क्या गुल खिलायेगी अन्ना और श्रीरविशंकर के साथ गोविंदाचार्य की तिगड़ी

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फर्रुखाबाद: भाजपा से अपनी दूरियां सार्वजनिक करने के बावजूद अभी गोंविंदाचार्य स्वयं के जीवन भर संघ का स्वयं सेवक बने रहने की बात भले ही कह रहे हों परंतु अपनी नयी राजनीतिक अधारणा के साथ अन्ना और श्री श्रीरविशंकर के साथ जमीन तलाशने की उनकी मुहिम कोई नया गुल भी खिला सकती है।
रविवार को प्रख्यात चिंतक व विचारक तथा राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संस्थापक केएनगोविंदाचार्य यहां स्थानीय कार्यक्रमों में भाग लेने आये थे। यहां पर गोंविंदाचार्य ने भाजपा से अपनी अरुचि और आरएसएस द्वारा भाजपा के राजनैतिक ऐजेंडे में अहम भूमिका निभाये जाने पर, आरएसएस से अपने रिश्तों पर पुनर्विचार के मुद्दे पर यद्यपि वह असहज अवश्य नजर आये परंतु उन्होंने कहा कि वह एक स्वायं सेवक हैं और आजीवन स्वरयं सेवक रहेंगे। उन्हों ने इस दौरान मीडिया के सामने अपनी नयी अवधारणा ‘वैकल्पिक राजनीति’ का विस्तार से वर्णन किया। इसमें समाज और देश हित में कार्य करने के लिये समर्पित लागों की आवश्यसकता के अतिरिक्तक उन्हों ने पंचायतों को और अधिक वित्ती य व राजनैतिक स्वायत्ता दिये जाने व न्यायपालिका की कार्यप्रणाली में सुधार की आवश्यकता जैसे मूलभूत बिंदुओं पर खुलकर चर्चा की। वैकल्पिक राजनीति की अवधारणा पर वार्ता के दौरान वह भारतीय लोकतंत्र की वर्तमान संसदीय प्रणाली और अमेरिकी राष्ट्रपति व्यवस्थाप में तुलना से तो बच गये परंतु उन्होंने व्यवस्थाल के सर्वमान्य होने की बात अवश्य कही। उल्लेरखनीय है कि अन्ना हजारे भी सार्वजनिक मंचों से वैकल्पिय राजनीति की बात करते रहे हैं। गोविंदाचार्य इस व्यवस्था के लिये अन्ना व श्रीरविशंकर के साथ संवाद में होने की बात भी स्वीकार कर रहे हैं। यदि स्थिति यही रही तो कल अन्नात हजारे, श्री श्रीरविशंकर और गोविंदाचार्य की यह तिगड़ी देश की राजनीति में कोई नया गुल भी खिला सकती है।

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अपनी अवधारणा की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि देश के सभी राजनैतिक दलों के पास देश की मौजूदा समस्याओंका हल तथा देश को आगे ले जाने की क्षमता नहीं है। देश को अब वैकल्पिक राजनीति व अर्थनीति की जरूरत है। अब दौर प्रकृति केन्द्रित विकास का है। उन्होंने भारत की प्राकृतिक संपदा आध्यात्मिकता सर्वजन सुखाय वाले दर्शन का सविस्तार वर्णन करते हुए कहा कि हमारी संस्कृति कभी भी भोगवादीनहीं रही। हमारे यहां परिवार व समाज की व्यवस्था रही है। हमारे वेद पुराणोंमें इसका उल्लेख है। जीव जगत जगदीश की सोच हमारी धरोहर है। भौतिकता आधारित विकासके मॉडल तथा भोगवादी संस्कृति तथा उसके दुष्परिणामों का विस्तार से वर्णनकरते हुए उन्होंने कहा कि विकास के इस मॉडल ने पूरी दुनिया में प्रकृति का विध्वंस किया है। अब आगे का दौर प्रकृति केन्द्रित विकास का है। भारत प्रकृति केन्द्रित विकास में पूरे विश्व को राह दिखाने में सबसे ज्यादासक्षम है गंगा मैय्या तथा परिवार की व्यवस्थाअभी खत्म नहीं हुई है। उन्होंने जीडीपी आधारित विकास के मॉडल को अधकचरा कहा, उन्‍होंने कहा कि पैमाना व जमीन जंतु और जानवर आधारित होना चाहिए।
श्री गोविंदाचार्य ने देश की मौजूदा राजनीति वअर्थनीति पर भी प्रहार करते हुए कहा कि हमारे देश में राज सत्ता व जनता एकदूसरे से कट चुके है। दोनों अलग-अलग रास्ते पर हैं। उन्होंने देश के मौजूदा राजनैतिक व्यवस्था को विदेशोंका गुलाम तथा सभी राजनैतिक दलों को अमेरिका परस्त बताते हुए कहा कि सत्ता व विपक्ष की पहचान मिट गई है। दालों के चेहरे भले ही अलग हो किंतु सभी की सोंच व नीति एक जैसी है। उन्होंने मौजूदा राजनीति व अर्थनीति पर हमला करनेकी जरूरत बताते हुए कहा कि अब हमें वैकल्पिक राजनीति व अर्थनीति की जरूरतहै। पूरेविश्व को प्रकृति केन्द्रित विकास की राह दिखाने में भारत सक्षम है।

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देश, स्वामी विवेकानंद की 150वीं वर्षगांठ मना रहा है, तब घर-घर तक उनके पुरुषार्थ, संकल्प और संघर्ष की बात पहुंचे। उनके जीवन को लोग जानें, ताकि देश में एक नया मनोबल पैदा हो। खासतौर से युवाओं के बीच स्वामी जी का संदेश पहुंचना जरूरी है। उनके जीवन के ‘मिशन और विजन’ (ध्येय और दृष्टि) से ही भारत की युवा पीढ़ी जीने का अर्थ तलाश-जान सकती है। वह एक व्यक्ति हैं, जो भारत के सामाजिक -आर्थिक -सांस्कृतिक और राजनीतिक जीवन में टर्निग प्वाइंट (मोड़ देनेवाले) हैं।