अनुदेशक भर्ती में हुई शिकायत: शिक्षक नेता के पुत्र ने कैरियर की शुरुआत ही फर्जीवाड़े से की

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फर्रुखाबाद: अनुदेशक भर्ती में भी सैकड़ो शिक्षक फर्जीवाड़े की दम पर नौकरी पाने में कामयाब हो गए| हालात और चौकाने वाले तब कहे जा सकते है जब जोइनिंग से पहले ही विभाग को शिकायत मिल गयी हो और बाबजूद इसके नियुक्ति पत्र थमा दिया जाए| जनपद में बेसिक शिक्षा में नियुक्ति पा गए ऐसे दो और अनुदेशको की शिकायत जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी से की गयी है जो डायट से बी टी सी का प्रशिक्षण भी पा रहे है और अनुदेशक के तौर पर भी नौकरी ज्वाइन कर ली है| ये है मोहित यादव और अर्दीप| मोहित यादव शिक्षक नेता विजय बहादुर यादव के पुत्र बताये जा रहे है| शिकायत की प्रतिया मुख्यमंत्री से लेकर बेसिक शिक्षा परियोजना निदेशालय तक भेजी गयी है| खबर है कि दोनों ने जोइनिंग तो कर ली है मगर बच्चो को इसका लाभ नहीं पा रहा है क्योंकि ये दोनों स्कूल भी नहीं जा रहे है|

शिकायतकर्ता सौरभकान्त चतुर्वेदी, प्रदीप यादव और सचिन गंगवार ने संयुक्त रूप से जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी को गत ६ जुलाई को लिखित सूचित किया कि अंशकालीन अनुदेशक के शारीरिक शिक्षा के पद पर काउंसलिंग करा चुके मोहित यादव पुत्र विजय बहादुर यादव (क्रम स 19) और अर्दीप पुत्र नरेन्द्र सिंह (क्रम स० 11) डायट छिबरामऊ से बी टी सी की ट्रेनिंग प्राप्त कर रहे है| ट्रेनिंग के दौरान अभ्यर्थी के सभी मूल शैक्षिक प्रमाण पत्र डायट में जमा होते है| इसके बाबजूद दोनों ने डायट को गुमराह करके मूल दस्ताबेज हासिल किये और काउंसलिंग कराने में कामयाब हो गए| एक ही समय पर दोनों काम कैसे सम्भव है| बी टी सी की ट्रेनिंग की रेगुलर कक्षाए और बच्चो को स्कूल में पढ़ाने का काम एक साथ कैसे हो सकता है| इन दोनों ने नियमवाली के विरुद्ध काम किया है| लिहाजा वे मांग करते है कि दोनों का आवेदन निरस्त किया जाए या वे बी टी सी छोड़े|
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बात फर्जीवाड़े की है| शिक्षक संघ का नेता का पुत्र ये करे तो सवाल उठना लाजिमी है| क्या इसीलिए शिक्षक नेतागिरी करता है ताकि उसके प्रभाव से गलत काम को करा सके| शायद इसीलिए अब जनपद में बेसिक शिक्षा परिषद् की नेतागिरी बेअसर हो गयी है| यदि ये आरोप सही है तो न केवल दोनों के आवेदन निरस्त किया जाना चाहिए बल्कि दोनों के विरुद्ध धोखाधड़ी का मामला भी दर्ज किया जाना चाहिए| इसी के साथ दोनों की काउंसलिंग से पहले विभाग को सूचना देने के बाबजूद काउंसलिंग और नियुक्ति पत्र जारी करने के पीछे की मंशा की भी सतकर्ता विभाग से जाँच की जानी चाहिए| गड़बड़ी की सूचना मिलने के बाबजूद नियुक्ति पा जाना निश्चित रूप से भ्रष्टाचार में संलिप्तता का संदेह खड़ा करता है| विभागीय सूत्रों के मुताबिक फिलहाल सोमवार तक मामले की जाँच शुरू नहीं हुई थी|