत्ता बेसिक शिक्षा अधिकारी भगवत पटेल ने फर्जी मामले में कोई अपराधिक धोखाधड़ी की कार्यवाही नहीं की| मगर बिहार की सीट खाली हो गयी|

जो अनुदेशक राजेपुर ब्लाक के बड़ागाँव परतापुर में नियुक्त हुआ, ज्वाइन किया और विद्यालय पढ़ाने नहीं गया अब अपना तबादला ब्लाक बदल कर मोहम्दाबाद ब्लाक के बिहार विद्यालय में करवाने में कामयाब हो गया| शासनादेश कैसा टूटा? कितने में टूटा? ये पाठको और करने कराने वालो के लिए सोच का विषय है| फिलहाल नजर डालिए उस शासदेश पर जिसमे लिखा है कि- संविदा पर नियुक्त अभ्यर्थी का तबादला जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी नहीं कर सकता| कई तबादले लाइन में लगे है| जिन्हें कार्यालय से तबादले के लिए शासनादेशो का हवाला देकर मना किया गया है वे इस उदहारण पर अपने लिए दबाब बना सकते है|
GO ANUDESHAK