धोखा है नीतीश का मोदी विरोध? कांग्रेस ने पहली बार गुजरात के सीएम को माना चुनौती

FARRUKHABAD NEWS

नई दिल्ली: अभी तक गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘सांप्रदायिक’, ‘क्षेत्रीय’ और ‘गुजरात में शेर, बाहर ढेर’ जैसी उपमाओं से नवाजने वाली कांग्रेस के किसी बड़े नेता पहली बार सार्वजनिक तौर पर नरेंद्र मोदी को चुनौती माना है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने मोदी पर हमला बोलते हुए कहा है कि मोदी भारत के पहले ‘मान्यता प्राप्त फासीवादी’ नेता हैं। मोदी को लेकर कांग्रेस के अहम रणनीतिकार रमेश ने कहा, ‘वह हमारे लिए चुनौती खड़ी करेंगे। वह सिर्फ रणनीतिक ही नहीं पेश नहीं कर रहे हैं बल्कि वैचारिक चुनौती भी पेश कर रहे हैं।’ यह पहला मौका है जब कांग्रेस के किसी बड़े नेता ने मोदी को चुनौती माना है।
MOdi old1
कांग्रेस के बड़े नेता ने भले ही मोदी को लोकप्रिय मान लिया हो, लेकिन जनता दल (यूनाइटेड) के नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उन्हेंन लेकर अब भी नरम नहीं पड़े हैं । उनका नरेंद्र मोदी से 36 का आंकड़ा जगजाहिर है। जदयू के नेता और कार्यकर्ता पानी पी पीकर नरेंद्र मोदी को उनका नाम लिए बिना कोस रहे हैं। जदयू को इस बात पर ऐतराज है कि बीजेपी ने उस विवादित नेता को अगले लोकसभा चुनाव की कमान सौंप दी, जिसकी छवि सांप्रदायिक है और जिस पर गुजरात दंगों के दाग हैं। इसे लेकर जदयू इतनी खफा है कि वह बीजेपी के साथ अपना 17 साल पुराना गठबंधन भी तोड़ सकती है।

[bannergarden id=”8″]
आडवाणी के इस्तीफे के बाद जदयू हरकत में आ गई थी और पार्टी के अध्यक्ष शरद यादव ने कहा था कि जदयू एनडीए में तभी आई थी जब अटल और आडवाणी से हमारा समझौता हुआ था। जदयू आडवाणी को कथित तौर पर ‘साइडलाइन’ किए जाने और मोदी को ‘आगे’ किए जाने से नाराज बताई जाती है। मोदी की तुलना में आडवाणी जदयू को ‘सेकुलर’ नजर आते हैं। यही वजह है कि नीतीश जिस मोदी को बिहार की सीमा में फटकने नहीं देते हैं, उन्हीं नीतीश ने आडवाणी की जन चेतना यात्रा को बिहार से ही हरी झंडी दिखाई थी। जबकि मोदी आडवाणी के ही शिष्य माने जाते हैं जिन्हें देश भर में सांप्रदायिक राजनीति की शुरुआत करने वाले राजनेताओं में शुमार किया जाता है। मोदी और बीजेपी को लेकर नीतीश कुमार के दोहरे रवैये का एक बड़ा सुबूत यह भी है कि 2002 के गुजरात दंगों के बाद भी नीतीश कुमार लंबे समय तक मोदी की पार्टी की सरकार में केंद्र में मंत्री बने रहे।

[bannergarden id=”11″]
1990 सांप्रदायिक थे आडवाणी और 2013 में हो गए धर्मनिरपेक्ष

1990 में जब आडवाणी अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए रथ यात्रा निकाल रहे थे, तब नीतीश कुमार विश्वनाथ प्रताप सिंह की केंद्र की राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार में कृषि राज्य मंत्री थे। वीपी सिंह की सरकार ने बिहार के समस्तीपुर में आडवाणी की गिरफ्तारी करवाकर रथ यात्रा को रुकवा दिया था। मोदी ने आडवाणी की इस यात्रा के प्रबंध का काम किया था। इसके बाद बीजेपी ने राष्ट्रीय मोर्चे से समर्थन वापस ले लिया था और नतीजतन वीपी सिंह की सरकार गिर गई थी। उस दौर में नीतीश कुमार आडवाणी के मुखर आलोचक हुआ करते थे और उन्हें घोर सांप्रदायिक कहते थे। समस्तीपुर में आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद नीतीश कुमार बहुत खुश हुए थे और तब के अपने साथी लालू प्रसाद यादव के साथ इस खुशी को उन्होंने साझा भी किया था। लेकिन रथ यात्रा के बाद अयोध्या में राम मंदिर निर्माण आंदोलन ने तेजी पकड़ ली और 6 दिसंबर, 1992 में बाबरी मस्जिद को तोड़ दिया गया। इस मामले में आज भी आडवाणी पर मुकदमा चल रहा है। लेकिन 2013 में वही आडवाणी नीतीश के लिए धार्मिक सहिष्णुता और धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक बन गए हैं।

1970 में सांप्रदायिक और 1998 में धर्मनिरपेक्ष बन गए थे वाजपेयी

1970 में अटल बिहारी वाजपेयी ने पांचजन्य में एक लेख लिखा था। यह लेख बाद में इंडियन एक्सप्रेस में अंग्रेजी में भी छपा था। इस लेख में अटल बिहारी वाजपेयी ने मुस्लिमों के खिलाफ जहर उगला था। कई लोग ऐसा मानते हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी ने उस दौर में जनसंघ के नेता बलराज मधोक के सामने खुद को हिंदू हितों का बड़ा पैरोकार साबित करने के लिए ऐसा लेख लिखा था। उस लेख के प्रकाशन के बाद अटल बिहारी वाजपेयी की जमकर आलोचना हुई थी और उन पर सांप्रदायिक होने का ठप्पा लगा दिया गया था। जीवन भर दक्षिणपंथी राजनीति करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी से जब पत्रकारों ने बाबरी मस्जिद के विध्वंस से एक दिन पहले पूछा था कि अब क्या होगा, तो वाजपेयी ने बहुत ही सारगर्भित लेकिन द्विअर्थी जवाब दिया था। वाजपेयी ने तब कहा था, ‘आशा भी है और आशंका भी।’ वही अटल बिहारी वाजपेयी 1998 में धर्मनिरपेक्ष नेता साबित हुए और प्रधानमंत्री बने। तब पार्टियां आडवाणी की सांप्रदायिक छवि के चलते उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बनाना चाहती थीं। इसलिए वाजपेयी के उदार चेहरे पर सहमति बनी।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 1948 में सांप्रदायिक और 1974 में धर्मनिरपेक्ष

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद तत्कालीन नेहरू सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था। उस दौर में जयप्रकाश नारायण ने आरएसएस को सांप्रदायिक कहकर उसकी गतिविधियों की आलोचना की थी। लेकिन उन्हीं जेपी ने 1974 में आरएसएस को धर्मनिरपेक्ष करार दिया। जेपी ने तब कहा था कि अगर आरएसएस सांप्रदायिक है तो वह खुद भी सांप्रदायिक हैं। यह गौर करने वाली बात है कि मोदी का विरोध करने वाले नीतीश कुमार खुद को जेपी का शिष्य और जेपी के नेतृत्व में हुए आंदोलन से जन्म लेने वाला नेता बताते हैं।