विज्ञापन के लिहाज से कहा जाए तो आनलाइन माध्यमों और रेडियो के उत्थान के दिन हैं| विज्ञापन के लिहाज से अखबारों और मैग्जीनों के बुरे दिन शुरू हो चुके हैं| एक ताजा सर्वे बताता है कि अखबारों व पत्रिकाओं का विज्ञापन आनलाइन माध्यम व रेडियो की तरफ शिफ्ट हो रहा है| इससे पता चलते है कि आनलाइन वालों के लिए उजले दिन आगे है और अखबारों के बुरे दिन भी सामने खड़ा है|
अमेरिका समेत कई विकसित देशों का इतिहास बताता है कि वहां ढेर सारे पुराने व बड़े अखबारों को बंद होना पड़ रहा है क्योंकि विज्ञापन कम होते जाने के कारण वे घाटे में चलने लगे| इस कारण उनका आनलाइन एडिशन प्रकाशित किया जा रहा है लेकिन प्रिंट एडिशन बंद कर दिया गया है| आगे भारत में भी यही कहानी दुहराई जाएगी| उपर देखिए एक ग्राफ, जिससे पता चलता है कि सन 2005 में किस मीडिया माध्यम को टोटल विज्ञापन में कितने प्रतिशत हिस्सेदारी थी और अब सन 2012 में किसका कितना प्रतिशत हिस्सा घटा-बढ़ा है|
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